खण्डवा की निजीकृत जलप्रदाय परियोजना का पिछले अप्रैल से स्थानीय समुदाय विरोध कर रहा है। इस विरोध प्रदर्शन में स्थानीय सामाजिक समूहों, जिला अधिवक्ता संघ, पेंशनर एसोसिएशन, व्यापारी संघ, नागरिक संगठन, मीडिया, राजनैतिक कार्यकर्ता आदि भी शामिल है।
विरोध प्रदर्शन के साथ बैठकों और नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से जनजागृति की जा रही है। जनजागृति के तहत जनमत संग्रह का एक बड़ा कार्यक्रम हाथ में लिया गया है जो जारी है। निजीकरण के विरोध में घर-घर दस्तक देकर पेयजल के निजीकरण के बारे लोगों की राय ली जा रही है और संकल्प-पत्र भरवाए जा रहे हैं। क्षेत्रीय सांसद श्री अरुण यादव ने राज्य के शहरी विकास मंत्री श्री बाबुलाल गौर को पत्र लिखकर परियोजना पर पुनर्विचार का आग्रह किया है।
8 मई को शहर की माणिक वाचनालय में एक सार्वजनिक सभा कर यूआईडीएसएसएमटी पर व्याख्या्न आयोजित किया गया जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। इन सब कारणों से योजना के बारे में लोगों स्पष्टीकरण देने हेतु निगम को एक सभा आयोजित करनी पड़ी लेकिन जिम्मेमदार अधिकारी लोगों के सवालों का सामना करने से बचते रहे और लोगों को बगैर जवाब के ही लौटना पड़ा। इसके अलावा निगम खुद कंपनी के पक्ष में प्रचार करते हुए शहर में होर्डिंग लगाकर पानी के निजीकरण का समर्थन कर रहा है। लोग खुल कर निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। लोगों के विरोध के कारण सरकार दबाव में आ गई है और इस योजना को आगे बढ़ाने हेतु हड़बड़ी दिखा रही है।
यूआईडीएसएसएमटी के तहत केन्द्रीय सहायता 2 किश्तों में जारी की जाती है। दूसरी किश्त जारी करने के पूर्व रिफार्म एजेंडे की शर्तों का निर्धारित समयसीमा में पालन होना जरूरी है जिनमें जल दरें, जल कर तथा अन्य् करों की वसूली दर बढ़ाना, कंप्यूरटरीकरण आदि शर्तें भी शामिल है। खण्डवा की परियोजना में अनियमितता के संबंध में शहरी विकास मंत्रालय ने इसकी जॉंच करवाई थी जिसमें समयसीमा में शर्तों का पूरा नहीं किया जाना पाया गया। इसके बाद केन्द्र से रोक दिया गया है लेकिन राज्य सरकार ने केन्द्रं से राशि आवंटित होने का इंतजार न करते हुए अपनी ओर से 42 करोड़ की राशि जारी कर दी।
यहां अभियान की गतिविधियों से संबंधित कुछ अखबारी कतरने और उनकी लिंक्स दी गई है। इस बारे में अधिक जानकारी हेतु manthan.kendra@gmail.com या 07290-222857 पर संपर्क किया जा सकता है।
मंथन इस परियोजना का पिछले 4 वर्षों से अध्ययन कर रहा है। परियोजना की विस्तृत जानकारी, विश्वाओ कंपनी और नगरनिगम के मध्य हुए अनुबंध की शर्तों और पीपीपी के प्रभावों को दर्शाने वाली पुस्तिका प्रकाशित की गई है जिसकी हिन्दी प्रति डाउनलोड करने हेतु यहॉं क्लिक करें।
विरोध प्रदर्शन के साथ बैठकों और नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से जनजागृति की जा रही है। जनजागृति के तहत जनमत संग्रह का एक बड़ा कार्यक्रम हाथ में लिया गया है जो जारी है। निजीकरण के विरोध में घर-घर दस्तक देकर पेयजल के निजीकरण के बारे लोगों की राय ली जा रही है और संकल्प-पत्र भरवाए जा रहे हैं। क्षेत्रीय सांसद श्री अरुण यादव ने राज्य के शहरी विकास मंत्री श्री बाबुलाल गौर को पत्र लिखकर परियोजना पर पुनर्विचार का आग्रह किया है।
8 मई को शहर की माणिक वाचनालय में एक सार्वजनिक सभा कर यूआईडीएसएसएमटी पर व्याख्या्न आयोजित किया गया जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। इन सब कारणों से योजना के बारे में लोगों स्पष्टीकरण देने हेतु निगम को एक सभा आयोजित करनी पड़ी लेकिन जिम्मेमदार अधिकारी लोगों के सवालों का सामना करने से बचते रहे और लोगों को बगैर जवाब के ही लौटना पड़ा। इसके अलावा निगम खुद कंपनी के पक्ष में प्रचार करते हुए शहर में होर्डिंग लगाकर पानी के निजीकरण का समर्थन कर रहा है। लोग खुल कर निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। लोगों के विरोध के कारण सरकार दबाव में आ गई है और इस योजना को आगे बढ़ाने हेतु हड़बड़ी दिखा रही है।
यूआईडीएसएसएमटी के तहत केन्द्रीय सहायता 2 किश्तों में जारी की जाती है। दूसरी किश्त जारी करने के पूर्व रिफार्म एजेंडे की शर्तों का निर्धारित समयसीमा में पालन होना जरूरी है जिनमें जल दरें, जल कर तथा अन्य् करों की वसूली दर बढ़ाना, कंप्यूरटरीकरण आदि शर्तें भी शामिल है। खण्डवा की परियोजना में अनियमितता के संबंध में शहरी विकास मंत्रालय ने इसकी जॉंच करवाई थी जिसमें समयसीमा में शर्तों का पूरा नहीं किया जाना पाया गया। इसके बाद केन्द्र से रोक दिया गया है लेकिन राज्य सरकार ने केन्द्रं से राशि आवंटित होने का इंतजार न करते हुए अपनी ओर से 42 करोड़ की राशि जारी कर दी।
यहां अभियान की गतिविधियों से संबंधित कुछ अखबारी कतरने और उनकी लिंक्स दी गई है। इस बारे में अधिक जानकारी हेतु manthan.kendra@gmail.com या 07290-222857 पर संपर्क किया जा सकता है।
मंथन इस परियोजना का पिछले 4 वर्षों से अध्ययन कर रहा है। परियोजना की विस्तृत जानकारी, विश्वाओ कंपनी और नगरनिगम के मध्य हुए अनुबंध की शर्तों और पीपीपी के प्रभावों को दर्शाने वाली पुस्तिका प्रकाशित की गई है जिसकी हिन्दी प्रति डाउनलोड करने हेतु यहॉं क्लिक करें।
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