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झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम
देश की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में पिछले दिनों एक दृश्य ने शहरवासियों समेत पूरे देश को चिंता में डाला है। यहाँ की बेल्लनदर (बेलंदूर) झील में आग लगने की घटनाएं हुईं। ऐसा नजारा इस झील में कई बार हो चुका है। Posted on 28 Apr, 2023 10:47 AM

झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम

झील-तालाबों बिन कैसे रहेंगे हम,Pc-elephango
प्रकृति तटस्थ होती है
विज्ञान ने इतने सालों की खोज और शोध से यह तो संभव बना दिया है कि हम ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की आहट पहले से जान जाते हैं और किस्म किस्म की छतरियां तानकर अपनी जान बचा लेते है। Posted on 27 Apr, 2023 05:01 PM

प्रकृति तथ्य होती है- तब "अम्फान" आकर गुजर गया था, अब "निसर्ग " आकर गुजर गया है। राहत की आवाज सुनाई दे रही है कि चलो गुजर गया! हिसाब यह लगाया जा रहा है कि "अम्फान " उड़ीसा से कटकर निकल गया, "निसर्ग" ने मुम्बई के चेहरे पर कोई गहरी खरोंच नहीं डाली तूफान कमजोर पड़ गया ! कैसे इसका हिसाब लगाया आपने कि तूफान कमजोर पड़ गया?

प्रकृति तटस्थ होती है,PC-Fzilla
गोमती नदी के प्रदूषित जल में शैवाल विविधता पर एक अध्ययन
लखनऊ के आस-पास गोमती नदी के कई महत्वपूर्ण स्थलों से शैवाल विविधता का अध्ययन करने के लिए एकत्रित नमूनों का विश्लेषण करने पर कुल तेईस शवालों की प्रजातियां पाई गई। इन तेईस प्रजातियों में सोलह सुनहरे भूरे (diatoms) शैवाल के अतिरिक्ति चार हरे शैवाल (green algae) तथा तीन नीलहरित शैवाल (blue-green algae) उपस्थित थे। हरित शैवाल प्रदूषण संवेदनशील होने के कारण केवल स्थल 'क' में जहाँ पानी प्रदूषण रहित था। Posted on 26 Apr, 2023 02:08 PM

 

गोमती नदी के प्रदूषित जल में शैवाल विविधता पर एक अध्ययन, PC-TWP
जल संरक्षण एक राष्ट्रीय दायित्व
शहरों में भूजल स्तर लगातार नीचे को खिसकता जा रहा है। पारंपरिक जल संरक्षण के व्यावहारिक उपायों को हमने आधुनिकता के दबाव में त्याग दिया। आज जल संरक्षण को एक राष्ट्रीय दायित्व के रूप में अपनाने का समय आ गया है। लेखक भारतीय संदर्भ में जल संसाधन के अनुभवी विशेषज्ञ है और प्रस्तुत लेख में उन्होंने भारत में जल के भौगोलिक वितरण, वर्षा के पैटर्न, पेयजल, तालाब संस्कृति और जल संरक्षण हेतु जल जागरूकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की है। Posted on 25 Apr, 2023 05:30 PM

आज समूची दुनिया के जल संसाधन गहरे संकट में हैं। भारत भी जल संकट का सामना कर रहा है। देश के बहुत बड़े भूभाग पर जल संकट की छाया मंडरा रही है। देश के जल स्रोत सिमटते जा रहे हैं। नदियों तथा झीलों में जल की मात्रा कम होती जा रही है। जो जल शेष है, वह भी प्रदूषण की चपेट में है। शहरों में भूजल स्तर लगातार नीचे को खिसकता जा रहा है। पारंपरिक जल संरक्षण के व्यावहारिक उपायों को हमने आधुनिकता के दबाव में त्

जल संरक्षण एक राष्ट्रीय दायित्व,Pc-DB
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (Effects of Global Warming in Hindi)
पृथ्वी का औसत बार्षिक तापमान लगभग 15° C है। यदि ग्रीनहाऊस गैस न हो तो पृथ्वी का तापमान गिरकर लगभग 20°C हो जाएगा। पृथ्वी को गर्म रखने की वायुमंडल की यह क्षमता ग्रीनहाऊस गैसों की उपस्थिति पर निर्भर करती है। यदि इन ग्रीनहाऊस गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाए तो ये अल्ट्रावॉयलेट (पराबैंगनी किरणों को अत्यधिक मात्रा में अवशोषित कर लेंगी। Posted on 24 Apr, 2023 04:57 PM

हमारी पृथ्वी के चारों ओर का वायुमंडल एक कांच की खिड़की की तरह है जो सूर्य से आने वाले अधिकांश विकिरण को पृथ्वी के धरातल तक प्रवेश करने तो देता है, किन्तु पृथ्वी द्वारा वापस भेजे जाने वाले लंबे विकिरण को अंतरिक्ष में जाने से रोकता है। बाहर जाने वाले इस लंबे अवरक्त विकिरण को ग्रीनहाऊस गैस द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है जो कि वायुमंडल में साधारण रूप में मौजूद रहती हैं। वायुमंडल पुनः इसके कुछ भाग क

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव,Pc-Hwp
समुद्री शैवाल की खेती और प्रसंस्करण क्षेत्र असंख्य संभावनाएं
वैश्विक दृष्टि से समुद्री शैवाल का उत्पादन लगभग 32.59 मिलियन टन के नए शिखर पर पहुंच गया है, जिसकी कीमत लगभग 13.3 बिलियन अमेरीकी डॉलर है। इसमें से तकरीबन 97.1% (91.5 मिलियन टन) पूरी तरह से समुद्री शैवाल की खेती द्वारा उत्पन्न किया जाता है Posted on 24 Apr, 2023 11:00 AM

समुद्री शैवाल खारे पानी में पाया जाने वाला एक वृहद शैवाल है विविध वंशावली के अंतर्गत इन्हें मूलतः तीन वर्गों जैसे क्लोरोफाइटा, फियोफाइटा और रोडोफाइटा में विभाजित किया गया है। आगार, कैरेजेनन और एल्गिनेट प्राथमिक हाइड्रोकार्बन हैं जिनकी उत्पत्ति समुद्री शैवाल से ही होती है। इन हाइड्रोकार्बन में उच्च व्यावसायिक क्षमता होती है, जिनका उपयोग दैनिक जरूरतों के उत्पादों में नियमित रूप से किया जाता है।

समुद्री शैवाल की खेती,Pc-Forbes india
सीसा प्रदूषण का अर्थ, कारण और निवारण (Meaning, causes and prevention of lead pollution in Hindi)
सीसा अपनी प्राकृतिक अवस्था में बहुत कम पाया जाता है। परन्तु इसे अयस्कों से बहुत सुगमता से प्रगलित किया जा सकता है। अनुमानतः भारत में सीसे और जस्ते के संयुक्त अयस्क लगभग 384  मिलियन टन हैं जिसमें राजस्थान से उपर्युक्त अयस्कों की मात्रा 335 मिलियन टन है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा, बिहार और पश्चिमी बंगाल में भी इसके कुछ अयस्क हैं। भारत में सीसे की उत्पादन क्षमता लगभग 89,000 टन प्रति वर्ष है जो कि विश्व बाजार में कुल उत्पादन क्षमता का केवल 0.5 प्रतिशत है। Posted on 22 Apr, 2023 01:18 PM

 

आज से लगभग 4000 से 5000 वर्ष पूर्व के मानव की अपेक्षा आज के मानव में सीसे की मात्रा लगभग दस से सौ गुना अधिक हो गई है और विकसित तथा विकासशील देशों के लिए पर्यावरण में सीसे का बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बन गया है।

सीसा प्रदूषण का अर्थ, कारण और निवारण (Meaning, causes and prevention of lead pollution in Hindi)
एक जिंदगी वृक्षों के नाम प्रकृति सहचरी वंगारी मथाई
नोबल शांति पुरस्कारों को कोटि में पर्यावरण संरक्षण को भी अहमियत दी जाने लगी, कदाचित पर्यावरण की बदहाली से भयाक्रांत मानवता की चीख-पुकार ने नोबल समिति को उद्वेलित किया हो तभी तो एक साधारण सी कीनियाई महिला, जो कभी पौधरोपण के लिए महिलाओं को कुछ शिलिंग देती थी, ने कालांतर में (वर्ष 2004) नोवल की बुलंदियों का संस्पर्श किया। उस साधारण सी महिला ने वस्तुतः पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में, अपनी धरती की हरीतिमा बचाने के उपक्रम में असाधारण कार्य किए थे Posted on 22 Apr, 2023 11:15 AM

नोबल पुरस्कारों के साथ एक विसंगति है। वर्ष 1901 से आरंभ नोबेल पुरस्कार भौतिकी  रसायन, कार्यिकी (चिकित्सा) के निमित्त तो हैं लेकिन नोवल प्रतिष्ठान गणित को कोई श्रेय नहीं देता है। यह अपने आप में विस्मयकारी है क्योंकि गणित विद्या तो सारे विज्ञानों की पटरानी है। गणित विद्या न होती तो आज न राकेट होते, न मिसाइलें, न कम्प्यूटर और न ही संचार क्रांति का पदार्पण होता। बहरहाल, नोयन पुरस्कार चयन समिति अर्थ

एक जिंदगी वृक्षों के नाम प्रकृति सहचरी वंगारी मथाई,Pc-one earth
शिक्षा, पारंपरिक ज्ञान और हमारा पर्यावरण
आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूरदराज के गांवों में, गांव के लोगों के अनुरोध पर हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गांवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था, पहाड़ के गांव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं, एक गांव से दूसरे गांव की दूरी तय करने में घंटों लग सकते हैं, अब तो खैर स्थिति बदल गई है, सड़कें भी बन गई हैं और सरकारी स्कूलों की तादाद भी बढ़ी है।
Posted on 20 Apr, 2023 04:35 PM

आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूरदराज के गांवों में, गांव के लोगों के अनुरोध पर हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गांवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था, पहाड़ के गांव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं, एक गांव से दूसरे गांव की दूरी तय करने में घंटों लग सकते हैं, अब तो खैर स्थिति बदल गई है, सड़कें भी बन गई हैं और सरकारी स्कूलों की तादाद भी बढ़ी है।

शिक्षा, पारंपरिक ज्ञान और हमारा पर्यावरण,Pc- Fii
तकनीकी पर्यावरण का नया चेहरा
पिछले दो दशकों में हमारे देश में तकनीक आधारित डिजिटल सेवाओं का बड़ा विस्तार हुआ है। उसका सबसे बड़ा प्रभाव बैंकिंग और डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में देखने को मिलता है। सरकार द्वारा ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा देने के कारण ऑनलाइन लेन-देन में आशातीत बढ़ोतरी हुई है। माना जाता है कि अब लगभग चालीस प्रतिशत लेन-देन ऑनलाइन माध्यमों से ही हो रहा है। देश में पंचायत स्तर तक नागरिक सुविधा केंद्र यानी कॉमन सर्विस सेंटर का जाल बिछाया गया है, जो कई तरह की सेवाएं प्रदान कर रहे है। किताबें हों, कपड़े हों या घरेलू उपयोग का कोई और सामान, घर बैठे मंगवाया जा सकता है। और अब तो राशन और सब्जियां आदि भी सीधे दुकान से घर पहुंचने की व्यवस्था की जा रही है। शिक्षा, आवागमन, यातायात, चिकित्सा, शोध और विकास जैसे सभी क्षेत्रों में सूचना तकनीक ने अपना हस्तक्षेप बढ़ा लिया है। यह प्रगति की दिशा में एक अच्छा सूचक है। भारत सूचना सेवाओं के लिए एक निर्यातक देश माना जाता है और हमें विश्व में सॉफ्ट पॉवर की तरह देखा जाता है।
Posted on 20 Apr, 2023 03:37 PM

ऊपर से देखने पर लग सकता है कि हमारे देश में सूचना क्रांति बदस्तूर जारी है पर वर्तमान त्रासदी ने डिजिटल डिवाइड का एक नया चेहरा सामने ला दिया है। लॉकडाउन का पहला झटका झेलने के बाद अधिकतर शहरी मध्यवर्ग और उच्च वर्ग अपने घरों में बंद हो गया। उससे अपेक्षा भी यह की जा रही थी। उसके पास अन्य लोगों से बेहतर डिजिटल सुविधाएं थी। जिनसे यह वर्क फ्रॉम होम जैसी लग्जरी का लाभ उठा सकता था। उसके पास शायद घर में

तकनीकी पर्यावरण का नया चेहरा, Pc-stockholm
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