क्यों चाहिए निर्मल धारा

क्यों चाहिए निर्मल धारा,Pc-Sadhguru
क्यों चाहिए निर्मल धारा,Pc-Sadhguru

नदियाँ मनुष्य को सदैव आकर्षित करती हैं। कभी हम उन्हें देवी समझकर पूजने जाते हैं तो कभी सखी समझकर अटखेलियां करने कुछ समय नदी किनारे व्यतीत करने के बाद हम लौट आते हैं अपनी जिंदगी में फिर किसी दिन समाचार में नदी और उसे साफ करने की कोशिशें एवं उसकी स्वछता के लिए चलाये जाने वाले अभियान देखने को मिलते हैं। एक बार फिर हम नदी को खबर में ही छोड़ देते हैं क्योंकि नदी की धारा निर्मल हो या ना हो इससे हमें व्यक्तिगत रूप से क्या फर्क पड़ता है। हमारे घर में तो पानी को शुद्ध करने की मशीन लगी है, अब नदियाँ साफ हो या ना हो हम तो साफ पानी पी लेंगे। नदी सरकार की जिम्मेदारी हैं.सरकार ही संभाल लेगी।

भारतीय संस्कृति में नदी और मनुष्य के बीच बहुत गहरा रिश्ता रहा है। रिश्ता आज भी कायम है लेकिन नदियों के प्रति रवैया बदल चुका है। नदियों के प्रति हमारा रवैया वैसा ही है, जैसा कई अन्य महत्त्वपूर्ण पहलूओं की ओर है-वैचारिक स्तर पर पूजनीय और आचरण के स्तर पर उपेक्षित यही कारण है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे गांव से बहने वाली कोई नदी खत्म हो चुकी है। शहर के बीच से बहने वाली कोई नदी, गंदा नाला बन गई हैं और देश की बडी नदियाँ समस्याओं से जूझ रही है। नदी के घाट से चंद किलोमीटर दूर आने के बाद नदी से हमारा सरोकार भी खत्म हो जाता है और हमे लगता है कि नदी से हमारा क्या वास्ता?

बहुमंजिला इमारतों में कैद हमारी जिंदगी को 24 घंटे भरपूर बिजली मिले इसलिए एक नदी बांध से बंध गई। हमारे रेफ्रीजिरेटर में फल सब्जियों का अंबार लगा रहे इसलिए एक नदी नहरों में बंटती रही और हमारी प्यास बुझाने के लिए अब पाइपलाइन में भी समाने लगी। फिर भी हमें लगता है कि नदी से हमारा क्या सरोकार ? नदी की धारा निर्मल हो गई तो हमें क्या मिलेगा? हो सकता है. कि ऐसे सवाल आपके मन में भी आते हो, चलिए आज हम साथ मिलकर इन सवालों के जवाब तलाशते है एक अंग्रेजी कविता के अनुसार जीवन में अगर प्रेम ना मिले तो भी हजारों जोग बिना प्रेम के जीवित रह सकते है लेकिन यदि पानी ना मिले तो एक भी इंसान जीवित नहीं रह सकता। पानी की महत्ता को समझाने का यह एक बढ़िया उदाहरण है. पानी जीवन की सबसे बड़ी अनिवार्यता है जीवन के इस आवश्यक तत्व को हम तक पहुंचाने का सबसे विशाल जरिया है-नदियाँ नदियों की निर्मलता के बगैर पानी और पानी के भीतर और बाहर बसे जैवपरितंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। यह सोचना सही है कि आज अधिकांश लोग नदी का पानी सीधे नदी से लेकर पीने के लिए इस्तेमाल नहीं करते हैं यह समझना भी जरूरी है कि जिस भी माध्यम से पानी आप तक पहुंच रहा है उस तंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है-एक नदी फिर वो गंगा हो या नर्मदा, कावेरी हो या गोदावरी, ब्रह्मपुत्र हो या सिंधु जो पानी आज हम पी रहे हैं और इस्तेमाल कर रहे हैं वो किसी नदीतंत्र का हिस्सा है यहां तक कि हमारे शहरों और कस्बों का भू-जल भी किसी ना किसी नदी घाटी का हिस्सा है।

बाजारवाद के इस दौर में मनुष्य हर बीज में अपना हित तलाशना चाहता है फिर बात प्राकृतिक संसाधनों को सहेजने की ही क्यों ना हो? अगर बाजार और लाभ के नजरिए से देखें तो भी नदी की निर्मलता से हमें फायदा ही होगा यदि  नदी की धारा निर्मल होती है तो हमें मिलेगा निर्मल पानी यही पानी हमारे खेतों, बागानों तक पहुंचेगा तो मिलेगी अच्छी फसले, अच्छी फसलों से मिलेगा बेहतर पोषण, बेहतर पोषण हमें देगा अच्छा स्वास्थ्य बेहतर जीवनस्तर और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए हमे कम खर्च करना होगा।  

आज कई सम्पन्न परिवार ऑर्गेनिक फूड प्राकृतिक तरीको से लगाये गए खाद्यानों का इस्तेमाल करते हैं और इसके लिए अतिरिक्त धनराशि भी खर्च करते हैं क्योंकि वे अपने स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहते आर्गेनिक फूड से भी ज्यादा जरूरी है निर्मल जल नदियों की निर्मलता, निर्मल जल को सर्वसुलभ बना देगी और हमें भविष्य में कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से बचाएगी।नदियों की निर्मलता हमें सतत विकास सस्टेनबल डेवलपमेंट के सपने को साकार करने की दिशा में अग्रसर करेगी। नदियों को उपेक्षित कर हम शहरी अधोसंरचना मसलन हाईवे पुल, मेट्रो, बहुमंजिला इमारतें बना लें तब भी यह विकास हमारे काम नहीं आ सकेगा क्योंकि जीवन की मूल आवश्यकताअधूरी रह जाएगी।

इतना ही नहीं यदि नदियाँ स्वच्छ होंगीतो उनके इर्द-गिर्द पनपने वाले पौधे, जड़ी-बूटियाँ, नदी में रहने वाली मछलियाँ और तो और आसमान के पछी भी सुरक्षित रहेंगे यानी नदियाँ साफ, स्वच्छ और निर्मल होंगी तो धरती सुहानी होगी। आईये नदी की निर्मल धारा के बारे में विस्तार से जानते है।

क्या है निर्मल धारा ?

नदी की निर्मल धारा का तात्पर्य उसके प्राकृतिक स्वरूप से है। यदि सामान्य भाषा में कहें तो ऐसी धारा जिसका पानी उसमें मूल रूप से रहने वाले जलीय जीव-जंतु के आवास, पोषण और प्रजनन के अनुकूल हो जलीय जतुओं के लिए पानी में पर्याप्त ऑक्सीजन हो पानी में मौजूद खनिज लवणों का अनुपात उक्त स्थान की भू-आकृतिक स्थितियों और उक्त स्थान की सतह के भौतिक और रासायनिक विशेषताओं के अनुरूप हो नदी में हानिकारक सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति नगण्य हो और उनके पनपने की संभावना भी न्यूनतम हो

कैसे बनती है निर्मल धारा

नदियों में इतना सामर्थ्य होता है कि वे स्वयं ही अपनी धारा को निर्मल रखती है। धीरे-धीरे नदियों का यह सामर्थ्य समाप्त हो रहा है। वैज्ञानिक भाषा में कहा जाता है कि हर नदी की एक स्वांगीकारक क्षमता यानी एसेमिलेटिव कैपेसिटी होती है। मानवीय हस्तक्षेप या अन्य कारणों से जो प्रदूषक नदी में पहुंच जाते है एसेमिलेटिव कैपेसिटी तक नदियाँ उनका निदान स्वयं कर लेती हैं। जब एसेमिलेटिव कैपेसिटी से अधिक प्रदूषक तत्व नदियों में पहुंचते है तब ये प्रदूषित होती हैं यही कारण है कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में अब नदी की स्वच्छता के अभियान की बजाय नदियों को पुनर्जीवित करने का  सामर्थ्यवान बनाने का अभियान चलाया जा रहा है। इन अभियानों में नदियों को उनके प्राकृतिक स्वरूप लौटाने के प्रयास चल रहे हैं ताकि नदी की धारा निर्मल और अनवरत प्रवाहित होती रहे।

सिर्फ मनुष्य के लिए नहीं बहती नदी

संस्कृत में एक कहावत है परोपकाराय वहन्ति नद्यः अर्थात नदियाँ परोपकार के लिए बहती है। यह सच है कि नदियाँ समस्त जीव-जंतुओं पर परोपकार के लिए बहती हैं। हम मनुष्यों को लगता है नदियों पर नदी के पानी पर सिर्फ हमारा अधिकार है। यही मानसिकता पहले नदी के लिए फिर पर्यावरण के लिए और अंततः मनुष्यों के लिए घातक साबित होती है। हमें यह समझना होगा कि नदी सिर्फ हमारी नहीं है उस पर जलीय जीव-जंतुओं समेत अन्य स्थलीय जीव-जंतुओं का भी अधिकार है।

चित्र 1 प्रदूषण के स्त्रोत
चित्र 1 प्रदूषण के स्त्रोत 
Pic-2
चित्र 1 प्रदूषण के स्त्रोत 

कैसे प्रदूषित होती है निर्मल धारा

नदियों के प्रदूषण के कई कारण हैं कुछ प्रत्यक्ष नजर आ जाते हैं और कुछ नहीं जो कारण प्रत्यक्ष नजर आते हैं उन्हें तकनीकी भाषा में प्रदूषण का प्वाईंट सोर्स कहते है जो प्रत्यक्ष नजर नहीं आते उन्हें नॉन पॉइंट सोर्स - कहा जाता है। ऊपर दिए गए चित्रों द्वारा आप नदियों तक प्रदूषक तत्वों के पहुंचने की प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझ सकेंगे।शहरी अपशिष्ट और औद्योगिक अपशिष्ट का नदियों में मिल जाना उनकी निर्मलता की राह में सबसे बड़ा अवरोध है। औद्योगिक अपशिष्ट जहां नदियों में कई किस्म के रसायनों की मिलावट का जिम्मेदार है वहीं शहरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल के नदियों में मिल जाने से नदियों में हानिकारक जीवाणुओं, कार्बनिक और अकार्बनिक प्रदूषकों का बड़ी मात्रा में लगातार नदी में प्रवेश होता है। धीरे-धीरे प्रदूषक तत्वों की मात्रा नदी की स्वांगीकरण क्षमता से अधिक हो जाती है।

खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति और नदी के किनारों और बेसिन क्षेत्रों में फैला कचरा भी वर्षा के जल के साथ नदियों तक पहुंच जाता है। इसी तरह खेतों में उपयोग किये जाने वाले उर्वरक और कीटनाशक भी नदियों तक पहुंच जाते हैं। भारत में नदियों के प्रति नागरिकों की धार्मिक आस्था भी जुड़ी है और हमारे धार्मिक क्रियाकलापों पर भी बाजारवाद का असर है  हम पूजन सामग्री भी फैंसी इस्तेमाल करते हैं और पूजा के बाद इसे नदियों में विसर्जित भी कर देते हैं। अप्राकृतिक पूजन सामग्री (प्लास्टिक के दीपक, प्लास्टिक की थैली में बंद फूल) का नदियों में विसर्जन, मनुष्य या पशुओं के शव को नदी में डालने जैसी प्रवृत्तियां भी नदियों की निर्मलता को प्रभावित करती है।

 

Pic-3
इस श्लोक के अनुसार गंगा नदी के किनारे निम्न लिखित 14 गतिविधियों को प्रतिबंधित बताया गया है।

प्राचीन ज्ञान में छुपा है समाधान

नदियों को शुद्ध करने के लिए शासन अपने स्तर पर काम कर रहा है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और तकनीक के समन्वय से नदियों की धारा को निर्मल बनाने के प्रयास जारी है। नदी की धारा निर्मल बनी रहे इसका समाधान हमारे पूर्वज हजारों वर्ष पहले बता गए थे। ब्रह्मांड पुराण में मनुष्य को यह शिक्षा दी गई है कि गंगा नदी के समीप मनुष्य को कैसा व्यवहार करना चाहिये, उन्हीं शिक्षाओं को एक श्लोक में संकलित किया गया है जो इस प्रकार है:

उक्त श्लोक के अनुसार जो गतिविधि व्यक्तिगत रूप से भी गंगा नदी के किनारे पर नहीं होनी चाहिए थी, वह अप्रत्यक्ष रूप से सामूहिक तौर पर होने लगी और शहरों का सीवेज विभिन्न माध्यमों से नदी तक पहुंचने लगा। उपरोक्त वर्णित श्लोक गंगा के संदर्भ में लिखा गया है किंतु वर्तमान स्थितियों में यह अन्य नदियों के लिए भी प्रासंगिक है।

यदि गंगा और अन्य नदियों को उनके प्राचीन स्वरूप तक पहुँचाना है तो उक्त श्लोक में वर्णित निर्देशों का पालन करना होगा। मानवजनित गतिविधियों से कई तरह का अपशिष्ट पैदा होता है जो कि अपशिष्ट प्रबंधन की कुछ त्रुटियाँ और सही जानकारियों के अभाव में हमारी नदियों तक पहुंच जाता है। इस समस्या का निराकरण संभव है जिसकी चर्चा हम अगले आने वाले अंकों में करेंगे, साथ ही जानेगें कि नदी की धारा को निर्मल बनाने के लिए क्या करना चाहिए और क्या किया जा रहा है।

सिर्फ एक धारा नहीं

आमतौर पर नदी का तात्पर्य हम नदी की मुख्यधारा से समझते हैं। मसलन गंगा की धारा, यमुना की धारा या नर्मदा की धारा । सांस्कृतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से यह सही है लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नदी सिर्फ एक धारा नहीं बल्कि एक तंत्र हैं। मुख्यधारा और सहायक नदियों से मिलकर बना तंत्र इस तंत्र की अन्य धाराओं में यदि किसी भी जरिए से सीवेज या अन्य प्रदूषित जल मिलेगा तो अंततः नदी की मुख्यधारा प्रदूषित होगी। बीते तीन दशकों में हमारे विशाल देश में गाँव, खलिहान, मैदान, जंगल और पहाड़ीया घाटी और इन सबको घटाकर शहरों का विस्तार होता गया। बड़ी और खूबसूरत इमारतें खड़ी करने की दौड़ में हम आगे बढ़ गए लेकिन इन इमारतों से निकलने वाले अपशिष्ट जल का प्रबंधन कैसे होगा, यह सोचने में हम पीछे रह गए। साल-दर-साल सीवेज बढ़ता गया और नदियों की निर्मलता घटती गई। नदियों के प्रदूषण का बड़ा कारण अनट्रीटेट ( अनुपचारित) सीवेज है। इसी सीवेज के चलते लगभग सात वर्ष पहले गंगा नदी में कोलीफार्म बैक्टीरिया की मौजूदगी तय सीमा से 1000 गुना अधिक हो गई थी।

मैं नदी, कुछ कहना चाहती हूँ....

मैं नदी हूँ यही नदी जो तुम्हारे गाव से बहती है, वही नदी जिसे स्कूल जाते हुए तुम उत्सुकता से देखते थे. वही नदी जिसके जलीय जीव-जन्तु तुम्हें आकर्षित करते थे, जिसके किनारे की वनस्पतियाँ तुम्हारे काम आती थी, मैं वहीं नदी हूँ जिसके ऊपर से रेलगाडी में गुजरते हुए तुम डर जाते थे। तुम मुझे माँ कह कर पुकारते हो, मेरे करीब आते हो तो मुझे अति प्रसन्नता होती है पर जानते हो.. तुम्हारी कुछ आदतों से मुझे तकलीफ भी होती है जैस

जब तुम आपस में बात करते हुए मुझे गंदा नाला कहते हो, जबकि मैं नाला नहीं एक नदी हूँ। क्या हुआ जो मेरा नाम तुम्हारे स्कूल की किताबों में नहीं है, पर तुम्हारे दादा जी जानते होगे कि मेरा भी एक नाम था और है मैं बड़ी नदियों की तरह लंबी दूरी तक नहीं बहती लेकिन अंत रूप में  मैं उसी बड़ी नदी का हिस्सा बन जाती हूँ जिसकी तुम पूजा करते थे। जब तुम मेरे किनारों पर अतिक्रमण करते हो जैसे तुम्हें सास लेने और जाने के लिए खुली हवा की जरूरत मेरे जीवन के लिए भी जरूरी है कि मेरे किनारों से कुछ दूरी तक कोई निर्माण ना हो ताकि बारिश का पानी और मिट्टी मुझ तक पहुंचते रहे।

जब तुम मेरे किनारों पर गंदगी फैलाते हो, क्या मैं कचरे फेंकने की जगह हूँ? आजकल त्योहारों पर लोग मुझे बिंदी, चूडियाँ लिपस्टिक और ना जाने क्या-क्या सामान अर्पित करते हैं। उनकी मासूमियत पर मैं मुस्कुरा देती है, परन्तु मेरा असली श्रृंगार तो मेरे किनारो पर बसे जंगल है, उनकी वनस्पतियां है उनके फूल है। सूरज की लालिमा खुद मेरा श्रृंगार करती है। तुम मेरे करीब आओ मुझे अच्छा लगता है लेकिन ये सारा सामान उनको दे दो जिन्हें इसकी जरूरत है।

Path Alias

/articles/kayaon-caahaie-nairamala-dhaaraa

Post By: Shivendra
×