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संरक्षण - जल उपयोग को कम करना
मवेशियों के लिये पोखर-गोकट्टी
Posted on 02 Jul, 2015 11:54 AMपूरे कर्नाटक में धरती पर छोटे-छोटे ताल बिखरे पड़े हैं। गोकट्टी कहे जाने वाले यह ताल मवेशियों के लिये बनाए गए हैं। गोकट्टी जानवरों को पीने के लिये पानी और आराम के लिये स्थल प्रदान करते हैं। बारिश के पानी से भरने वाले यह ताल पूरे वर्ष जानवरों के लिये पानी के स्रोत और समुदाय की सम्पत्ति के रूप में काम करते हैं।हर घर में एक कुआँ : रावुर गाँव की कथा
Posted on 02 Jul, 2015 11:47 AMपिछले दशक में कुछ कुएँ गर्मियों में सूखने लगे। लेकिन गाँव इस बात के लिये सचेत है कि कठोर और निय
कुएँ में खजाना
Posted on 02 Jul, 2015 11:11 AMकर्नाटक राज्य के कोने-कोने में सर्वव्यापी सामुदायिक कुएँ पाए जाते हैं। कुओं के निर्माण में तरह-तरह की डिज़ाइन और तकनीकों का इस्तेमाल होता है। पानी का मुख्य स्रोत समझे जाने वाले कुओं से ग्रामीण समुदायों का अपने–अपने इलाके में दीर्घकालिक रिश्ता है। यह लेख राज्य में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के कुओं में से कुछ कुओं का खाका खींचने के साथ उनसे जुड़ी आदतें और रीति रिवाजों का वर्णन करता है।जल परम्पराएँ : मलनाड कथा
Posted on 25 Jun, 2015 04:09 PMपहले यह पता किया जाता है कि धारा का वह कौन सा स्थल है जहाँ से पानीपारम्परिक कट्टा प्रणाली : जल संरक्षण का पालना
Posted on 21 Jun, 2015 11:36 AMजल संरक्षण के इस तरह के प्रयास का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है क्यबीजापुर के जिन्दा (बोलते) कुएँ
Posted on 21 Jun, 2015 10:14 AMएक बावड़ी आमतौर पर चौकोर होती है और उनके प्रवेश द्वार पर एक मार्ग हपानी यात्रा -1 : इण्डिया के हार्ट की अद्भुत पानी परम्पराएँ
Posted on 26 Mar, 2015 01:46 PMसंस्मरण
विश्व जल दिवस पर विशेष
बिजली न डीजल, फिर भी सिंचाई
Posted on 13 Feb, 2015 03:16 PMप्रकृति, वन्य जीव और जंगल का संरक्षण करते हुए कृषि के लिए पानी की व्यवस्था करना सम्भव हुआ। इससे
मरूभूमि की प्यास को झुठलाते पारम्परिक जल साधन
Posted on 18 Jan, 2015 11:32 AM‘राजस्थान’ देश का सबसे बड़ा दूसरा राज्य है परन्तु जल के फल में इसका स्थान अन्तिम है। यहाँ औसत वर्षा 60 सेण्टीमीटर है जबकि देश के लिए यह आँकड़ा 110 सेमी है। लेकिन इन आँकड़ों से राज्य की जल कुण्डली नहीं बाची जा सकती। राज्य के एक छोर से दूसरे तक बारिश असमान रहती है, कहीं 100 सेमी तो कहीं 25 सेमी तो कहीं 10 सेमी तक भी।
यदि कुछ सालों की अतिवृष्टि को छोड़ दें तो चुरू, बीकानेर, जैलमेर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर आदि में साल में 10 सेमी से भी कम पानी बरसता है। दिल्ली में 150 सेमी से ज्यादा पानी गिरता है, यहाँ यमुना बहती है, सत्ता का केन्द्र है और यहाँ पूरे साल पानी की मारा-मारी रहती है, वहीं रेतीले राजस्थान में पानी की जगह सूरज की तपन बरसती है।