उत्तराखंड

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अनुरेखक तनुकरण विधि का उपयोग करते हुये तीसता नदी का निस्सरण मापन
Posted on 29 Mar, 2012 04:40 PM पर्वतीय नदियों/धाराओं की उच्च विपलव तथा घूमाव प्रवृत्ति के कारण उनके निस्सरण मापन के लिए रसायन एवं रंजक का प्रयोग कते हुये कुछ निश्चित सीमाओं के साथ अनुरेखक मिलाने की तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों में रेडियो धर्मी अनुरेखकों अधिक प्रभावी माने जाते हैं क्योंकि ये नदियों के निस्सरण के सम्बंध में यथार्थ अन्वेषण करने में सहायक होते हैं।
कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क (ए.एन.एन.) मॉडल का तावी नदी बेसिन पर अनुप्रयोग
Posted on 29 Mar, 2012 04:36 PM वर्षा अपवाह का सम्बंध एक अत्याधिक जटिल प्रक्रिया है। क्योंकि वर्षा समय तथा स्थान के साथ-साथ बदलती रहती है तथा बेसिन की भू-संरचना भी एक दूसरे से अलग-अलग होती है। जल प्रबंधन के लिए जल वैज्ञानिकों को अपवाह की मात्रा जानने के लिए बेसिन स्तर पर वर्षा-अपवाह निदर्श तैयार करने के लिए आकर्षित करती रहती है। जल प्रबंधन का, नदी जल प्रवाह की मात्रा, जल आपूर्ति, सिंचाई परियोजना, जल निकासी, बाढ़ नियंत्रण, जल गुण
केन नदी तंत्र के सोनार एवं बेरमा उप विभाजकों में अपवाह के दैनिक ऑकड़ों का अनुकरण
Posted on 29 Mar, 2012 04:33 PM जल संसाधनों की योजनाओं एवं अभिकल्पन में वर्षापात एवं अपवाह के मध्य सम्बंध एवं इनके वितरण को समझना अत्यंत आवश्यक है। जलविज्ञानीय अभिकल्पों के द्वारा अपवाह का निर्धारण पूर्वाभास एवं उसका वितरण जाना जा सकता है। वर्षापात एवं अपवाह के अनुकरण हेतु संकल्पनाओं पर आधारित गणितीय निदर्श अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं। टैंक निदर्श (Tank model) आर्द्र एवं शुष्क क्षेत्रों में वर्षा एवं अपवाह के दैनिक मापों के प्र
एल-मोमेन्टस विधि द्वारा निचली गंगा मैदान उपक्षेत्र 1 (जी) के प्रमापित एवं अप्रमापित जलग्रहण के लिए क्षेत्रिय बाढ़ सूत्रों का विकास
Posted on 29 Mar, 2012 04:30 PM जल संरचनाओं के अभिकल्पन हेतु बाढ़ की मात्रा तथा इसके प्रत्यागमन काल का अनुमान लगाने हेतु विश्वभर के वैज्ञानिक एवं अभियन्ताओं द्वारा प्रयास किया जाता रहा है। विभिन्न प्रकार की जल संरचनाओं के जलविज्ञानीय अभिकल्पन हेतु बाढ़ बारम्बारता विश्लेषण विधि का प्रयोग किया जाता है। जिन स्थानों पर पर्याप्त मात्रा में वार्षिक शीर्ष बाढ़ के ऑकड़े उपलब्ध होते हैं, वहां पर विभिन्न प्रत्यागमन काल की बाढ़ का अनुमान ल
विकास और विनाश का रिश्ता
Posted on 17 Mar, 2012 12:44 PM हिमालय क्षेत्र में अक्तूबर 1991 में भीषण भूकंप आया था। उस त्रासदी के बाद तैयार की गई यह रिपोर्ट भूकंप से हुए भारी विनाश के लिए जिम्मेवार गलत नीतियों की पड़ताल करती है और अंधाधुंध विकास के दुष्परिणामों को लेकर चेताती है लेकिन जैसा कि जाहिर है, तब से लेकर आज तक हालात में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
गौला नदी का दर्द
Posted on 15 Mar, 2012 12:45 PM

हल्द्वानी पहुंचकर गौला नदी अस्तित्वहीन सी लगने लगती है। बस, रेता-बजरी की खान से अधिक कुछ नहीं। नदी तो बस पतली-सी जलधारा रह जाती है। इसकी छाती पर सवार सैकड़ों ट्रक व डंपर इसके अक्षय उदर से रेत और बजरी निकाल शहरों की जरूरतें पूरी करते हैं। जहां ऐसी रेतदायिनी नदियां नहीं होती होंगी, वहां लोग घर कैसे बनाते होंगे?

गौला नदी
बांध परियोजनाओं को रोकने के लिए चारों धाम की यात्राओं को स्थगित करें श्रद्धालु - स्वामी सानंद
Posted on 10 Mar, 2012 03:16 PM ज्योतिष्पीठ के सन्यासी स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद ने श्रद्धावान हिंदू यात्रिओं से अपील की है कि वे बद्रीनाथ-धाम, केदारनाथ जी, गंगोत्री धाम की यात्रा को इस वर्ष स्थगित करें और तब तक इन यात्राओं का बहिष्कार करें जब तक अलखनन्दा जी तथा मन्दाकिनी जी पर बांध परियोजनाएं निरस्त नहीं कर दी जाती। यह बात उन्होंने हरिद्वार में मातृ-सदन में कही। स्वामी जी 14 जनवरी मकर संक्रांति से आमरण अनशन पर है और उनका स्वास्थ्य दिन ब दिन गिरता जा रहा है। अपने संकल्प के तीसरे चरण में उनका संकल्प है कि 8 मार्च से वे जल लेना भी त्याग देंगे।

उन्होंने अपनी इस भावुक अपील में कहा कि सरकार हमारी आस्था की केंद्र गंगा जी को नष्ट कर बांधों का निर्माण कर रही है जिससे गंगा जी और यहां का पर्यावरण पूरी तरह नष्ट हो जाएगें। उन्होंने कहा कि यदि निर्माणाधीन तथा प्रस्तावित परियोजनाएं रोकी न गईं और जे.पी.ग्रुप की विष्णुप्रयाग परियोजना पर विद्युत उत्पादन बंद नहीं किया गया तो वह अपने प्राणों की आहुति दे देंगे।

गंगा रक्षा हेतु ललकार
Posted on 02 Mar, 2012 03:27 PM परम श्रद्धेय चार शंकराचार्य पीठों को भेजा गया आमंत्रण (प्रतिलिपि)
विषय- धर्म की आन व शान तथा गंगा जी का मान


आदरणीय शंकराचार्य जी महराज आप आध्यात्मिक जगत के महाराज हैं, हम सब लोग आपकी सेना हैं। आज समय की पुकार हैं, गंगा रक्षा के लिए आप युद्ध क्षेत्र में उतरें। हम आपसे नम्र निवेदन करते हैं कि हमारे प्राणों की आहुति में आप साक्षी हो व आपके दिशा निर्देश तथा इस युद्ध क्षेत्र में आपके सानिध्य में गंगा रक्षा ललकार में इस देश के संत महात्माओं को अपने प्राणों को न्यौछावर करना चाहिए।

अति संवेदनशील समय की पुकार है, एक-एक व्यक्ति यदि अनशन करके अपने प्राणों की आहुति दे देगा तो संभवतः गंगा रक्षा की पूर्णाहुति संभव नहीं हो पायेगी। हम आह्वान करते हैं व आपसे आशा भी रखते हैं कि वर्तमान में वास्तविक रूप में गंगा रक्षा का अभियान चलाना है तो इस यज्ञ की पूर्णाहुति तक का नेतृत्व समस्त शंकराचार्यों को विशेषतः उत्तर-भारत के शंकराचार्यों को इस आध्यात्मिक सेना का रण क्षेत्र में नेतृत्व कर प्रत्येक सैनिक के बलिदान का साक्षी बनकर इस अभियान को प्रेरणा देनी होगी अन्यथा यह आंदोलन उपहास का विषय बन जायेगा।

हम सभी भारतवर्ष में निवास करने वाले संत-महात्मा, आखाड़ों में निवास करने वाले पदाधिकारी जैसे महाकुम्भ में एकत्रित होकर अपनी आध्यात्मिक शक्ति की ऊर्जा को राष्ट्र हित में समर्पित करते हैं उसी प्रकार ‘गंगा रक्षा हेतु ललकार’ की वेदी पर सिसकती हुई मां गंगा के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति देने को प्रत्येक धर्मावलंबी भारतवासी को तैयार होना चाहिए, विशेष रूप से संत-महात्माओं को इसमें पहले अग्रसर होना चाहिए।
गंगा रक्षा के लिए अकेला पड़ा ‘गंगापुत्र’
Posted on 20 Feb, 2012 04:18 PM

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और कुंभ क्षेत्र को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृसदन के स्वामी निगमानंद की 2011 में मौत तक हो चुकी है। इतना ही नहीं, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद भी नवंबर 2011 में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग को लेकर लंबा अनशन कर चुके हैं। इन अनशनों को भी राज्य सरकार ने दबाने की पूरी कोशिश की। यहां तक शिवानंद के अनशन के दौरान तो सरकार में मंत्री दिवाकर भट्ट ने उनके खिलाफ मोर्चा तक खोल दिया था। अब गंगा की अविरलता को लेकर अनशन कर रहे स्वामी सानंद भी स्थानीय क्षेत्रिय दलों के निशाने पर आ गए हैं।

गंगा की अविरलता के लिए और गंगा पर बन रहे बांधों के विरोध में 9 फरवरी से हरिद्वार के कनखल स्थित मातृसदन में चल रहा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का अनशन इस बार जोर पकड़ने के बजाय असफल साबित हो रहा है। वर्ष 2008 के बाद गंगा की अविरलता और बांधों के विरोध में लगातार हो रहे अनेक आंदोलनों के दौरान ऐसा पहली बार हो रहा है जब संत समाज और उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल ऐसे किसी आंदोलन के विरोध में एक साथ खड़े हो गए हैं। जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ग्रहण करने के बाद प्रोफेसर से स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बने जी.डी. अग्रवाल 9 फरवरी से मातृसदन में अनशन कर रहे हैं। अग्रवाल आईआईटी, कानपुर में प्रोफेसर रह चुके हैं लेकिन अब इन्होंने संन्यास ग्रहण कर खुद को गंगा को समर्पित कर दिया है। इससे पहले भी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद गंगा पर बन रही परियोजनाओं के खिलाफ हरिद्वार के मातृसदन और उत्तरकाशी में गंगा तट पर अनशन कर चुके हैं।
गंगा जल का परीक्षण
Posted on 17 Feb, 2012 06:54 PM दिनांक 15 फरवरी को गंगा के किनारे-किनारे कनखल स्थित मातृ सदन से भूपतवाला तक गंगा सेवा अभियानम् के तहत लोग विज्ञान संस्थन देहरादून के वैज्ञानिक दल ने गंगा में मिलने वाले गंदे नालों एवं नालियों का अवलोकन किया, जिसमें यह पाया गया की कुछ को छोड़ कर बाकी बड़े नालों की सीवर लाइन से जोड़ कर पंपिंग स्टेशन द्वारा जगजीतपुर स्थित ट्रीटमेंट में शोधित किया जाता है। निरीक्षण के दौरान स्थानीय लोगों से पूछताछ करने पर यह पता चला कि इन नालों से कभी-कभी अभी गंदा पानी गंगा में गिरता है।
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