चंबल में नयी सभ्यता का उदय

chambal river
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चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है।

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। चंबल अभिशप्त नदी है। हजारों वर्षों में इस नदी के किनारे किसी सभ्यता का उदय नहीं हुआ। कोई भी बड़ा शहर इस नदी के किनारे नहीं बसा। इसके बीहड़ अपराध व अराजकता के लिए जाने जाते थे। मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह जैसे कई नाम हैं, जो आतंक का पर्याय थे। हाल के दिनों में फूलन देवी, लालाराम जैसे कई गिरोह सरदार इन बीहड़ों में पनाह लेते रहे हैं। जाहिर है इस नदी के बीहड़ों में जिस संस्कृति का जन्म हुआ, वह थी-दस्यु संस्कृति। यानी जंगल का कानून। शक्तिशाली का भोजन कमजोर है। लगभग 80 और 90 के दशक तक इस क्षेत्र के सार्वजनिक जीवन का यह मूलमंत्र था। शायद ही कोई राजनीतिक दल व राजनेता ऐसा होगा, जिसका दस्यु गिरोह से संपर्क न हो। हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी चंबल नदी का अपवित्र माना जाना इस क्षेत्र के विकास में बाधक रहा।

पर हाल के दिनों में चंबल में एक नयी सभ्यता का विकास हो रहा है। इसकी एक बानगी आगरा के बाह तहसील में देखने को मिली। ताजमहल, लालकिला और फतेहपुर सीकरी देखने आये सैलानी को इस बात का शायद ही एहसास हो कि मानव सभ्यता किस तरह करवट लेती है। आगरा से 40 किमी दूर बाह तहसील अराजकता के लिए कुख्यात था। दस्यू गिरोहों का यहां बोलबाला था, पर आज के दिन यह सब एक कहानी सी लगती है। बाह का सामाजिक स्वरूप बदल चुका है। यहां के निवासी बंदूकों और असलहों के बजाय कंप्यूटर और आधुनिक खेती के उपकरण खरीद रहे हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे दी जाये और आमदनी को कानूनी तरीके अपनाते हुए किस तरह बढ़ाया जाये, इसके प्रयास जारी है। इसी क्रम में बाह के निवासी राम प्रताप सिंह ने एक अभूतपूर्व शुरुआत की। आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग करने के बाद श्री सिंह इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस में शामिल हुए। लगभग आठ साल काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बाह में समाज के लिए काम करने का मन बनाया।

यह राम प्रताप सिंह के लिए थोड़ा आसान इसलिए था, क्योंकि उनकी पुश्तैनी जायदाद काफी थी। मसलन उनके पास सैकड़ों एकड़ अपनी जमीन थी। आसपास के लोगों से कुछ जमीन खरीदने के बाद उन्होंने जैविक खेती शुरू की और एक बड़ा सा फार्म हाउस बनाया। इसमें ही उन्होंने शुरू किया चंबल सफारी। यानी पर्यटन की दृष्टि से चंबल नदी और जंगलों में सैर। चंबल नदी को इस नजरिये से अब तक देखा नहीं गया था। चंबल के बीहड़ों में प्रकृति के कई स्वरूपों का अवलोकन वास्तव में अद्भुत है। इसकी एक खास वजह भी है। धर्मशास्त्रों में चंबल की अभिशप्तता ही नदी व इसके जीव-जंतुओं के लिए वरदान हो गई है। पिछले सप्ताह चंबल में अपने प्रवास के दौरान मैंने पाया कि इस नदी का पानी अद्भुत रूप से स्वच्छ है। इसके साथ ही यह मीठा भी है।

दिलचस्प तो यह है कि पर्यावरण की दृष्टि से भी इस नदी में जीव-जंतुओं और पक्षियों की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। गंगा में जहां डॉल्फिन मछलियां खत्म होती जा रही हैं, वहीं बाह में चंबल नदी में डॉल्फिन मछलियां अधिक मात्रा में पायी जाती हैं। लगभग आठ फिट लंबी डॉल्फिन आपको पानी में गोते लगाती मिल जायेगी। इसी तरह मगरमच्छ और घड़ियाल की कई दुर्लभ प्रजातियों का पानी में तैरते पाया जाना आम बात है। ये जीव न सिर्फ पाये जाते हैं, बल्कि अच्छी तरह फलफूल रहे हैं। इसकी एक खास वजह है। इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास न होने के कारण प्रदूषण इस नदी से कोसों दूर है। साथ ही इस नदी में पक्षियों और जीवों के शिकार पर पाबंदी है। इसी वजह से नदी की पुरातनता और वातावरण की शुद्धता बरकरार है। यह एक अजीब विडंबना है।

चंबल नदी अपवित्र होकर भी पवित्र हैचंबल नदी अपवित्र होकर भी पवित्र हैचंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है। आगरा, मथुरा और दिल्ली जैसे बड़े शहर यमुना नदी के किनारे बसे हैं। यही वजह है कि यमुना नदी दिल्ली में एक गंदे नाले का स्वरूप ले लेती है। दिलचस्प यह है कि यमुना नदी धर्मग्रंथों के अनुसार पवित्रता में अग्रणी है। कमोबेश यही स्थिति भारत के ज्यादातर उन नदियों की है, जिन्हें धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना गया है।

इस परिप्रेक्ष्य में चंबल नदी की धार्मिक अपवित्रता ही उसकी पवित्रता का स्रोत बन गयी है। यही वजह है कि इस नयी चंबल सभ्यता का उदय सचमुच ही बड़ा रोचक है। राम प्रताप सिंह या उन जैसे कई सामाजिक उद्यमी का अथक प्रयास इस घाटी में रंग भी ला रहा है। चंबल सफारी के जरिये वहां आमदनी का एक नया जरिया बन रहा है। ऊंट पालने वाले पिछड़ी जाति के निवासियों को रोजगार का नया साधन मिल गया है। स्थानीय निवासियों में पर्यावरण को लेकर नयी चेतना का संचार हुआ है। नदी में डॉल्फिन, मगरमच्छ और घड़ियाल के संरक्षण को लेकर जनता में सकारात्मक सोच की पहल हुई है। तीस साल पहले जिसने चंबल घाटी को देखा होगा, उसके लिए विश्वास करना मुश्किल होगा कि ऐसा बदलाव यहां आ सकता है।

आगरा का बाह तहसील वहां के लोगों के असलहों के भंडार से जाना जाता था, पर आज परिस्थिति से एकदम विपरीत है। भले ही विकास के मानदंडों के आधार पर यह क्षेत्र अब भी काफी पिछड़ा हो, पर्यावरण, प्राकृतिक विषमताओं के संरक्षण में एक नया रास्ता दिखा रहा है। साथ ही धर्म और आस्था की एक नयी परिभाषा भी गढ़ रहा है, जहां मनुष्य का धर्म प्रकृति से सामंजस्यता का है, न कि शोषण का। नि:संदेह दो या तीन दशक का समय किसी सभ्यता के आकलन के लिए काफी कम है। फिर भी चंबल की इस नयी सभ्यता की पहल हर रूप में सकारात्मक है।

लेखक गवर्नेस नाउ पत्रिका के मैनेजिंग ऐडटर हैं

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