उत्तराखंड

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उत्तराखंड में हिम संसाधन एवं प्रबंधन का महत्व
Posted on 28 Apr, 2012 11:04 AM उत्तराखंड राज्य के प्राकृतिक संसाधनों में जल का सर्वाधिक महत्व है। राज्य की अधिकांश नदियों का स्रोत हिमाच्छादित क्षेत्रों में होने के कराण, यहां की नदियों के सतत् जल प्रवाह पर हिमनदियों के व्यवहार का अत्यधिक प्रभाव होता है। पर्वतों पर हो रहे विकास कार्यों, शहरी कारणों तथा वैश्विक तापवृद्धि के कारण उत्तराखंड की ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व की हिमनदियों पर कुप्रभाव पड़ा है। यदि समय रहते इन हिमसागरों
जनभागीदारी से सफल सिंचाई जल प्रबंधन
Posted on 28 Apr, 2012 10:53 AM

इस देश में सिंचाई प्रबंधन की दो भिन्न व्यवस्थाएं चालू हैं एक जो बहुत पहले कृषक समुदाय द्वारा सामूहिक प्रयास से व

जल संग्रह में जन सहकार द्वारा ग्रामीण जल समृद्धि एवं रोजगारी
Posted on 28 Apr, 2012 10:29 AM गुजरात सरकार ने राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में भूजल सतह की गिरावट एवं ग्रामीणों के सूरत एवं अहमदाबाद जैसे शहरों की और स्थानातंरित होने की समस्या को गंभीरता से लेते हुए 1997-1998 वर्ष में इस समस्या के समाधान हेतु जलसंग्रह योजनायें शुरु की, एवं उनकी प्रगति की समीक्षाएं करते हुये उनके क्रियान्वयन में आने वाली रुकावटों को दूर करने के उपाय सुझाये। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज तालाब, खेत, तलाबड़ी, सीमतलबड़
झील के जल संसाधन का विकास, संरक्षण तथा प्रबंधन का सिद्धांत
Posted on 28 Apr, 2012 10:13 AM किसी भी भौगौलिक क्षेत्र के झील के जल संसाधन प्रबंधक अंततः उस क्षेत्र के जन समुदाय के सामाजिक, राजनितिक एवं आर्थिक मूल्यों एवं समृद्ध के लिए जिम्मेदार है। झील संसाधन प्रबंधन किसी भी क्षेत्र के सामाजिक एवं राजनितिक लक्ष्य को इंगित कर देना चाहिए। इन सामाजिक एवं राजनितिक लक्ष्य को परिभाषित करने का दायित्व सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के उपर है एवं इन दायित्वों का निर्वाह सरकार के विभिन्न कार्यालयों के
शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रह
Posted on 27 Apr, 2012 10:12 AM शहरी क्षेत्रों में जल की आपूर्ति हेतु मुख्यतः भू-जल का उपयोग किया जाता है। घनी आबादी की वजह से सीमित क्षेत्र में भू-जल की अत्यधिक निकासी करनी पड़ती है। साथ ही शहरी क्षेत्रों में निर्माण/विकास कार्य (भवन/सड़क) की अधिकता की वजह से परवियस क्षेत्र में कमी बनी रहती है। परिणामतः वर्षा भू-जल में पुनः चक्रीत न होकर लगभग पूर्ण रुप से अपवाह में परिवर्ति हो जाती है। इस तरह भू-जल का स्तर लगातार नीचे की ओर गिर
सहभागी सिंचाई प्रबंधः एक विश्लेषण
Posted on 27 Apr, 2012 09:26 AM

पानी की कमी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। राष्ट्र में 1951 में प्रति व्यक्ति पानी का व्यय 2450 मी.3 प्रतिवर्ष था, जो

भारतीय कृषि उत्पादन में सिंचाई जल संसाधन की भूमिका
Posted on 26 Apr, 2012 10:48 AM जल एक मुख्य प्राकृतिक संसाधन है। जल जंतु-जगत की आधारभूत आवश्यकता है और सभी प्रकार के विकास कार्यों का एक मुख्य तत्व है। जल परिस्थितिकी का एक अनिवार्य एवं नियंत्रक तत्व है। पौराणिक काल में भी लोगों को इस वैज्ञानिक सत्य का ज्ञान था कि मानव या जंतु शरीर, पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), वायु एवं प्रकाश पंच माहभूतों से बना हुआ है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनि यह प्रार्थना करते थे कि जिन पांच तत्वों से यह शरीर बना है
टिहरी गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में वर्षा जल का व्यवस्थापन
Posted on 26 Apr, 2012 10:29 AM टिहरी गढ़वाल वाले हिमालय परिक्षेत्र में जल की उपलब्धता अल्प, बिखरी एवं आरक्षित है। उचित वर्षा जल व्यवस्थापन हेतु जल का संग्रहण, घरेलू उपयोग एवं भूजल – भरण के लिए करना एवं पीने हेतु शुद्ध जल की उपलब्धता ध्यान में रखते हुए उचित दिशा में कदम उठाए गये हैं। क्षेत्र की जल समस्या के समाधान के लिए वर्षा जल का छत से संग्रहण, भूमि संग्रहण, जल शुद्धिकरण आदि तकनीकी का उचित वापर परिक्षेत्र के विकास हेतु किया ह
जम्मू संभाग में कंडी क्षेत्र की जलविज्ञानीय समस्यायें एवं सम्भावित समाधान
Posted on 26 Apr, 2012 10:16 AM हिमालय पर्वत की शिवालिक पर्तमालाओं के सीमांत क्षेत्र के अल्प पर्वतीय भाग को भाभर क्षेत्र कहा जाता है। यह क्षेत्र 10 से 30 कि.मी.
विभिन्न भूमि उपयोगों पर अंतःस्यंदन गुणों का अध्ययन
Posted on 26 Apr, 2012 10:05 AM

अंतः स्यंदन जल संतुलन की गणना एक आवश्यक अंग है। जलविज्ञानीय अध्ययनों के लिए विभिन्न प्रकार की मृदाओं एवं भूमि उपयोगों की स्थिति में अन्तःस्यंदन ज्ञान जरूरी है। अंतःस्यंदन दर एक मृदा में जल के प्रवेश कर सकने की अधिकतम दर को निर्धारित करती है। अंतः स्यंदन दर पूर्वगामी मृदा नमी एवं प्रपुण्ज घनत्व में परिवर्तन से प्रभावित होती है। जलोढ़ मृदा, काली मृदा, लाल मृदा एवं लेटराइट मृदा, भारत में पाये जाने

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