मानसागर झील दुर्दशा की शिकार थी। चार नाले जयपुर शहर की गंदगी को इसमें बरसों से डाल रहे थे। लिहाजा झील में पानी कम गंदगी का कीचड़ ज्यादा जमा हो गया था। इस झील की सफाई में पूरे छह साल लग गए। इस झील से दो मिलियन टन कीचड़ और गंदगी का अपशिष्ट निकाला गया। इससे इस झील की गहराई भी एक मीटर ज्यादा हो गई है। इसके साथ ही अब इसमें पानी निरंतर सफाई करने का एक संयंत्र भी लगाया हुआ है। मानसागर झील की सफाई का नतीजा यह हुआ कि इसका मूल स्वरूप लौट आया, वहीं मौलिक पर्यावरणीय परिस्थितियां भी फिर से आ गईं।
जाड़े की गुनगुनी धूप हो या फिर सावन-भादों में जयगढ़ की हरी-भरी पहाड़ियों से आती बयार या फिर जेठ के महीने में मानसागर झील के स्पर्श से मादकता लिए आई पवन हो, इस महल में हर मौसम के हर प्रहर में सुकून के सिवा दूसरा कोई अहसास नहीं हो सकता। वैसे तो अठारहवीं सदी में आमेर के तत्कालीन शासक सवाई जयसिंह दुनिया को गुलाबी नगर जयपुर जैसी सौगात देने के लिए विख्यात है लेकिन इसी कालखंड में उन्होंने इस अद्भुत नगर के पास ही मानसागर झील के ठीक बीचोबीच जलमहल नामक इस एक और अनुपम कृति का निर्माण भी कराया था, जो बरसों तक उपेक्षित हालत में जर्जर अवस्था भोगने के बाद सरकारी प्रयासों से आज फिर से अपने वैभव के साथ कमल की मानिंद खिल उठा है। जयपुर शहर को इसकी पुरानी रियासत आमेर से जोड़ने वाली सड़क पर आती है मानसागर झील। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक सवाई जयसिंह ने इसी झील के बीचोबीच जलमहल को सन् 1734 के आसपास बनवाया था जिसमें सवाई प्रताप सिंह ने 1750 ई. तक और विस्तार का काम कराया।यहां आकर राजा और उसके परिवार के सदस्य मानसागर झील में जलमुर्गियों और दूसरे जलचर पक्षियों का शिकार करते, गाने-बजाने के साथ दावत उड़ाते, सर्दियों में जहां दिन के वक्त चमेली बाग में गुनगुनी धूप सुकून देती थी तो गर्मियों में रात को चांदनी रात में जल का स्पर्श कर आती पुरवाई पूरे माहौल को पुरसुकून कर जाती थी। बेशक जलमहल के पीछे जयपुर के राजाओं का उद्देश्य आमोद-प्रमोद रहा लेकिन इसने इस नगर को एक अनुपम भेंट जरूर दे दी। यहां के बाग, बारादरी, तिबारियां, छतरियां स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने हैं। इसे दूर से देखने पर हर कोई यह समझता है कि इस महल में विश्राम करने के लिए कई कमरे होंगे लेकिन इस महल में एक भी कमरा नहीं है। इसमें चारों तरफ बारादरियां और तिबारियां हैं। जलमहल बना तो इसकी छत पर एक शानदार बाग बनवाया गया जिसे चमेली बाग कहा जाता था। जहां भांति-भांति के फूलों की महक बिखरा करती थी। इस बाग के चारों कोनों पर चार कलात्मक छतरी (बुर्ज) चीनी बुर्ज, पितली बुर्ज, आईना बुर्ज और शोभा बुर्ज बनी हुई हैं। इन चारों बुर्जों में तत्कालीन आमेर शैली का साक्षात होता है।
आनंद महल तिबारी इस महल की सबसे बेहतरीन जगह कही जा सकती है। जयपुर के सिटी पैलेस और आमेर के महलों की तरह ही इस तिबारी में नयनाभिराम चित्रकारी और नक्काशी की गई है। जलमहल पर जयपुर और आमेर के स्थापत्य और कला का प्रभाव रहा है। रासबिहारी तिबारी में भगवान कृष्ण के महारास का चित्रांकन हो या फिर गुलाबी तिबारी के भित्ती चित्र हों, सभी जयपुर के वर्तमान सिटी पैलेस और आमेर की छवि साफतौर पर दर्शाते हैं। बादल महल इसका अनोखा आकर्षण है जिसकी छत पर उमड़ते-घुमड़ते काले बादलों के साथ दीवारों पर वर्षा के दृश्यों को जीवंत तरीके से चित्रित किया गया है। दरअसल, यह अद्भुत महल गुलाबी नगरी के आभामंडल में किसी चमकते सितारे की तरह रहा है लेकिन कालांतर में यह महल राजकीय उपेक्षा का शिकार होता चला गया और अपने सौंदर्य को खो बैठा। उपेक्षा का आलम इस कदर रहा कि महल तो तकरीबन खंडहर सा हो गया, साथ ही मानसागर झील भी एक कचरागाह बन गई।
इस झील से उठने वाली दुर्गंध इसके पास से गुजरने भी नहीं देती थी। जलमहल की दुर्दशा को देखते हुए राजस्थान सरकार ने इसके जीर्णोद्धार का निश्चय किया। ऐतिहासिक स्थलों के पुनरुद्धार की पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप योजना के तहत जलमहल क्षेत्र के जीर्णोद्धार का काम सन् 2005 में जयपुर के केजीके ग्रुप की कंपनी जलमहल रिसोर्ट प्रा. लि. को सौंपा गया। इस क्षेत्र के जीर्णोद्धार के साथ ही इस क्षेत्र को एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित करने का करार करते हुए राजस्थान सरकार ने जलमहल से लगती हुए 100 एकड़ जमीन भी इस कंपनी को लीज पर दे दी। कंपनी ने काम हाथ में लिया तो उसके सामने एक साथ दो चुनौतियां थीं। उसे जलमहल को अपने मूल स्वरूप में लाने के साथ ही मानसागर झील का वैभव भी लौटाना था। इसके लिए प्रसिद्ध पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ ही नामी वास्तुशास्त्रियों, इतिहासविदों, भारतीय कला और संस्कृति के पारखियों तथा परंपरागत हस्तशिल्पियों और कलावंतों की सेवाएं भी ली गईं।
मानसागर झील दुर्दशा की शिकार थी। चार नाले जयपुर शहर की गंदगी को इसमें बरसों से डाल रहे थे। लिहाजा झील में पानी कम गंदगी का कीचड़ ज्यादा जमा हो गया था। इस झील की सफाई में पूरे छह साल लग गए। इस झील से दो मिलियन टन कीचड़ और गंदगी का अपशिष्ट निकाला गया। इससे इस झील की गहराई भी एक मीटर ज्यादा हो गई है। इसके साथ ही अब इसमें पानी निरंतर सफाई करने का एक संयंत्र भी लगाया हुआ है। मानसागर झील की सफाई का नतीजा यह हुआ कि इसका मूल स्वरूप लौट आया, वहीं मौलिक पर्यावरणीय परिस्थितियां भी फिर से आ गईं। नतीजतन आज इस झील पर 150 तरह के स्थानीय और प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं। इसके जीर्णोद्धार का कार्य प्रो. कुलभूषण जैन की देखरेख में किया गया जिसमें इस बात का पूरा ख्याल रखा गया कि महल के 18वीं सदी के स्थापत्य के साथ खिलवाड़ न हो। इसके लिए उस जमाने के स्थानीय कारिगरों के परिवारों और कलावंतों की सेवाएं ली गईं।
जलमहल के जीर्णोद्धार की एक खासियत रही इसके चमेली बाग के वैभव को लौटाना। करीब एक सदी तक अलग-थलग उपेक्षित पड़े इस महल का काम जिस समय हाथ में लिया गया उस समय चमेली बाग पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था। इस बाग को फिर से डिजाइन करके काम किया भारतीय उद्यानों और महलों के ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ मिशेल ए. के. क्राइटस ने। उन्होंने अठारहवीं सदी के राजपूत शैली के साथ मुगल शैली का समन्वय करके चमेली बाग को नया स्वरूप दिया। छह साल की अथक मेहनत के बाद अब जलमहल फिर से अपने वैभव के साथ जगमगा रहा है।
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