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संरक्षण - जल उपयोग को कम करना
जल संरक्षण के साथ-साथ जल बचत भी आवश्यक...
Posted on 09 Oct, 2014 09:19 AMउज्जैन नगर को जलप्रदाय करने अर्थात इसकी प्यास बुझाने का एकमात्र स्रोत है यहाँ से कुछ दूरी पर बना हुआ बाँध जो 1992 वाले कुम्भ के दौरान गंभीर नदी पर बनाया गया था। उल्लेखनीय है कि गंभीर नदी, चम्बल नदी की सहायक नदी है, जो कि नर्मदा नदी की तरह वर्ष भर “सदानीरा” नहीं रहती उज्जैन नगर को जलप्रदाय करने अर्थात इसकी प्यास बुझाने का एकमात्र स्रोत है यहाँ से कुछ दूरी पर बना हुआ बाँध जो 1992 वाले कुम्भ के दौरान गंभीर नदी पर बनाया गया था। उल्लेखनीय है कि गंभीर नदी, चम्बल नदी की सहायक नदी है, जो कि नर्मदा नदी की तरह वर्ष भर “सदानीरा” नहीं रहती आधुनिक युग में जैसा कि हम देख रहे हैं, प्रकृति हमारे साथ भयानक खेल कर रही है, क्योंकि मानव ने अपनी गलतियों से इस प्रकृति में इतनी विकृतियाँ उत्पन्न कर दी हैं, कि अब वह मनुष्य से बदला लेने पर उतारू हो गई है। केदारनाथ की भूस्खलन त्रासदी हो, या कश्मीर की भीषण बाढ़ हो, अधिकांशतः गलती सिर्फ और सिर्फ मनुष्य के लालच और कुप्रबंधन की रही है। इस वर्ष की मीडिया चौपाल, नदी एवं जल स्रोत संरक्षण विषय पर आधारित है।केवल आंखों में ही रह जाएगा पानी
Posted on 08 Oct, 2014 09:49 AMकल विश्व जल दिवस है यानी पानी के वास्तविक मूल्य को समझने का दिन,पानी बचाने के संकल्प का दिन। पानी के महत्व को जानने का दिन और जल संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन। आंकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.6 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। पानी की इसी जंग को खत्म करने और जल संकट को दूर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में रियो डि जेने
आदिलशाही जल प्रणाली पर भारी पड़ी लोकतांत्रिक प्रबंधन प्रणाली
Posted on 22 Sep, 2014 01:29 PMकनार्टक के बीजापुर जिले की कोई बीस लाख आबादी को पानी की त्राहि-त्राहि के लिए गर्मी का इंतजार नहीं करना पड़ता है। कहने को इलाके चप्पे-चप्पे पर जल भंडारण के अनगिनत संसाधन मौजूद है, लेकिन हकीकत में बारिश का पानी यहां टिकता ही नहीं हैं।
लोग रीते नलों को कोसते हैं, जबकि उनकी किस्मत को आदिलशाही जल प्रबंधन के बेमिसाल उपकरणों की उपेक्षा का दंश लगा हुआ है। समाज और सरकार पारंपरिक जल-स्रोतों कुओं, बावड़ियों और तालाबों में गाद होने की बात करता है, जबकि हकीकत में गाद तो उन्हीं के माथे पर है। सदानीरा रहने वाली बावड़ी-कुओं को बोरवेल और कचरे ने पाट दिया तो तालाबों को कंक्रीट का जंगल निगल गया।
ऐतिहासिक धरोहरों में जल संचयन का इंतजाम
Posted on 09 Sep, 2014 10:55 AMदिल्ली के भूजल में आ रही गिरावट सभी के लिए चिंता का विषय है। इस चिंता से पार पाने की लड़ाई में अब ऐतिहासिक धरोहरों को भी लगायदीनदयाल उपाध्याय जन्मतिथि बनेगी, जल संरक्षण योजना शुभारंभ तिथि
Posted on 07 Sep, 2014 09:33 AMप्रति व्यक्ति उपलब्धता में कमी के मूल कारणों में बढ़ती आबादी, बढताखापों के लोकतंत्र में मोल का पानी पीता दुजाना
Posted on 31 Aug, 2014 11:03 AMलोक में जल अपनी पुस्तक में श्याम सुंदर दुबे ने लिखा है, कुआं लोक तीर्थ है। कुआं रस कुंड है। कुआं पूजन कर नई माएं कुएं से मंगलाशीष मांगती हैं। अपने स्तन की पहली दुग्ध धार कुएं में छोड़ती हैं। कहती हैं यह दूध मेरा नहीं है, मेरे बच्चे का भी नहीं। यह तो तुमसे रस लेकर मेरी दुग्ध वाहनियों ने इस अमृत को पाया है।
दुजाना इस परंपरा का वाहक रहा है, लेकिन एक जमाने में नवाबों के शहर समूचे दुजाना को पानी पिलाने वाला दुर्गु का कुआं जब से ध्वस्त हुआ है तब से पूरा गांव मोल का पानी पीता है।
निकालनी पड़ेगी मृत संजीवनी
Posted on 03 Aug, 2014 11:47 AMजल सृष्टि की उत्पत्ति, पालन व संहार का मूल आधार है। जब भी धरती पर ‘आदिम मानव’ की सृष्टि हुई, उसके जन्म के साथ जल जुड़ा रहा। जब भी उसे भूख महसूस हुई तो इसी जल ने वनस्पतियों को उगाया, जिससे उसने पेट भरा और जमकर पानी पिया। जब भी प्रलय अथवा कयामत की कल्पना की गई तो उसका आधार बना भूकंप या जलजला। सारी धरती प्रलय काल में जलमग्न हो जाएगी।विश्व विरासत रानी की वाव
Posted on 06 Jul, 2014 12:21 PMहमारे देश में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक यानीजल संरक्षण व संग्रहण सबसे जरूरी
Posted on 04 Jul, 2014 09:58 AMसामान्यतः कृषि लगभग पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा खेती पर आश्रित है। अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती की पैदावार है इसलिए जरूरी है कि संतुलित और समुचित रूप से मॉनसून की कृपा बनी रहे। लेकिन इस वर्ष बारिश औसत से कम है। यह जरूरी है कि भविष्य के लिए जलस्रोतों के बेहतर प्रबंधन के प्रयास किए जाएं।मालवा की जल चौपाल
Posted on 03 Jul, 2014 11:53 AM‘जल चौपाल’ नाम की एक पुस्तक का पांचवां अध्याय है मालवा की जल चौपाल। सप्रे संग्रहालय और राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी परिषद के सामूहिक सहयोग से जल चौपाल पुस्तक तैयार की गई है।