प्रति व्यक्ति उपलब्धता में कमी के मूल कारणों में बढ़ती आबादी, बढता प्रदूषण, असामान्य होती वर्षा, जल संचयन में आई कमी तथा पानी पर समान अधिकार व उपयोग में आई विषमता है। अधिक कमाई के लालच में जनसाधारण के हक का सर्वाधिक पानी छीनने वाला औद्योगिक क्षेत्र अभी भी जल संकट से जूझ रहा है। फिर भी वह पानी के पुर्नोपयोग पर ध्यान नहीं दे रहा। वह पानी के पुनर्भरण व पुर्नोपयोग पर ध्यान कैसे दे; यह चिंता और चुनौती.. दोनों का विषय है। 25 सितंबर, राष्ट्र और राजनीति के प्रख्यात विचारक स्व. श्री दीनदयाल उपाध्याय की जन्मतिथि है। खबर है कि हमारी जल संसाधन मंत्री जी इस वर्ष इस तिथि को जलप्रेमियों के लिए खास बनाने की तैयारी में जुटी हुई हैं। उन्होंने तय किया है कि भारत सरकार का जल संसाधन मंत्रालय आने वाली 25 सितंबर को जलसंरक्षण की एक राष्ट्रीय योजना का शुभारंभ करेगा।
मंत्रालयी आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया की कुल आबादी में भारत की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है; जबकि पानी में कुल चार प्रतिशत। मंत्रालय मानता है कि आजादी पश्चात् के इन 67 वर्षों में पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता लगातार घटी है। वर्ष 1947 में 6042 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष, 2001 में 1816 और वर्ष 2011 में 1545 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष। वर्ष 2050 में इसके 1340 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति, प्रतिवर्ष होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। 3.671 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन। एक क्युबिक मीटर यानी एक हजार लीटर पानी।
ऊपरी तौर पर देखें तो, प्रति व्यक्ति 3671 लीटर प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन का आंकड़ा खुश करने वाला है। किंतु यदि इस उपलब्धता में खेती, उद्योग, व्यापार, निर्माण से लेकर तमाम व्यापक खर्च वाले मद की हिस्सेदारी कम कर दें, तो हम पता चलेगा कि रसोई, स्नान, पीने और अन्य घरेलु उपयोग हेतु पानी की कमी संकट बनकर आने वाली है।
हम इसे इस तरह समझ सकते हैं कि फिलहाल भारत में उपयोग करने लायक 690 बिलियन क्युबिक मीटर सतही जल और 433 क्युबिक मीटर भूजल है। इस तरह उपयोग करने लायक जल की कुल भारतीय औसत वार्षिक क्षमता 1123 मिलियन क्युबिक मीटर है। इस उपलब्ध क्षमता का हम अनुशासित उपयोग करें तो वर्तमान जन जरूरत के लिए पानी कम नहीं। किंतु वर्ष 2050 तक भारत की कुल जल जरूरत 1180 क्युबिक मीटर हो जाने के पेश अनुमान को सामने रखें, तो संदेश स्पष्ट है कि जलसंकट आगे और गहराएगा।
तथ्य बताते हैं कि प्रति व्यक्ति उपलब्धता में कमी के मूल कारणों में बढ़ती आबादी, बढता प्रदूषण, असामान्य होती वर्षा, जल संचयन में आई कमी तथा पानी पर समान अधिकार व उपयोग में आई विषमता है। अधिक कमाई के लालच में जनसाधारण के हक का सर्वाधिक पानी छीनने वाला औद्योगिक क्षेत्र अभी भी जल संकट से जूझ रहा है। फिर भी वह पानी के पुर्नोपयोग पर ध्यान नहीं दे रहा। वह पानी के पुनर्भरण व पुर्नोपयोग पर ध्यान कैसे दे; यह चिंता और चुनौती.. दोनों का विषय है।
गौरतलब है कि पानी की गैरअनुशासित उपयोग में खेती की हिस्सेदारी कम नहीं। अतः खेती में पानी का अनुशासित उपयोग एक बड़ी चुनौती तो है ही; किंतु पानी के प्रदूषण का खतरा बढ़ाने में उद्योगों की भूमिका ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि मात्रा कम होने के बावजूद उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक रासायनिक तत्व सर्वाधिक खतरनाक हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 2013 के एक अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2003 की तुलना में बीते दस वर्षों के दौरान देश के 56 प्रतिशत कुओं के जलस्तर में तेजी से गिरावट आई है। कुल गंदे पानी का 90 प्रतिशत हिस्सा पर्यावरणीय मानकों पर शोधित किए बगैर ही नदियों में बहाया जा रहा है। वर्षाजल का मात्र 35 प्रतिशत ही हम संजो पा रहे हैं; शेष 65 प्रतिशत सतही जल के रूप में समुद्र को जा रहा है। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में क्रमशः खेती, घरेलु और औद्योगिक क्षेत्र को पानी के सर्वाधिक उपयोग करने वाले क्षेत्र बताया है। चेतावनी साफ है।
शुक्रवार, पांच सितंबर को भूजल के गिरते स्तर पर खास चिंता जताते हुए जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने योजना को शुरू करने के निर्णय की घोषणा की। उन्होंने जल संरक्षण पर काम कर रहे भिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी में भी चिंता जताई। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि वे बिना भय और संकोच के खुलकर अपनी राय उन्हें बताएं। यदि राय उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर के विषय पर है, तो भी वे संकोच न करें। फिर भी जिन्हें संकोच हो, वे अपनी राय कागज पर लिखकर एक सील बंद लिफाफे में सीधे उन्हें दे सकते हैं।
उमा जी ने उम्मीद जताई कि उनके मंत्रालय के अधिकारी अगले 11 दिन के भीतर ‘राष्ट्रीय जल संरक्षण एवं जल समृद्धि योजना’ का ब्लूप्रिंट तैयार कर लेंगे; ताकि योजना समय से शुरू की जा सके।
बताया जा रहा है कि उक्त तथ्यों के मद्देनजर, मंत्रालय दूरगामी प्रभाववाली योजना का नियोजन करने में जुटा हुआ है। मंत्रालय द्वारा 25 सितंबर को शुरू की जाने वाली यह योजना मूल रूप से संकटग्रस्त जलस्रोतों के पुनरोद्धार को लक्ष्य में रखकर नियोजित की जा रही है।
ऐसा अनुमान है कि योजना का जोर भूजल पुनर्भरण, पानी के अनुशासित उपयोग तथा पुर्नोपयोग संबंधी कायदों व तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी व्यवस्थागत ढांचा खड़ा करने पर होगा।
उल्लेखनीय है कि सरकार ‘राष्ट्रीय जल मिशन’ के अंतर्गत जलोपयोग क्षमता हेतु राष्ट्रीय ब्यूरो की स्थापना करने का निर्णय पहले ही ले चुकी है। हो सकता है कि जल संरक्षण की नई योजना,जलोपयोग क्षमता में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए घरेलु और औद्योगिक क्षेत्र में ‘जलोपयोग क्षमता’ प्रमाणन का प्रावधान भी ले आए।
यह योजना कितनी कारगर होगी, यह तो योजना के अंतिम दस्तावेज और इसके व्यवहार उतरने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल हम खुश हो सकते हैं कि योजना के प्रस्तावकों ने इसके क्रियान्वयन में राज्य सरकारों और गैरसरकारी संगठनों के अलावा आमजन को भी शामिल करने की बात कही है।
2050 तक जल संकट गहराने की चिंता
मंत्रालयी आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया की कुल आबादी में भारत की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है; जबकि पानी में कुल चार प्रतिशत। मंत्रालय मानता है कि आजादी पश्चात् के इन 67 वर्षों में पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता लगातार घटी है। वर्ष 1947 में 6042 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष, 2001 में 1816 और वर्ष 2011 में 1545 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष। वर्ष 2050 में इसके 1340 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति, प्रतिवर्ष होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। 3.671 क्युबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन। एक क्युबिक मीटर यानी एक हजार लीटर पानी।
ऊपरी तौर पर देखें तो, प्रति व्यक्ति 3671 लीटर प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन का आंकड़ा खुश करने वाला है। किंतु यदि इस उपलब्धता में खेती, उद्योग, व्यापार, निर्माण से लेकर तमाम व्यापक खर्च वाले मद की हिस्सेदारी कम कर दें, तो हम पता चलेगा कि रसोई, स्नान, पीने और अन्य घरेलु उपयोग हेतु पानी की कमी संकट बनकर आने वाली है।
हम इसे इस तरह समझ सकते हैं कि फिलहाल भारत में उपयोग करने लायक 690 बिलियन क्युबिक मीटर सतही जल और 433 क्युबिक मीटर भूजल है। इस तरह उपयोग करने लायक जल की कुल भारतीय औसत वार्षिक क्षमता 1123 मिलियन क्युबिक मीटर है। इस उपलब्ध क्षमता का हम अनुशासित उपयोग करें तो वर्तमान जन जरूरत के लिए पानी कम नहीं। किंतु वर्ष 2050 तक भारत की कुल जल जरूरत 1180 क्युबिक मीटर हो जाने के पेश अनुमान को सामने रखें, तो संदेश स्पष्ट है कि जलसंकट आगे और गहराएगा।
कारण कई
तथ्य बताते हैं कि प्रति व्यक्ति उपलब्धता में कमी के मूल कारणों में बढ़ती आबादी, बढता प्रदूषण, असामान्य होती वर्षा, जल संचयन में आई कमी तथा पानी पर समान अधिकार व उपयोग में आई विषमता है। अधिक कमाई के लालच में जनसाधारण के हक का सर्वाधिक पानी छीनने वाला औद्योगिक क्षेत्र अभी भी जल संकट से जूझ रहा है। फिर भी वह पानी के पुर्नोपयोग पर ध्यान नहीं दे रहा। वह पानी के पुनर्भरण व पुर्नोपयोग पर ध्यान कैसे दे; यह चिंता और चुनौती.. दोनों का विषय है।
प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट
गौरतलब है कि पानी की गैरअनुशासित उपयोग में खेती की हिस्सेदारी कम नहीं। अतः खेती में पानी का अनुशासित उपयोग एक बड़ी चुनौती तो है ही; किंतु पानी के प्रदूषण का खतरा बढ़ाने में उद्योगों की भूमिका ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि मात्रा कम होने के बावजूद उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक रासायनिक तत्व सर्वाधिक खतरनाक हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 2013 के एक अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2003 की तुलना में बीते दस वर्षों के दौरान देश के 56 प्रतिशत कुओं के जलस्तर में तेजी से गिरावट आई है। कुल गंदे पानी का 90 प्रतिशत हिस्सा पर्यावरणीय मानकों पर शोधित किए बगैर ही नदियों में बहाया जा रहा है। वर्षाजल का मात्र 35 प्रतिशत ही हम संजो पा रहे हैं; शेष 65 प्रतिशत सतही जल के रूप में समुद्र को जा रहा है। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में क्रमशः खेती, घरेलु और औद्योगिक क्षेत्र को पानी के सर्वाधिक उपयोग करने वाले क्षेत्र बताया है। चेतावनी साफ है।
अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भी राय दे अधिकारी
शुक्रवार, पांच सितंबर को भूजल के गिरते स्तर पर खास चिंता जताते हुए जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने योजना को शुरू करने के निर्णय की घोषणा की। उन्होंने जल संरक्षण पर काम कर रहे भिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी में भी चिंता जताई। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि वे बिना भय और संकोच के खुलकर अपनी राय उन्हें बताएं। यदि राय उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर के विषय पर है, तो भी वे संकोच न करें। फिर भी जिन्हें संकोच हो, वे अपनी राय कागज पर लिखकर एक सील बंद लिफाफे में सीधे उन्हें दे सकते हैं।
उमा जी ने उम्मीद जताई कि उनके मंत्रालय के अधिकारी अगले 11 दिन के भीतर ‘राष्ट्रीय जल संरक्षण एवं जल समृद्धि योजना’ का ब्लूप्रिंट तैयार कर लेंगे; ताकि योजना समय से शुरू की जा सके।
योजना के मूलबिंदु
बताया जा रहा है कि उक्त तथ्यों के मद्देनजर, मंत्रालय दूरगामी प्रभाववाली योजना का नियोजन करने में जुटा हुआ है। मंत्रालय द्वारा 25 सितंबर को शुरू की जाने वाली यह योजना मूल रूप से संकटग्रस्त जलस्रोतों के पुनरोद्धार को लक्ष्य में रखकर नियोजित की जा रही है।
ऐसा अनुमान है कि योजना का जोर भूजल पुनर्भरण, पानी के अनुशासित उपयोग तथा पुर्नोपयोग संबंधी कायदों व तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी व्यवस्थागत ढांचा खड़ा करने पर होगा।
जलोपयोग क्षमता हेतु ब्यूरो व प्रमाणन
उल्लेखनीय है कि सरकार ‘राष्ट्रीय जल मिशन’ के अंतर्गत जलोपयोग क्षमता हेतु राष्ट्रीय ब्यूरो की स्थापना करने का निर्णय पहले ही ले चुकी है। हो सकता है कि जल संरक्षण की नई योजना,जलोपयोग क्षमता में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए घरेलु और औद्योगिक क्षेत्र में ‘जलोपयोग क्षमता’ प्रमाणन का प्रावधान भी ले आए।
आमजन को भूमिका में लाने की तैयारी
यह योजना कितनी कारगर होगी, यह तो योजना के अंतिम दस्तावेज और इसके व्यवहार उतरने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल हम खुश हो सकते हैं कि योजना के प्रस्तावकों ने इसके क्रियान्वयन में राज्य सरकारों और गैरसरकारी संगठनों के अलावा आमजन को भी शामिल करने की बात कही है।
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Post By: Shivendra