राजस्थान

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गंदे पानी से बेरंग होता गुलाबी शहर
Posted on 27 Feb, 2012 12:49 PM

शहर में लगातार नीचे जाते जलस्तर के बावजूद धरती का सीना छलनी किए जाने में कोई कमी नहीं आई है। चालीस लाख की आबादी व

hawa mahal jaipur
मानव विकास की मिसाल सामरदा पंचायत
Posted on 16 Feb, 2012 04:11 PM

वर्ष 2010-2011 में मनरेगा से सभी रोजगार की मांग करने वालों को 100 दिन का रोजगार दिया गया तथा मजदूरी भी पूरी मिली

घना में रौनक तो है साइबेरियाई सारस नहीं
Posted on 13 Feb, 2012 10:35 AM

साइबेरियाई सारस सहित यहां आने वाले सभी विदेशी पक्षी शाकाहारी होते हैं जो कि यहां कि वनस्पतियों पर निर्भर रहते है

आदिवासी क्षेत्रों के विशेषाधिकार समाप्त करने की साजिश
Posted on 12 Feb, 2012 10:56 AM

लंबे इंतजार के बाद राजस्थान में पेसा कानून को लेकर बनाए गए नियम जब सार्वजनिक हुए तो यह बात सामने आई कि इनके माध्

चूल्हे पर चढ़ता चिंकारा
Posted on 16 Jan, 2012 01:59 PM

थार में रहने वाले ग्रामीण विशेषकर बिश्नोई जाति आज भी पेड़ों और वन्यजीवों की रक्षा के प्रति ग्र

रेत में नीर बहाने वाले
Posted on 05 Jan, 2012 06:43 PM

फरहाद कॉन्ट्रैक्टर


पानी के सामाजिक काम में सबसे जरूरी है लोगों का अपनी परंपराओं में विश्वास लौटाना। उन्हें याद दिलाना कि उनके पूर्वज एक गौरवशाली परंपरा छोड़ गए हैं, जल संचय की जो थोड़ी सामाजिकता से फिर लौट आए हैं। यहां छोटे-छोटे तालाबों का प्रचलन रहा है जिन्हें नाड़ी कहा जाता है। नाड़ियों का जीर्णोद्धार भी गांव के लोगों ने शुरु कर दिया है। ऐसे प्रयास करने के लिए धीरज और सहृदयता के साथ ही सबसे जरूरी होता है समाज के संबल का लौटना

यह संस्थाओं का जमाना है। सबसे बड़ी संस्था है सरकार। उससे बाहर जो हो वे गैरसरकारी कहलाती है। असरकारी दोनों कितनी होती हैं इसका जवाब देने की जरूरत नहीं है। जगह-जगह बोर्ड और शिलान्यास दिखते है बड़े-बड़े सामाजिक कामों के। पर काम थोड़ा कम ही दिखता है। कई पर सरकारी पदाधिकारियों के नाम होते हैं और कई पर गैरसरकारी संस्थाओं के। फरहाद कॉन्ट्रैक्टर ऐसे बोर्ड को पटिया कहते हैं। एक छोटी-मोटी संस्था उनकी भी है अहमदाबाद में, समभाव नाम से, जिसमें वे काम करते हैं। पिछले कुछ सालों में उन्होंने एक और संस्था के लिए काम करने की कोशिश की है। इस संस्था का कोई पटिया लगा नहीं मिलता पर है यह सबसे पुरानी इतिहास से भी पुरानी है। यह संस्था है समाज।
चंबल में नयी सभ्यता का उदय
Posted on 31 Dec, 2011 10:58 AM

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है।

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। चंबल अभिशप्त नदी है। हजारों वर्षों में इस नदी के किनारे किसी सभ्यता का उदय नहीं हुआ। कोई भी बड़ा शहर इस नदी के किनारे नहीं बसा। इसके बीहड़ अपराध व अराजकता के लिए जाने जाते थे। मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह जैसे कई नाम हैं, जो आतंक का पर्याय थे। हाल के दिनों में फूलन देवी, लालाराम जैसे कई गिरोह सरदार इन बीहड़ों में पनाह लेते रहे हैं। जाहिर है इस नदी के बीहड़ों में जिस संस्कृति का जन्म हुआ, वह थी-दस्यु संस्कृति। यानी जंगल का कानून। शक्तिशाली का भोजन कमजोर है। लगभग 80 और 90 के दशक तक इस क्षेत्र के सार्वजनिक जीवन का यह मूलमंत्र था। शायद ही कोई राजनीतिक दल व राजनेता ऐसा होगा, जिसका दस्यु गिरोह से संपर्क न हो।
chambal river
मानसागर में फिर खिला जलमहल
Posted on 18 Dec, 2011 09:44 AM

मानसागर झील दुर्दशा की शिकार थी। चार नाले जयपुर शहर की गंदगी को इसमें बरसों से डाल रहे थे। लिह

बच गई राजस्थान की कृषि
Posted on 13 Dec, 2011 03:51 PM

राजस्थान के कृषि निदेशक को सहमति पत्र की गंभीर समीक्षा के बाद जो जवाब भेजा उससे स्पष्ट था कि व

अभ्यारण्य में भी नहीं अभय
Posted on 03 Dec, 2011 09:41 AM

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले वर्ष यहां पर बाघों की तादाद 31 मानी गई थी इस साल यहां 27 बाघ

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