हिमालय पर्वत की शिवालिक पर्तमालाओं के सीमांत क्षेत्र के अल्प पर्वतीय भाग को भाभर क्षेत्र कहा जाता है। यह क्षेत्र 10 से 30 कि.मी. की चौड़ी पट्टी के रूप में जम्मू से असम तक अंसतः रूप में पैला हुआ है। यह क्षेत्र अत्यधिक ढलान वाला है जो दक्षिण की ओर जाते-जाते समतल हो जाता है तथा तराई क्षेत्र में मिल जाता है। इस क्षेत्र के जम्मू संभाग वाले भाग को स्थानीय भाषा में “कंडी क्षेत्र” के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश, पंजाब एवं उत्तराखंड में फैले भाभर क्षेत्र का ही एक भाग है। आवरण विहिन पहाड़ियां, लहरदार स्थलाकृति, समय एवं स्थान के सापेक्ष वर्षा का अनियमित वितरण, छोटी काश्तकारी, अत्यधिक भू-अपरदन, खुरदरी संरचना वाली अनुपजाऊ जमीन एवं कम फसल उत्पादन इस क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएं हैं।
यद्यपि इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा अच्छी होती है एवं कई नदियां एवं नाले इस क्षेत्र से होकर बहते हैं तथापि यहां पर घरेलू उपयोग एवं कृषि हेतू पानी की कमी रहती है। पहाड़ी नालों में केवल वर्षा के समय ही पानी बहता है अन्यथा वे सूखे रहते हैं। यहां पर भू-जल स्तर काफी नीचे है। पेड़ों एवं झाड़ियों को घरेलू उपयोग हेतु काटने के कारण समस्या और अधिक बढ़ गई है। भू-अपरदन के कारण कृषि उत्पादन घटा है एवं जलीय-प्रणाली प्रभावित हुई है। नदी – नालों में अचानक आने वाली बाढ़ के कारण उपजाऊ जमीनों की ऊपरी परत बह गई है। इस क्षेत्र की जलविज्ञानीय समस्याओं के मुख्य कारण अत्यधिक अपवाह, भू-अपक्षरण, भू-अपरदन एवं वर्षा का समय एवं स्थान के सापेक्ष अनियमित वितरण है। वास्तव में उपलब्ध जल के उचित भंडार का न होना एवं उपयुक्त जल प्रबंधन का न होना, इस क्षेत्र में जल की कमी का मुख्य कारण है। इस प्रपत्र में जम्मू संभाग में स्थित कंडी क्षेत्र की जलविज्ञानीय समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है तथा इन समस्याओं के समाधान के कुछ संभावित तरीकों पर चर्चा की गई है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
यद्यपि इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा अच्छी होती है एवं कई नदियां एवं नाले इस क्षेत्र से होकर बहते हैं तथापि यहां पर घरेलू उपयोग एवं कृषि हेतू पानी की कमी रहती है। पहाड़ी नालों में केवल वर्षा के समय ही पानी बहता है अन्यथा वे सूखे रहते हैं। यहां पर भू-जल स्तर काफी नीचे है। पेड़ों एवं झाड़ियों को घरेलू उपयोग हेतु काटने के कारण समस्या और अधिक बढ़ गई है। भू-अपरदन के कारण कृषि उत्पादन घटा है एवं जलीय-प्रणाली प्रभावित हुई है। नदी – नालों में अचानक आने वाली बाढ़ के कारण उपजाऊ जमीनों की ऊपरी परत बह गई है। इस क्षेत्र की जलविज्ञानीय समस्याओं के मुख्य कारण अत्यधिक अपवाह, भू-अपक्षरण, भू-अपरदन एवं वर्षा का समय एवं स्थान के सापेक्ष अनियमित वितरण है। वास्तव में उपलब्ध जल के उचित भंडार का न होना एवं उपयुक्त जल प्रबंधन का न होना, इस क्षेत्र में जल की कमी का मुख्य कारण है। इस प्रपत्र में जम्मू संभाग में स्थित कंडी क्षेत्र की जलविज्ञानीय समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है तथा इन समस्याओं के समाधान के कुछ संभावित तरीकों पर चर्चा की गई है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
Path Alias
/articles/jamamauu-sanbhaaga-maen-kandai-kasaetara-kai-jalavaijanaanaiya-samasayaayaen-evan
Post By: Hindi