ऐतिहासिक धरोहरों में जल संचयन का इंतजाम

ऐतिहासिक इमारतों में जल संरक्षणदिल्ली के भूजल में आ रही गिरावट सभी के लिए चिंता का विषय है। इस चिंता से पार पाने की लड़ाई में अब ऐतिहासिक धरोहरों को भी लगाया जा रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) अब अपने अधीन संरक्षित धरोहरों का इस्तेमाल जल संरक्षण या यूं कहें कि जल संचयन के काम में लाएगी। एएसआई दिल्ली सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद बसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि लालकिला समेत अन्य संरक्षित स्मारकों में जल संचयन का काम शुरू होने वाला है।

दिल्ली का लाल किला हो या हुमायूं का मकबरा सभी को इस काम में अपना योगदान देना होगा। दरअसल वर्षाजल का अधिकांश अनुपयोगी नालों में होकर बर्बाद चला जाता है। वर्षाजल के संरक्षण और संचयन के परिणाम दुनिया और भारत में बहुत सकारात्मक पाए गए हैं।

तमिलनाडु के चेन्नई में छह-सात साल पहले नए मकान के निर्माण के साथ यह शर्त रख दी गई कि उन्हें अनिवार्य तौर पर वर्षा के क्रम में गिरने वाले जल का संरक्षण करना होगा। नतीजा यह हुआ कि पांच साल के अंदर ही वहां के भूजल स्तर में 50 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। राजस्थान के थार मरुस्थल में भी वर्षा के जल को सहजने की पुरानी परंपरा रही है। एएसआई का यह फैसला स्वागत योग्य तो है लेकिन सवाल यह है कि ऐसे फैसले बरसात का मौसत निकल जाने और सृष्टि द्वारा अपना कोटा गिरा देने के बाद ही क्यों आते हैं?

वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए इन स्मारकों के परिसर में विशेष इंतजाम किए जाएंगे। एएसआई के सूत्रों के मुताबिक लालकिला, हुमायूं का मकबरा समेत अन्य संरक्षित स्मारकों में जल संचयन के इंतजाम की संभावनाओं को लेकर अगले सप्ताह से अध्ययन शुरू हो जाएगा। यह अध्ययन केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा किया जाएगा।

अध्ययन में भू-वैज्ञानिकों द्वारा इन संरक्षित स्मारकों में वाटर रिचार्ज पिट लगाने की जगह तलाशी जाएगी। इसके साथ ही एएसआई के विशेषज्ञ स्मारकों की छतों और परिसर से बरसात का पानी वाटर रिचार्ज पिट तक पहुंचने के लिए स्मारकों में बदलाव पर भी अध्ययन किया जाएगा।

अधिकतर स्मारकों का भूजल स्तर तेजी से नीचे खिसक रहा है, जिसके कारण स्मारकों में लगे नलकूपों से पानी निकलना कम होता चला जा रहा है। जाहिर सी बात है कि इन स्मारकों में नलकूपों के सूखने से यहां के उद्यानों की सिंचाई में समस्या होने लगी है। यही नहीं स्मारकों के आस-पास के रिहायशी क्षेत्रों का जल स्तर भी नीचे जा रहा है।

एएसआई, दिल्ली में कुल 174 ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण का काम देखती है। इनमें हुमायूं का मकबरा यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल है। हुमायूं के मकबरा के निर्माण के समय ही भूजल संरक्षण के इंतजाम किए गए थे, लेकिन समय के साथ यह ज्यादा कारगर नहीं रह गए हैं। नई योजना के तहत पहले चरण में 174 संरक्षित स्मारकों में से कुछ चुनिंदा स्मारकों में जल संचयन की व्यवस्था विकसित की जाएगी।

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Post By: Shivendra
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