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एक विशाल नदी के बनने में कई हजार छोटी नदियों का होता है योगदान
बड़ी एवं विशाल नदियों मे आने वाले जल कि मात्रा समय के साथ घटती गई है, कावेरी, कृष्णा एवं नर्मदा जैसी देश की कुछ प्रमुख नदियों में विगत शताब्दी में जल की मात्रा बहुत प्रभावित हुई है। इस सब के पीछे बेसिन क्षेत्र एवं इन नदियों मे जल लाने वाली छोटी नदियों मे हुए मानव जनित परिवर्तन प्रमुख कारण माना जा सकता है। नदी संरक्षण के प्रारंम्भिक प्रयासों में भी छोटी नदियों की अपेक्षा बड़ी  एवं विशाल नदियों की मुख्य धारा को ही अधिक महत्व दिया गया।
Posted on 03 Jun, 2023 12:19 PM

विगत कुछ वर्षों को छोड़कर नदी संरक्षण पर देश विदेश में किये जा रहे प्रयासों की समीक्षा से ज्ञात होता है कि यह प्रयास मुख्यतः बड़ी नदियों पर समग्र रूप से केंद्रित रहे है जो कि अनेक विविध कारणों से संभवतः बहुत अधिक प्रभावी एवं सफल नहीं हो पाए।गंगा नदी के उदाहरण से ही समझा जा सकता है कि जो प्रयास मुख्य धारा  (गंगा) को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है उनको फलीभूत करने के लिए केंद्र सरकार से धन एवं ससाध

एक विशाल नदी के बनने में कई हजार छोटी नदियां का होता है योगदान, Pc-vivacepanorama
घटते जल संसाधनों में फसलोत्पादन में वृद्धि के लिए वाषोत्सर्जन आधारित जल प्रबंधन एक उचित प्रौद्योगिकी
पानी सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन है जो धीरे-धीरे दुनिया भर में सीमित संसाधन बनता जा रहा है। दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी को वर्ष 2025 तक पूर्ण रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के वर्षावन क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जो पहले से ही जनसंख्या का भारी सकेंद्रण कर रहे हैं। Posted on 02 Jun, 2023 01:42 PM

पानी सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन है जो धीरे-धीरे दुनिया भर में सीमित संसाधन बनता जा रहा है। दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी को वर्ष 2025 तक पूर्ण रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के वर्षावन क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जो पहले से ही जनसंख्या का भारी सकेंद्रण कर रहे हैं। भारत में भी स्थिति गंभीर है, जहां पानी की कमी पहले से ही अधिकांश आबादी को प्रभावित कर रही है। कृषि, भारत

घटते जल संसाधनों में फसलोत्पादन,PC-JAGARN
फसल विविधीकरण से किसान की बढ़ी आमदनी
इसी प्रकार से अगेती चना के साथ मूली और गाजर की 0.20 हेक्टेयर में खेती करने में रू0 7080 का खर्च आया और रू0 18.200 की आमदनी हुई। चना के साथ मिश्रित खेती के रूप में मूली और गाजर की खेती उनके द्वारा किया गया एक नवाचार विधि है। Posted on 02 Jun, 2023 12:53 PM

श्री रामचेला सिंह पिता स्व० बालरूप सिंह, ग्राम चैनपुरा, पोस्ट अधौरा, जिला- कैमूर (बिहार) के जागरूक एवं नवाचारी आदिवासी किसान हैं। उनके पास खेती योग्य 2.4 हेक्टेयर पठारी जमीन कर्मनाशा नदी के तट पर है। नवाचारी किसान के पास सीमित साधन के होते हुए भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। पहले वे परंपरागत ढंग से धान, मक्का, तिल, गेहूँ, चना, मटर, सरसों एवं आलू की खेती करते थे परंतु कृषि विज्ञान केन्द्र, कैमूर

फसल विविधीकरण से किसान की बढ़ी आमदनी,PC-भारतवर्ष
छोटी नदियाँ, बड़ी उम्मीदें
हम यदि आज प्रयास करेंगे तो कल नदियाँ जीवित रहेगी और यदि नदियाँ जीवित रहेगी तो मनुष्य का अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा। यहाँ हम बात करेंगे उन छोटी नदियों को, जिनके नाम तक आज हम भूलने लगे हैं। ये छोटी नदियों हमारे जनतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है। Posted on 02 Jun, 2023 12:15 PM

नदियाँ प्रकृति का मानवता को अनमोल तोहफा है। विश्व में नदियों के किनारे सभ्यताएं विकासित हुई। आज वही नदियाँ अपने अस्तित्व के लिए मनुष्य से सभ्य आचरण की उम्मीद कर रही है।  नदी और मनुष्य का अस्तित्व पारस्परिक सहजीविता की तरह एक-दूसरे पर निर्भर है। हम यदि आज प्रयास करेंगे तो कल नदियाँ जीवित रहेगी और यदि नदियाँ जीवित रहेगी तो मनुष्य का अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा।

छोटी नदियाँ,बड़ी उम्मीदें,Pc-lovepik
पूर्व चेतावनी प्रणाली
पूर्व चेतावनी प्रणाली एक प्रभावी एकीकृत संचार प्रणाली है जो समुदायों को खतरनाक जलवायु परिवर्तन संबंधी घटनाओं की पूर्व सुचना/जानकारी देकर होने वाली घटना के लिए आधुनिक पावर ग्रिड द्वारा अनिवार्य जानकारी प्रदान करता है जिससे मानव एवं पशु जीवन को बचाया जा सके और सम्पत्ति के नुकसान को कम किया जा सके।

Posted on 01 Jun, 2023 02:09 PM

पूर्व चेतावनी प्रणाली वह सिस्टम है जो कि समुदायों की व्यापारिक सम्प्पति, जायदाद आदि का संरक्षण ,रखरखाव और संचालन , पशु एवं वन्य जीवन आदि को बचाने के लिए जल्द से जल्द आवश्यक जानकारी और डेटा प्रदान करके और पूर्व चेतावनी के अन्तर्गत (आपदा के सन्दर्भ) में समय से  बचने के उपायों को अपनाकर मानव एवं पशु जीवन को बचाने में मदद करता है और सम्पत्ति के नुकसान को कई हद तक काम कर सकता है।

पूर्व  चेतावनी प्रणाली,Pc-साइंस डायरेक्ट
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नहरी कमांड के तहत ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा कपास (सफेद सोना) की खेती से किसान के चेहरे पर मुस्कुराहट
नहरों में वार्षिक सिंचाई  की तीव्रता 110% है। इस प्रकार, सिंचाई  के जल की आपूर्ति पूरे  खेती क्षेत्र की सिंचाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है इसके परिणामस्वरूप वहाँ दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने का बहुत अधिक महत्त्व है। इसके अलावा, इस क्षेत्र के किसानों द्वारा भी दबावयुक्त सिंचाई प्रणाली को मान्यता भी मिल रही है। इस क्षेत्र के एक किसान जिनका नाम श्री विनोद कुमार है वो पद्धति के लोकप्रियता के प्रारंभिक चरण में कपास की फसल में दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने वालों में से एक है। Posted on 01 Jun, 2023 12:45 PM

राजस्थान के अर्द्ध शुष्क इलाकों में गंग भाखड़ा और इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) के नहरी कमांड क्षेत्रों में कपास की फसल अपने अधिक वाणिज्यिक मूल्य के कारण प्रचलित है जिसको वहाँ उसके लोकप्रिय नाम सफेद सोने के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा केवल 300 मिमी और इससे भी कम हो सकती  हैं। वहाँ भूजल लवणीय है और सामान्य तौर पर सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है। अतः फसल उत्पादन के लिए

कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नहरी कमांड के तहत ड्रिप सिंचाई,Pc-Jagarn
छोटी नदियों के कायाकल्प में उपग्रह डेटा की भूमिका
Satellite Image of Choti Saryu River.
भूविज्ञान विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण बिहार, (सीयूएसबी) गया
पिछले कुछ दशकों के दौरान यह देखा गया है कि अधिकांश छोटी नदी और उनकी सहायक नदियाँ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और अधिक आबादी एवं अतिरिक्त भूजल शोषण और नदी मार्ग या इसके जल-ग्रहण क्षेत्र के साथ निर्मित भूमि की बड़ी मात्रा में वृद्धि के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। जलविज्ञानी योजनाकारों पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे निर्णय निर्माताओं के बीच जल संसाधन को समझना और प्रबंधित करना और छोटी नदियों की पारिस्थितिकी और प्रवाह को बनाए रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है।
Posted on 31 May, 2023 05:01 PM

नदी चैनल की पहचान परिसीमन और प्रबंधन से तात्पर्य नदियों, तालाब, झीलों की आर्द्रभूमि फसल पैटर्न भूमि उपयोग प्रथाओं भू आकृति विज्ञान और क्षेत्र के भूविज्ञान सहित इलाके की सभी सतह विशेषताओं के आकलन से है।क्योंकि वे बड़ी नदियों को जिन्दा रखती हैं। इस बहुमूल्य स्रोत की रक्षा और छोटी नदियों के कायाकल्प और पैलियो चैनलों की पहचान के लिए वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में अनुसंधान और जल प्रबंधन पहल चल रही

छोटी नदियों के कायाकल्प में उपग्रह डेटा की भूमिका Pc-सरजू विकिपीडिया
फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग
देश में बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण, गहन कृषि और शहरीकरण आदि हमारे विशाल लेकिन सीमित जल संसाधनों पर भारी दबाव डालते हैं। इसके परिणाम स्वरूप, भारत में वर्ष 2050 तक जल की माँग 32 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी, जिसमें औद्योगिक और घरेलू क्षेत्र में ही इस पूरी माँग का 85 प्रतिशत हिस्सा होगा। अनियंत्रित शहरीकरण के कारण भूजल का अधिकाधिक दोहन, जलभृतों को पुनः भरित करने में असफलता एवं जलग्रहण (कैचमेंट) क्षमता में कमी आदि जल संतुलन में अनिश्चित दबाव के कई मुख्य कारण हैं। Posted on 22 May, 2023 03:33 PM
प्रस्तावना

वर्तमान में बढ़ती वैश्विक आबादी के साथ जल की आपूर्ति और माँग के बीच का अंतर बहुत बढ़ता ही जा रहा है और यह एक ऐसे खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है। कि दुनिया के कुछ हिस्सों में यह मानव अस्तित्व के लिये खतरा पैदा कर रहा है दुनिया भर में बहुत से वैज्ञानिक जल संरक्षण के नये और आधुनिक तरीकों पर अनुसंधान कर रहे हैं। लेकिन अभी भी इसमें उतनी प्रगति प्राप्त नहीं हु

फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग, PC-organicawater
नमी तनावः सब्जी वर्गीय फसलों पर इसका प्रभाव एवं संभावित प्रबंधन विकल्प   
वर्तमान में भारत के लगभग 140 मिलियन हेक्टेयर के बुआई क्षेत्र में से 68% क्षेत्र सूखे की स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील है और लगभग 50% ऐसे क्षेत्र को 'गंभीर' श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है जहाँ सूखे की आवृत्ति लगभग नियमित रूप से घटित होती रहती है। Posted on 22 May, 2023 02:39 PM

प्रस्तावना

ऐसे कृषि क्षेत्र जो प्रायः सूखे की समस्या से प्रभावित रहते हैं वो सभी क्षेत्र सूखे के कारण 50% तक या इससे भी अधिक फसल उपज में हानि का अनुभव कर सकते हैं। दुनिया की 35% से अधिक कृषि भूमि की सतह को शुष्क या अर्ध शुष्क माना जाता है जो अधिकांशतः कृषि उपयोग के लिये अपर्याप्त वर्षा प्राप्त करती हैं। भारत के लगभग दो तिहाई भौगोलिक क्षेत्र में 1000 मिमी से कम

नमी तनावः सब्जी वर्गीय फसलों पर इसका प्रभाव एवं संभावित प्रबंधन विकल्प,PC-VikasPedia
फसल एवं जल की उत्पादकता तथा आय में वृद्धि हेतु कुसुम - मटर अंतरसस्य फसल पद्धति
अंतरसस्य फसल पद्धति में एक ही स्थान पर एक ही भूमि के टुकड़े में एक साथ दो या इससे भी अधिक फसलों की खेती की जाती है अंतरसस्य फसल पद्धति को अपनाकर फसल की समान तुल्य उपज और अर्थिकी को इसमें संसाधनों की उपयोग दक्षता में वृद्धि और मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की वजह से मृदा की उर्वरता में सुधार द्वारा बढाया जा सकता है क्योंकि दलहन फसलें मृदा में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है।
Posted on 22 May, 2023 02:28 PM
पृष्ठभूमि 

 मटर के साथ

 मटर की वैज्ञानिक खेती, Pc- krishakjagat
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