मानव विकास की मिसाल सामरदा पंचायत

वर्ष 2010-2011 में मनरेगा से सभी रोजगार की मांग करने वालों को 100 दिन का रोजगार दिया गया तथा मजदूरी भी पूरी मिली है। चालू वित्तिय वर्ष में लोगों को 40 प्रतिशत रोजगार मिला है तथा शेष बचे दिनों में सभी को 100 दिन का रोजगार देने की योजना है। इन्होंने अपने कार्यकाल में मनरेगा में अपना खेत अपने काम के तहत भी इंदिरा गांधी नहर परियोजना से सिंचित होने वाले खेतों की सिचांई के 29 खाले पक्के करवाये हैं, 16 खालों की डाट कवरिंग का काम भी चल रहा है। 63 मुख्यमंत्री आवास तथा 21 इंदिरा आवास के मकान गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को बनवाये हैं।

बीकानेर जिले की खाजूवाला पंचायत समिति की सामरदा पंचायत के कार्यालय और परिसर को देख कर ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह पंचायत उन चुनिंदा पंचायतों में से एक है जो स्वशासन का सपना साकार करने का उदाहरण हो सकती है। राजीव गांधी भारत निर्माण भवन, सरपंच का सुव्यस्थित कार्यालय, कंप्युटर रूम तथा उसमें रखे कंप्युटरों का उपयोग, पंचायत भवन की दीवारों पर लगी विभिन्न प्रकार की सूचनाएं और पंचायत भवन में लोगों का प्रतिदिन आवागमन इस बात की पुष्टि करता है कि इस पंचायत का नेतृत्व जागरूक व कुशल नेता कर रहा है। पारदर्शिता, जवाबदेही यहां केवल सैद्धांतिक बात नहीं बल्कि पंचायत के कार्यव्यवहार में दिखाई देती है। इस सब का श्रेय यहां की सरपंच तारादेवी बाघेला को जाता है। तारादेवी का इस पंचायत को नेतृत्व देने का यह दूसरा अवसर है। वर्ष 2000 से 2005 के कार्यकाल में भी सरपंच रही। वर्ष 2000 में हुए सरपंच के चुनावों में सामरदा पंचायत के सरपंच की सीट महिला आरक्षित थी। तब से अब तक तारादेवी यहां का प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं। तारादेवी का अनुसूचित जाति की महिला होते हुए भी सरपंच पद के लिये चुना जाना बड़ी बात है क्योंकि यहां उच्च जाति के लोगों की भी अच्छी खासी आबादी है।

तिहतरवें संविधान संशोधन के बाद पंचायत का यह दूसरा पंचवर्षीय काल है, जिसमें तारादेवी को सरपंच बनने का अवसर मिला है। सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर महिलाओं के लिये पंचायती राज संस्थाओं में नेतृत्व करने को लेकर वातावरण और सोच में अभी तक कोई खास बदलाव नहीं आया था। तारादेवी के सामने कुशल नेतृत्व देना चुनौती थी। स्वयं उनके ही शब्दों में ‘‘पहले मुझे पंचायत के कामकाज के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी। बैठकों एवं आयोजनों में बोलने में झिझक होती थी। योजनाओं के बारे में भी जानकारी नहीं थी। कोई भी काम किसी से पूछ कर अथवा सहयोग से करती थी। लेकिन पंचायत के प्रत्येक समुदाय से अच्छा व्यवहार रखने का ही नतीजा है कि लोगों ने मुझे दूसरी बार सरपंच बनने का मौका दिया।

तारादेवी ने शादी से पूर्व 8वीं तथा शादी के बाद 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की। 2005 में दुबारा सरपंच के चुनाव हुए तो तारादेवी ने चुनाव नहीं लड़ा। फरवरी 2005 से दिसंबर 2010 तक वह एक स्वैच्छिक संस्थान में कार्यकर्ता के रूप में जुड़ी तथा इसी संस्थान के माध्यम से महिला जनप्रतिनिधियों की नेतृत्व क्षमता विकास का कार्य करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान ‘‘द हंगर प्रोजेक्ट दिल्ली’’ द्वारा आयोजित महिला जनप्रतिनिधियों के प्रशिक्षणों में प्रशिक्षक के तौर पर काम करने लगी। द हंगर प्रोजेक्ट द्वारा महिला जनप्रतिनिधियों में नेतृत्व क्षमता विकास हेतु आगाज अकादमी नामक एक वर्षीय कोर्स प्रारंभ किया गया था। फरवरी 2010 में तारादेवी ने दुबारा चुनाव लड़ा तथा वर्तमान में इसी पंचायत की सरपंच हैं। तारादेवी बताती है कि ‘‘इस बार के चुनाव में शुरू में कुल आठ उम्मीदवार खड़े थे। बाद में पंचायत के लोगों ने बैठक की तथा चार उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिये। मेरे सामने 3 उम्मीदवार थे, जिनमें दो पुरूष तथा एक महिला। पंचायत के अधिकांश लोग मेरे साथ थे। इसका मुख्य कारण यही था कि मेरा व्यवहार सभी के साथ समान है तथा दूसरा, लोगों को यह विश्वास था कि मैं अच्छा नेतृत्व दे सकती हूं। मैं निष्पक्ष रूप से काम करती हूं, भले ही किसी ने मुझे वोट दिया हो या नहीं।’’ स्वैच्छिक संस्था में कार्य के दौरान उन्होंने मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (सहस्त्राब्दी मानव विकास सूचकांक) के सभी आठ लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये महिला जनप्रतिनिधियों को प्रेरित करने का काम किया।

वास्तव में तारादेवी जो बता रही हैं, वह सब कुछ उनके कार्यों में भी झलकता है। तारा देवी कहती हैं कि ‘‘मेरी पंचायत में 90 प्रतिशत संस्थागत प्रसव होते हैं तथा बच्चों का टीकाकरण 95 प्रतिशत है। 95 प्रतिशत जन्म व मृत्यु का पंजीयन है। मैने जब कार्यकाल संभाला तब पंचायत के पांच गांवों में मात्र एक ए.एन.एम. थी। जो उनके प्रयासों के बाद बढ़कर तीन हो गई हैं। इनमें बारी-बारी से दो की ड्यूटी उपकेंद्र पर हर समय रहती है। हालांकि सरकार ने 05 विभागों से जुड़ी सेवाएं तथा सेवाकर्मियों को पंचायतों के अधिनस्थ किया है, परंतु इससे संबंधित किसी प्रकार की शक्तियां पंचायतों के पास नहीं है। लेकिन जितनी शक्तियां हैं उनका उपयोग कर मैं स्वयं, वार्ड पंच तथा स्थाई समितियों के माध्यम से इन सभी विभागों की निगरानी करते हैं तथा कमी पाये जाने पर उन्हें पाबंद भी करते हैं। पंचायत मुख्यालय के विद्यालय में मात्र दो अध्यापक थे। पंचायत के प्रयास से आज पांच अध्यापक हैं। इनमें दो गणित व अग्रेंजी विषय के विशेषज्ञ भी हैं। शिक्षा की गुणवत्ता पर अधिक जोर दे रही हूं। मेरी पंचायत के गांव माधो डिग्गी में एक अध्यापक समय पर व निरंतर नहीं आता था। गांव के लोगों ने मुझे शिकायत की। मैंने लगातार तीन दिन स्कूल का विजिट किया तथा अध्यापक की रजिस्टर में अनुपस्थिति लगाई। अब वह अध्यापक रोज आने लगे हैं। पंचायत की आंगनबाड़ी, स्कूल, स्कूल में मिड-डे-मील, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि मूलभूत सेवाओं की निगरानी की सहभागी व्यवस्था बनाई है। पंचायत स्तर के सभी कार्मिकों की हाजरी प्रमाणित करती हूं।

वर्ष 2010-2011 में मनरेगा से सभी रोजगार की मांग करने वालों को 100 दिन का रोजगार दिया गया तथा मजदूरी भी पूरी मिली है। चालू वित्तिय वर्ष में लोगों को 40 प्रतिशत रोजगार मिला है तथा शेष बचे दिनों में सभी को 100 दिन का रोजगार देने की योजना है। इन्होंने अपने कार्यकाल में मनरेगा में अपना खेत अपने काम के तहत भी इंदिरा गांधी नहर परियोजना से सिंचित होने वाले खेतों की सिचांई के 29 खाले पक्के करवाये हैं, 16 खालों की डाट कवरिंग का काम भी चल रहा है। 63 मुख्यमंत्री आवास तथा 21 इंदिरा आवास के मकान गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को बनवाये हैं। इसके अतिरिक्त 35 विधवा महिलाओं की पेंशन, 35 विकलांग व्यक्तियों की पेंशन, 120 वृद्धा पेंशन से लोगों को जुड़वाया गया है। तारा देवी ने सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत बी.पी.एल. परिवारों को बेटी की शादी के लिये 15 परिवारों को लाभ दिलवाया है। गांव में महिलाओं को पीने का पानी लाने के लिये एक किलोमीटर दूर डिग्गी पर जाना पड़ता था। इस समस्या के समाधान के लिये उन्होंने स्थानीय विधायक से मुलाकात कर उनके सामने इस समस्या को रखा। जिस पर शीघ्र कार्य प्रारंभ होने वाला है।

इसके आरंभ हो जाने से प्रत्येक घर में पानी का कनेक्शन हो जायेगा तथा महिलाओं के लिए पीने के पानी को ढोकर लाने की समस्या समाप्त हो जायेगी। इसके अतिरिक्त आपात स्थिति में पेयजल के संकट से निजात दिलाने के लिये गांव में पानी को जमा करने पर कार्य किया जा रहा हैं। तारादेवी के कुशल नेतृत्व ने पुरुष सत्तात्मक इस सोच को तो चुनौती दी है जो महिला जनप्रतिनिधियों को केवल नाम की सरपंच कहने से नहीं चुकते हैं। वास्तव में अगर किसी पंचायत में स्वशासन और मानव विकास से जुड़े कार्य देखने हैं तो सामरदा पंचायत भी एक मॉडल के रूप में देखी जा सकती है। सरकार को भी ऐसी चुनिंदा महिला प्रतिनिधित्व वाली पंचायतों की पहचान कर उन्हें अतिरिक्त मानव, तकनीकी और वित्तिय संसाधन उपलब्ध कराने चाहिये ताकि लोग इन पंचायतों को देख कर कुछ सीख सकें।

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