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संरक्षण - जल उपयोग को कम करना
15 अप्रैल से 14 एसडीओ रोकेंगे पानी की बर्बादी
Posted on 24 Mar, 2012 03:49 PMहर व्यक्ति को हर रोज 145 लीटर पानी चाहिए। खेती के लिए और भी ज्यादा पानी चाहिए। अभी मिल भी रहा है। लेकिन कब तक?
सिंचाई खुद के बनाए तालाब से पीने के लिए हैं कुएं और हैंडपंप
Posted on 24 Mar, 2012 01:46 PMहर व्यक्ति को हर रोज 145 लीटर पानी चाहिए। खेती के लिए और भी ज्यादा पानी चाहिए। अभी मिल भी रहा है। लेकिन कब तक?बदली छोटी-छोटी आदतें, होने लगी पानी की बड़ी बचत
Posted on 24 Mar, 2012 11:38 AMपानी बचाना बना लिया धर्म, मंदिर में होते हैं रोज यही प्रवचन
मृदाओं में अन्तःस्यन्दन दरों का मापन
Posted on 22 Dec, 2011 10:31 AMजलविज्ञानीय अध्ययनों के लिए विभिन्न प्रकार की मृदाओं एवं भूमि उपयोगों की स्थिति में अन्तःस्यन्दन ज्ञान जरूरी है। अन्तःस्यन्दन दर मृदा में जल के प्रवेश कर सकने की अधिकतम दर को निर्धारित करती है। अन्तःस्यन्दन दर प्रारंभ में बहुत तेजी से कम होती है फिर कुछ समय के पश्चात यह एक स्थिर दर पर पहुंच जाती है। यह दर पूर्वगामी मृदा नमी एवं प्रपुण्ज घनत्व में परिर्वतन सेजल बचाएं और मानसून से संबंध प्रगाढ़ बनाएं
Posted on 15 Jul, 2011 09:10 AMहमारे शहरों और खेतों में होने वाली बारिश का उत्सव कैसे मनाया जाए?
प्रदेशों की परेशानी
Posted on 12 Jul, 2011 12:08 PMउत्तर प्रदेश
आवश्यकता: 20 हजार एमएलडी उपलब्धता: 15 हजार एमएलडी
जल संरक्षण प्रदेश में जल संरक्षण और प्रबंधन के नाम पर कागज की नाव ही तैरायी गयी है। यहां न बड़े भवनों में रेन हार्वेस्टिंग के नियम पूरी तरह अमल में आ सके और न ही अंधाधुंध जल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए बना जल प्रबंधन एवं नियामक आयोग अपने पूरे प्रभाव में नजर आया।
वर्षाजल संचयन पर एक ऑडियो
Posted on 06 Apr, 2011 02:55 PMपूरी दुनिया आज जल संकट से जूझ रही है। विशेषज्ञों का मानना है वर्षाजल संरक्षण ही जल संकट से उबरने का महत्वपूर्ण स्रोत है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जब वन वर्ल्ड साउथ एशिया की टीम ने सर्वे के दौरान कुछ लोगों से पूछताछ की तो नतीजे बेहद चौकाने वाले थे। क्योंकि अधिकांश ने कहा कि उंहे वर्षाजल संरक्षण के बारे में पता ही नहीं।
परंपरागत सिंचाई ही है समाधान
Posted on 09 Oct, 2010 08:24 AMपूर्वजों ने वर्षा के जल को संग्रहित करके भारत में कृषि के उत्कृष्ट प्रतिमान स्थापित किए थे। इससे जहां पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जाती थी वहीं भूजल को भी स्थिर रखने में मदद मिलती थी। देश में आए दिन जो सूखे की समस्या रहती है, उससे निपटने के लिए हमें एक बार फिर सिंचाई के परंपरागत साधनों पर ध्यान देना होगा। गत वर्ष सूखे के कारण करीब 60 प्रतिशत से अधिक चावल की पैदावार में कमी आने वाली है।दूसरी ओर रबी की फसल पर भी सूखे का साया मंडराने लगा है। गौरतलब है कि बिहार की खेती-किसानी अधिकतर मानसून पर ही निर्भर रहा करती है। यह सच है कि देश में कई अन्य राज्यों में बिहार से भी कम वर्षा हुई है,