मनोज कुमार झा

मनोज कुमार झा
अनुपम पर्यावरण
Posted on 04 Feb, 2018 03:20 PM

गाँधीजी के पूरे लेखन में कहीं भी पर्यावरण शब्द का इस्तेमाल नहीं है। ये कितनी दिलचस्प बात है कि स्वच्छता से लेकर ‘दाओस समिट’ तक जिस महात्मा गाँधी का जिक्र होता है वह प्रकृति, ग्राम्य-जीवन, कृषि जैसी बातें तो करते हैं लेकिन पर्यावरण शब्द उनके यहाँ नहीं है। दरअसल पर्यावरण की जो नई चिन्ता है वही अपने आप में विरोधाभाषी है। गाँधी चरखा से लेकर स्वराज तक और जीवन से लेकर प्रकृति तक एक ही बात कहते हैं
टांका
गाँधी-मार्ग का अभिभावक
Posted on 08 Mar, 2017 02:19 PM

रचनात्मक संस्थाओं के सम्पर्क में अस्सी के दशक से हूँ। मेरे लिये अच्छी बात यह रही कि इस दौरान जो भी सम्पर्क बना या जो भी काम किया वह वैसा ही काम था जिसे हम गाँधीवादी दृष्टि से देखते हैं। हालांकि गाँधीवाद शब्द इस्तेमाल करना खुद मुझे अच्छा नहीं लग रहा क्योंकि यह कभी राष्ट्रपिता को भी पसन्द नहीं आया था।

खैर! यह तो रही बातों को थोड़ी गहराई से समझने की बात। अपनी बात को आगे बढ़ाऊँ तो मेरे जीवन में जो सबसे बड़ी शख्सियत आये जिनके साथ मिलकर काम करने का अवसर मिला- वे थे प्रेमभाई। प्रेमभाई के साथ ही पहली बार दिल्ली आया। और इस तरह कह सकते हैं कि दिल्ली में अनुपम भाई से मुझे प्रेमभाई ने ही मिलाया।

अनुपम भाई पहली ही भेंट में मन पर गहरी छाप छोड़ गए। साहित्य की बहुत ज्यादा समझ नहीं पर यह समझता था कि अनुपम भाई जो लिखते हैं वह वाकई हर लिहाज से अनुपम ही होता है। सोचता था इनके साथ मिलकर कभी काम करने का मौका मिले तो जैसे एक पिपासु छात्र को श्रेष्ठ शिक्षक मिल जाएगा।
अनुपम मिश्र
देश में पर्यावरण की स्थिति और चुनौतियाँ
Posted on 06 Jan, 2017 03:31 PM

हमने भारत की लगभग सभी नदियों को प्रदूषित कर चुके हैं। अब हाला
जल संरक्षण व संग्रहण सबसे जरूरी
Posted on 04 Jul, 2014 09:58 AM
परंपरागत जल संग्रहण प्रणालीसामान्यतः कृषि लगभग पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा खेती पर आश्रित है। अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती की पैदावार है इसलिए जरूरी है कि संतुलित और समुचित रूप से मॉनसून की कृपा बनी रहे। लेकिन इस वर्ष बारिश औसत से कम है। यह जरूरी है कि भविष्य के लिए जलस्रोतों के बेहतर प्रबंधन के प्रयास किए जाएं।
कूड़े का रोना
Posted on 03 May, 2014 11:23 AM
आज हमारे जीवन को सजाने वाली जिन चीजों से जीवन की सजावट होनी थी, शा
नदी जोड़ो एक अहंकारी योजना
Posted on 27 Apr, 2014 09:19 AM
जिस प्रकार से हम नदियों के संसाधन को व्यापार के क्षेत्र में उतार चु
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