शहर में लगातार नीचे जाते जलस्तर के बावजूद धरती का सीना छलनी किए जाने में कोई कमी नहीं आई है। चालीस लाख की आबादी वाले जयुपर शहर में करीब 11 हजार ट्यूबवेल के जरिए हर दिन करीब साढ़े दस करोड़ लीटर पानी बाहर निकाला जा रहा है। लगातार खाली हो रही धरती की गोद के कारण हालात यह हो गए हैं कि शहर का 95 फीसदी इलाका अतसंवेदनशील जोन घोषित किया जा चुका है। इस क्षेत्र में अब नए ट्यूबवेल और हैंडपंप लगाने पर सरकारी रोक लग गई है। हालांकि जयपुर शहर को यहां से 120 किलोमीटर दूर स्थित बीसलपुर बांध से पेयजल की आपूर्ति एक मार्च, 2009 से शुरू कर दी गई है।
राजस्थान जैसे सूखे प्रदेश में जहां पानी का मोल घी से भी ज्यादा माना जाता है और हमेशा पानी की किल्लत मची रहती है, वहीं जो पानी लोगों को पीने के लिए मिल रहा है वह भी स्वच्छ नहीं है। प्रदेश के दूसरे इलाकों की बात तो छोड़िए, राजधानी जयपुर में भी पीने का पानी प्रदूषित है। कुछ समय पहले ही जारी हुई भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट ने जयपुर की जल वितरण प्रणाली की जो पोल खोली वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार, जयपुर शहर की जनता को पर्याप्त स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार के प्रयास योजना, निष्पादन और सतर्कता में व्याप्त अकुशलताओं के कारण निष्फल रहे हैं। समय और लागत में वृद्धि ने प्रत्येक परियोजना और योजना को बाधित किया है। राज्य सरकार ने बीसलपुर बांध से जयपुर शहर की जनता को वर्ष 2021 तक पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी, जो असफल हुई। भू-जल के अत्यधिक दोहन से जलस्तर प्रति वर्ष तीन मीटर नीचे जा रहा है।
जीर्ण-शीर्ण पाइपलाइनों को बदलने और नए जल वितरण केंद्रों का विकास नहीं करने के साथ ही, पानी के नमूनों और जांच में कमी, पुरानी व क्षतिग्रस्त पाइपलाइनों को नहीं बदलने और जलाशयों की सफाई नहीं करने के कारण लोग प्रदूषित पानी पीने के लिए विवश हैं। साथ ही जल की बर्बादी और लीकेज रोकने का काम भी नहीं हो पा रहा है। जयपुर शहर में गंदे पानी की आपूर्ति होने की बात समय-समय पर सामने आती रही है। कुछ समय पहले जयपुर के सूरजपोल इलाके में दूषित पानी पीने से लोगों के बीमार होने का मामला सामने आया था। कुछ लोगों को असमय ही काल के गाल में समाना भी पड़ा था लेकिन सरकार ने इसके पीछे प्रदूषित पानी के तथ्य को सिरे से ही खारिज कर दिया। हालांकि इस बीच सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाए लेकिन राजधानी के लोगों को प्रदूषित जल से अभी तक निजात नहीं मिल सकी है। खासतौर पर चहारदीवारी के अंदर बसे पुराने जयपुर शहर के लोगों को अब भी इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। यहां अब भी नलों से नीला-पीला पानी प्रायः आता रहता है।
जयपुर शहर के लोग जो पानी पी रहे हैं उसकी गुणवत्ता का आकलन सरकारी स्तर पर कुछ समय पहले किया गया था। इस जांच की रिपोर्ट में माना गया है कि जयपुर शहर में केंद्रीय जन स्वास्थ्य एवं पर्यावरण अभियांत्रिकी संगठन के मापदंडों के मुताबिक स्वच्छ जल का वितरण नहीं हो रहा है। इस जांच के लिए जयपुर शहर को पानी की आपूर्ति करने वाले 1857 नलकूपों से 293 नमूने लिए गए थे। इन नमूनों के परीक्षण की रिपोर्ट में कहा गया है कि विभाग द्वारा निर्धारित मापदंडों के तहत स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की गई। शहर को पेयजल के लिए जिन नलकूपों से पानी दिया जा रहा है वे सारे के सारे प्रदूषित हो चुके हैं। जयपुर शहर को 2000 से अधिक निजी और सरकारी नलकूपों से जो पानी दिया जा रहा है, उन सभी का जल अति दोहन के कारण प्रदूषित हो चुका है। जयपुर को पहले रामगढ़ बांध से पानी का वितरण किया जाता था लेकिन सन् 1999 से इस स्रोत का सूखना शुरू हुआ और वर्ष 2006 में यह पूरी तरह से सूख गया। इसके बाद से जयपुर शहर की पेयजल व्यवस्था भू-जल पर ही निर्भर रही है।
जयपुर शहर में हर साल जलस्तर तीन मीटर नीचे जा रहा है। जलदाय विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 20 साल में जलस्तर 40 मीटर से ज्यादा नीचे चला गया है। शहर के झोटवाड़ा, रामबाग, सेठी कॉलोनी, सचिवालय, बनीपार्क, बजाज नगर और बापू नगर जैसे क्षेत्रों में पिछले बीस साल में जलस्तर 45-50 मीटर तक नीचे चला गया है। शहर में लगातार नीचे जाते जलस्तर के बावजूद धरती का सीना छलनी किए जाने में कोई कमी नहीं आई है। चालीस लाख की आबादी वाले जयुपर शहर में करीब 11 हजार ट्यूबवेल के जरिए हर दिन करीब साढ़े दस करोड़ लीटर पानी बाहर निकाला जा रहा है। लगातार खाली हो रही धरती की गोद के कारण हालात यह हो गए हैं कि शहर का 95 फीसदी इलाका अतसंवेदनशील जोन घोषित किया जा चुका है। इस क्षेत्र में अब नए ट्यूबवेल और हैंडपंप लगाने पर सरकारी रोक लग गई है।
हालांकि जयपुर शहर को यहां से 120 किलोमीटर दूर स्थित बीसलपुर बांध से पेयजल की आपूर्ति एक मार्च, 2009 से शुरू कर दी गई है। इस बांध से जयपुर शहर को प्रतिदिन 200 एमएलडी पानी दिया जा रहा है। इस पानी का जयपुर शहर में वितरण मुख्य रूप से मालवीय नगर, मानसरोवर, झोटवाड़ा और चहारदिवारी क्षेत्र में किया जा रहा है। जयपुर शहर को दिए जा रहे पानी की जांच के प्रति सरकारी अमला कितना गंभीर है इसका खुलासा सरकार की ही एक रिपोर्ट करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, पानी की प्रयोगशाला में भौतिक, रासायनिक तथा जैविक जांच के वार्षिक और छह महीने में नमूने लिए जाने चाहिए। लेकिन पिछले तीन सालों के दौरान 84 से 99 प्रतिशत जल स्रोतों के नमूने लिए ही नहीं गए। इसके अलावा इन नमूनों की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं के साथ उनमें कर्मचारियों की भी भारी कमी चल रही है।
शहर में दूषित पानी के वितरण के पीछे पुरानी खराब हो चुकी पाइपलाइनें भी जिम्मेदार हैं। इस समस्या से चिंतित राजस्थान हाईकोर्ट ने दो साल पहले सरकार को शहर की पाइपलाइनों का सर्वेक्षण करने के निर्देश दिए थे। इस सर्वेक्षण में सामने आया कि चहारदिवारी और उसके बाहर स्थित जयपुर के अधिकांश क्षेत्रों में जल वितरण प्रणाली चालीस वर्ष से अधिक पुरानी है, यानी इन क्षेत्रों में जल वितरण कर रहे पाइप चालीस साल से भी ज्यादा पुराने हो चुके हैं। वहीं पानी के पाइपों के साथ ही सीवर लाइनें भी बिछी हुई हैं जिसके कारण सीवर का पानी इन पाइपलाइनों में मिल जाता है। हालांकि इसके बाद शहर के अनेक स्थानों पर पुरानी पाइपलाइनों की जगह नई पाइपलाइन डालने का काम जलदाय विभाग की ओर से कराया गया। इसके तहत करोड़ों रुपए खर्च करके करीब 50 हजार मीटर नई पाइपलाइन बिछाई भी गईं लेकिन जांच में पता चला कि उनमें से अधिकांश पाइप घटिया क्वालिटी के थे। साथ ही, जलाशयों की सफाई नहीं होने के कारण भी आम जनता को दूषित पानी पीने के लिए विविश होना पड़ रहा है। वहीं पाइप बदलने व छीजन रोकने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर देने के बावजूद जयपुर शहर में हर दिन 1,500 लाख लीटर पानी फिजूल बह जाता है।
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