जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर बढ़ता संकट - आंकलन एवं उपाय 

जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर बढ़ता संकट
जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर बढ़ता संकट

आईए मिलकर जल संसाधनों की रक्षा करें!

  • वनों का संरक्षण करें।
  • वर्षा के जल को एकत्रित करें।
  • एकीकृत जलागम प्रबन्धन को अपनाएं।
  • भू-जल पुनर्भरण करें।
  • हिमनदों / खण्डों को संरक्षित करें।
  • नदी के वास्तविक बहाव को न बदलें।
  • हिमनदों में बढ़ती मानवीय गतिविधियां कम करें।
  • प्राकृतिक झीलों एवं तलाबों का संरक्षण करें।
  • परम्परागत प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण तथा पुर्नवास करें।
  • उपलब्ध जल का पुनः चक्रण करें।

जल संरक्षण एवं संग्रहण हेतु हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदम

राज्य सरकार द्वारा विश्व बैंक प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत वर्ष 2009 से वर्ष 2016 तक कई प्रकार के कार्य जल संरक्षण हेतु किए गए। जिसके परिणामस्वरूप लगभग 77 एकीकृत लघु जलागम योजनाओं को प्रदेश के कुल 77 विकास खण्डों में पूरा कर लगभग 896.96 लाख लीटर जल को संरक्षित किया गया जिससे लगभग 2243 हैक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाया गया। इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के पश्चात् लगभग 15 प्रतिशत जल संरक्षण वृद्धि इस क्षेत्रों में हुई। इन योजनाओं के सफल होने से सिंचाई के लिए अतिरिक्त जल की उपलब्धता से किसानों को पारम्परागत फसलों के अलावा फसलों के विविधीकरण करने के साथ साथ नकदी फसलों के उत्पादन करने में सहायता मिली है। इसके अतिरिक्त अन्य जल संरक्षण योजनाओं के साथ-साथ उठाऊ सिंचाई योजनाओं की सहायता से नदियों, नालों एवं भूमिगत जल को उंचाई वाले क्षेत्रों में सिंचाई  हेतु उपलब्ध करवाया गया जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की स्थिति में भी सिंचाई संभव हो पाई है। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा भूजल प्रयोग पर भी बल दिया जा रहा है ताकि टपक एवं फवारा सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाकर उपलब्ध जल का पूरा प्रयोग अधिक से अधिक क्षेत्र में सिंचाई हेतु किया जा सके एवं जल के व्यर्थ होने को बचाया जा सके।

हिमाचल प्रदेश के जल संसाधन एक आंकलन

हिमाचल प्रदेश के जल स्रोत राज्य के सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में से एक है। सतलुज, व्यास, रावी और चिनाब नदियों के जलग्रहण क्षेत्र जल की एक भारी मात्रा प्रदान करते हैं जिस कारण इस राज्य में पानी की कोई कमी नहीं है। यह राज्य निचले क्षेत्रों में स्थित अन्य राज्यों को भी स्वच्छ एवं पर्याप्त जल उपलब्ध करवाता है। एक पहाड़ी राज्य होने के कारण नदियों का उपलब्ध जल का सिंचाई इत्यादि के लिए वितरण कठिन है यही कारण है कि नदियों में जल उपलब्ध होने के बावजूद कृषि कार्यों में सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके अतिरिक्त जलवायु में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव भी उपलब्ध जल स्रोतों पर पड़ रहा है।

हिमाचल हिमालय में हिमनदों का बेसिन-वार वितरण

क्रमांक  बेसिन का नाम हिमनदों की संख्या एरियल विस्तार (वर्ग कि.मी)
1 ब्यास 51

503.725

2 पार्वती 36 450.627
3 सैंज 09 37.255
4 स्पिति 71 258.237
5 बास्पा 25 203.300
6 सतलुज 151 616.299
7 चिनाब 457 1055.27
  कुल  800 3124.713


हिमाचल हिमालय की प्रमुख झीलें 

क्रमांक  झील का नाम  जिला  ऊंचाई (मीटर) क्षेत्रफल  (हैक्टेयर)
1 भृगु कुल्लू 4240 3
2 दशैहर कुल्लू 4200 4
3 मानतलाई कुल्लू 4260 3
4 सरेउलसर कुल्लू 3301 0.5
5 पराशर मण्डी 2600 1
6 रिवालसर मण्डी 1320 3
7 नाको  किन्नौर 3604 1
8 चंद्रताल लाहौल स्पिति 4280 49
9 सूरजताल लाहौल स्पिति 4800 3
10 चंद्रनौन शिमला 3960 1
11 डल कांगड़ा 1840 2
12 करेरी कांगड़ा 2960 3.5
13 पौंग डैम कांगड़ा 430 21712
14 मणीमहेश चम्बा 4200 2
15 गौरी कुण्ड चम्बा 4000 0.5
16 खजियार चम्बा 1920 5
17 लाम डल लेक चम्बा 3640 5
18 गधाररू चम्बा 4280 1
19 महाकाली चम्बा 4355 2
20 खुंडीमरल  चम्बा 3750 3
21 रेणुका सिरमौर 600 15

 

हिमाचल हिमालय की प्रमुख नदियां

  • हिमाचल प्रदेश दोनों सिंधु और गंगा नदी की घाटियों को पानी उपलब्ध कराता है। इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब और यमुना हैं।
  • सतलुज नदी का उद्गम स्थान तिब्बत में मानसरोवर के नजदीक राक्स झील है। यह नदी हिमाचल में शिपकी नामक स्थान में प्रवेश करती है और हिमाचल प्रदेश में लगभग 320 किलोमीटर का सफर तय करती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां वास्या, स्थिति, नांगली तथा सोन हैं।
  • ब्यास नदी का उद्गम स्थान रोहतांग दर्रे के पास पीर पंजाल रेंज है और हिमाचल प्रदेश में 256 किलोमीटर का सफर तय करती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां पार्वती, हुरला, सँज, उल्ह, सुकेती, लूनी, बाणगंगा और चकी है।
  • रावी नदी का उद्गम स्थान बड़ा भंगाल है और हिमाचल प्रदेश में 185 किलोमीटर का सफर तय करती है। इसकी प्रमुख सहायक नदिया भादल, स्थूल, साल, बैरा एवं तंतगरी हैं।
  • चंद्रा एवं भागा के तांदी नामक स्थान पर मिलने के पश्चात् बनने वाली नदी चिनाव कहलाती है। यह नदी प्रदेश में कुल 122 किलोमीटर का सफर तय करती है। मियार, चंद्रा एवं भागा इसकी सहायक नदियां हैं।
  • युमना नदी का उद्गम स्थान यमनोत्री है और हिमाचल प्रदेश में यह खदर मजरी नामक स्थान में प्रवेश करती है तथा 185 किलोमीटर का सफर तय करती है तथा गंगा नदी की मुख्य सहायक नदी है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां जलाल, मारकण्डा, गिरी, असनी, बाता पब्बर एवं टोंस  हैं।

हिमाचल प्रदेश के पारम्परिक पेयजल स्रोत

  • हिमाचल प्रदेश में पेयजल स्रोतों को बड़ी मेहनत से बनाने की परम्परा रही है। पहाड़ों से नदियाँ भले ही निकलती हो, किन्तु उनका पानी तो दूर घाटी में बहता है। पहाड़ पर बसी बस्तियाँ- गाँव तो आस-पास उपलब्ध पहाड़ से निकलने वाले जलस्रोतों पर ही निर्भर रहे हैं।
  • हिमाचल प्रदेश में भी अन्य पहाड़ी प्रदेशों की तरह कई तरह के प्राकृतिक जलस्रोत उपलब्ध हैं। पहाड़ से फूटते हुए जलस्रोत के आगे बाँस, लकड़ी, या पत्थर की नाली लगा दी जाती है जिससे होकर पानी की धारा नीचे गिरती है। इसे चम्बा में नाडू पणिहार, और कांगड़ा में छरुहडू कहा जाता है।
  • इसके अलावा बावड़ियाँ भी मिलती हैं। ये चौकोर 5-6 फुट गहरे गढ़े कहे जा सकते हैं जिनकी चौड़ाई ऊपर से नीचे की ओर कम होती जाती है। यानि उपर 5-6 फुट चौकोर हो तो नीचे तक सीढ़ीदार चिनाई में यह घटते घटते 1 फुट रह जाएगी। पुरानी बावड़ियाँ चूने पत्थर से बनाई गई हैं।
  • हमीरपुर जिला में खातरियों में पानी का भण्डारण होता है। इस जिला में जलस्रोतों का अभाव है, यहाँ के खड़े नाले भी मौसमी हैं। यहाँ की चट्टानें स्यालू (सैंड स्टोन) की बनी हैं। इनमें पानी चूसने की अच्छी क्षमता होती है। यह पानी धीरे-धीरे साल भर चट्टानों से रिसता रहता है। इस रिसाव को खातरियों में सहेज लिया जाता है।
  • खातरियाँ चट्टानों में छेनी से काट कर बनाई गई गुफाएं हैं जिनके तल में भी छनी से भण्डारण टैंक बनाया जाता है, पानी तक उतरने के लिये सीढ़ियाँ भी चट्टान काटकर ही बनाई जाती है। गुफा की दीवारों से रिसता हुआ पानी अन्दर टैंक में जमा होता रहता है। गुफा के मुहाने पर दरवाजा लगाकर ताला लगा दिया जाता है। क्योंकि पानी दुर्लभ है और अधिकांश खातरियाँ निजी है। सार्वजनिक खातरियों में ताला नहीं लगाया जाता। शायद यह अपनी तरह की इकलौती व्यवस्था होगी।
  • जलवायु में हो रहे अप्रत्याशित परिवर्तन के कारण आने वाले समय पानी की मात्रा घटती जाएगी। ऐसे में हमें अपनी परम्परागत जल स्रोतों के संरक्षण की तकनीकों को सहेज कर रखना होगा।

हिमाचल हिमालय की परम्परागत जल संरचनाएं

संरचना                           प्रयोग
छपरी / तलाई    सिंचाई / पेय जल
बावड़ी / खतरी    घरेलू उपयोग  
नाउन      घरेलू उपयोग
छरेदू/नाउन  घरेलू उपयोग
कुल   सिंचाई / घराट चलाना
घराट   अनाज पिसाई  

 

जलवायु परिवर्तन का जल संसाधनों पर प्रभाव

जलवायु में हो रहे परिवर्तन के कारण अन्य प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ प्रदेश के महत्वपूर्ण जल संसाधन भी प्रभावित हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के जल संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभाव इस प्रकार है:नदी व नालों का

  • तीव्रता से सूखना।
  • प्राकृतिक स्रोत का लुप्त होना / सूख जाना
  • बर्फ गिरने के स्तर में कमी।
  • वर्षा का आसमयिक तौर पर गिरना ।
  • हिम खण्डों एवं हिमनदों का तीव्रता से पिघलना ।
  • भू-जल का स्तर नीचे गिरना।
  • झीलों का सूखना एवं सिकुड़ना ।

हिमालयी पारिस्थितिकीतंत्र संभालने हेतु राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem) के अन्तर्गत अग्रसर

हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग हिमाचल प्रदेश सरकार हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर राष्ट्रीय मिशन के अन्तर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा स्थापित

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें:

निदेशक एवं राज्य नोडल अधिकारी, हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ, पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार पर्यावरण भवन, शिमला, हिमाचल प्रदेश- 171001
दूरभाष: 0177-2656559, 2659608 फैक्स : 0177-2659609:
ई-मेल: sattrigohp@gmail.com

स्रोत :- हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ पर्यावरण

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Post By: Shivendra
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