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संरक्षण - जल उपयोग को कम करना
राजस्थान की जल प्रबंधन व्यवस्था
Posted on 19 Sep, 2010 09:30 PM‘नीला सोना’ पर अब सबका अधिकार
Posted on 30 Aug, 2010 02:25 PM इक्कीसवीं सदी का ‘नीला सोना’ कहे जाने वाले पानी का करोबार एक खरब डॉलर तक पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र ने साफ पानी और सफाई को बुनियादी अधिकार माना है। पानी को सार्वजनिक धरोहर मानने वालों और उसे अपनी जागीर समझने वाली कंपनियों के बीच तनातनी लगातार बढ़ रही है। इससे उपजे हालात का जायजा ले रहे हैं अफलातून। स्कूलों में पढ़ाया जाता है कि पृथ्वी का जल-चक्र एक बंद प्रणाली है। यानी वर्षा और वाष्पीकरण की प्रक्रिया के जरिए पानी पृथ्वी के वातावरण में जस का तस बना रहता है। पृथ्वी के निर्माण के समय इस ग्रह पर जितना पानी था, अभी भी वह बरकरार है। यह कल्पना दिलचस्प है कि जो बूंदें हम पर गिर रही हैं वे कभी डाइनॉसोर के खून के साथ बहती होंगी या हजारों बरस पहले के बच्चों के आंसुओं में शामिल रही होंगी।पानी की कुल मात्रा बरकरार रहेगी, फिर भी मुमकिन है कि इंसान उसे भविष्य में अपने और अन्य प्राणियों के उपयोग के लायक न छोड़े। पेयजल संकट की कई वजहें हैं। पानी की खपत हर बीसवें साल में प्रतिव्यक्ति दोगुनी हो जा रही है। आबादी बढ़ने की रफ्तार से भी यह दोगुनी है। अमीर औद्योगिक देशों की तकनीकी और आधुनिक स्वच्छता प्रणाली ने जरूरत से कहीं ज्यादा पानी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है। दूसरी ओर घर-गृहस्थी और नगरपालिकाओं के तहत दस फीसद पानी की खपत
हिमाचल प्रदेशः पहाड़ी नदियों का दोहन
Posted on 28 Aug, 2010 09:06 AMपिघली बर्फ से पानी पाने वाली नदियां हिमाचल प्रदेश को सदानीरा जल स्रोत उपलब्ध कराती हैं। निचली पहाड़ियों में कुछ मौसमी बहाव वाली बरसाती पानी वाली नदियां भी हैं। काफी जल स्रोतों के बावजूद पहाड़ी पृष्ठभूमि सिंचाई सुविधाएं विकसित करने में परेशानियां खड़ी करती है। ऐतिहासिक रूप से स्थानीय राजाओं, प्रधानों और ग्राम समुदायों ने यहां कुहलों- प्राकृतिक रूप से बहने वाली धाराओं का पानी मोड़ने के लिए बनाई गई सतह की नालियों- की पारंपरिक सिंचाई प्रणाली विकसित की।स्वतंत्रता के बाद राज्य के सिंचाई व जन-स्वास्थ्य विभाग ने भी कुहलों के जरिए काफी बहाव सिंचाई स्रोत विकसित किए हैं। हाल के वर्षों में इसकी जरूरत के मुताबिक सामुदायिक कुहलों के अधिग्रहण, उनकी नई रूपरेखा बनाने, उनकी देखरेख और प्रबंधन करने का जिम्मा अपने हाथ में लेना शुरू किया है। कोई भी आम सामुदायिक कुहल छः से
दृढ़ परंपराएं
Posted on 27 Aug, 2010 02:45 PM
तालाबों के पानी के सामान्यतः बहुत साफ न होने के दोष को यदि एक तरफ रख दें तो भी ये कंडी क्षेत्र के गांवों और वहां के पशुओं के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत रहे हैं। अक्सर एक ही तालाब मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए पेयजल के स्रोत का काम करता है।
महाराजा हरि सिंह द्वारा 1931 में स्थापित जम्मू इरोजन कमेटी ने कंडी क्षेत्र की पेयजल समस्या के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा थाः
नरेगा और जल संरक्षण
Posted on 07 Aug, 2010 03:01 PMनरेगा कार्यक्रम श्रृंखला के अन्तर्गत ये कार्यक्रम की ही एक कड़ी है इसमे ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्धारा चलाया गया राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम यानि नरेगा के द्वारा जल संरक्षण के बारे में बात की गई है इस कार्यक्रम में राजस्थान भीलवाड़ा के सुवाणा पंचायत समिति के लोगो की आवाजों को शामिल किया गया है साथ ही नरेगा कार्यक्रम से जुड़े मनोज त्रिपाठी जी के विचारो को शामिल किया गया है।
हौजखास
Posted on 05 Aug, 2010 01:56 PMभारत में जलाशयों का निर्माण लंबे समय तक जारी रहा। इस संदर्भ में फीरोज शाह तुगलक (1351-1388 ई.) का उल्लेख सार्वजनिक निर्माणों के लिए विशेषकर किया जा सकता है। सिंचाई की पांच नहरों, नदियों पर कई बांधों, जलाशयों और पुराने निर्माणों की मरम्मत के लिए उनको विशेष याद किया जाता है।पनघटः परंपरा बिना कैसे बचे पानी
Posted on 29 Jul, 2010 11:15 AM “यह परंपरा धर्म से जुड़ती है, लोक-जीवन से जुड़ती है। पानी का दुरूपयोग न करने कावर्षा जल संग्रह एवं प्रबंधन (प्रशिक्षण निदेशिका)
Posted on 03 Feb, 2010 12:24 PMसबको, साफ, स्वच्छ, सदा पानी के उद्देश्य के लिए काम कर रहा संगठन अर्घ्यम ने डेवलपमेंन्ट अल्टरनेटिव के साथ मिलकर वर्षा जल संग्रह एवं प्रबंधन (प्रशिक्षण निदेशिका) तैयार की है। यह प्रशिक्षण निदेशिका बुंदेलखंड के भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। बुंदेलखंड पिछले कई सालों से सूखे की चपेट में हैं। पिछले 3-4 सालों के अंदर ही सूखे की मार की वजह से चार सौ से ज्यादा किसानों ने आत्महत्