उत्तराखंड में हिम संसाधन एवं प्रबंधन का महत्व

उत्तराखंड राज्य के प्राकृतिक संसाधनों में जल का सर्वाधिक महत्व है। राज्य की अधिकांश नदियों का स्रोत हिमाच्छादित क्षेत्रों में होने के कराण, यहां की नदियों के सतत् जल प्रवाह पर हिमनदियों के व्यवहार का अत्यधिक प्रभाव होता है। पर्वतों पर हो रहे विकास कार्यों, शहरी कारणों तथा वैश्विक तापवृद्धि के कारण उत्तराखंड की ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व की हिमनदियों पर कुप्रभाव पड़ा है। यदि समय रहते इन हिमसागरों के समुचित प्रबंधन पर ध्यान न दिया गया तो हमारी ‘सदानीर’ नदियों में जल की रिक्तता हो जायेगी। इस लेख में उत्तराखंड राज्य की हिमनदियों पर पर्यावरण एवं अन्य कारणों से पड़ने वाले कुप्रभाव का वर्णन दिया गया है।

समुद्र तल से अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वर्षा, हिम (स्नो) के रूप में होती है। शीत ऋतु में तो अपेक्षाकृत निचले क्षेत्रों में भी हिमपात होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में “हिम रेखा” (स्नो लाइन) सितम्बर मास के अंत तक अथवा माह अक्टूबर के प्रारंभ में अपने उच्चतम शिखर तक पहुंच जाती है जिसके ऊपर के क्षेत्र सदैव बर्फ की चादर में ढके रहते हैं। उन क्षेत्रों में जहां “हिमपात लेखा” स्नोबजर धनात्मक हो अर्थात बर्फ पड़ने की दर, बर्फ पिघलने की दर से अधिक हो, हिमपर्त की मोटाई बढ़ती जाती है एवं हिम की बर्फ में बदलने की प्राकृतिक क्रिया सतत् चलती रहती है। अंततः जब किसी स्थान पर हिमपर्त की मोटाई 50 मीटर से अधिक हो जाती है तो लगभग 0.9 ग्राम/सेमी2 घनत्व की बर्फ का निर्माण होता है। यह अपेक्षाकृत भारी एवं पूर्ण ठोस होने के फलस्वरूप गुरुत्व बल के प्रभाव से ‘V’ आकार की घाटी बनाते हुए नीचे की ओर खिसकने लगती है जिससे हिमनदी का निर्माण होता है जो जल संसाधन का सतत् श्रोत है।

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