दिल्ली

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आचरण : शिक्षा का पहला चरण
Posted on 22 May, 2015 01:40 PM

समाज में धर्मों का मिलन, सम्प्रदायों की विशेषताएँ और मर्यादाएँ, आश्रम व्यवस्था में आई हुई शिथिल

अध्यात्म की कर्मवीरता
Posted on 22 May, 2015 12:52 PM

यह दुर्भाग्य ही रहा कि सम्पूर्ण दुनिया मृत्यु से इतनी घबराई हुई है कि मृत्यु का परिचय पाने के ल

विस्थापन के बीज
Posted on 22 May, 2015 11:42 AM

ठेले से कुछ दूरी पर खड़े बूढ़े पर उसकी नजर पड़ी। पता नहीं कब से खड़ा था!

गंगा में खनन के विरुद्ध
Posted on 22 May, 2015 10:46 AM

गंगा से जुड़ी एक लोककथा है -
“भगीरथ के कठिन तप के बाद ब्रह्मा जब मान गए कि गंगा को धरती पर जाना चाहिए तो गंगा ने ऐतराज किया और धरती पर जाने से मना कर दिया।
तब ब्रह्मा ने कहा ‘देवी! आपका जन्म धरती के लोगों के दुख दूर करने के लिये हुआ है।’

बाढ़, सूखा और नदी
Posted on 22 May, 2015 09:38 AM

बाढ़ और सूखा कोई नई बात नहीं है। सदियों से हमारा समाज इनके साथ रहना सीख चुका था और इनसे निपटने के लिए उसने अपनी देसी तकनीक भी तैयार कर ली थी जो प्रकृति और नदियों को साथ लेकर चलती थी। लेकिन दिक्कत तब हुई जब हमने प्रकृति और नदियों की उपेक्षा शुरू की, उन्हें बाँधना शुरू किया। इसके बाद से ही बाढ़ और सूखे ने विभीषिका का रूप लेना शुरू कर दिया।
.अकाल और बाढ़ अकेले नहींं आते। इनसे बहुत पहले अच्छे विचारों का भी अकाल पड़ने लगता है। इसी तरह बाढ़ से पहले बुरे विचारों की बाढ़ आ जाती है। ये केवल विचार तक सीमित नहींं रहते, ये काम में भी बदल जाते हैं। बुरे काम होने लगते हैं और बुरे काम अकाल और बाढ़ दोनों की तैयारी को बढ़ावा देने लगते हैं।

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अपनी नदियों से हमारा नाता
Posted on 18 May, 2015 12:56 PM गंगा और दूसरी नदियाँ मात्र पानी से भरी नदियाँ नहीं हैं। ये हमारी संस्कृति का प्रतीक हैं। भारतीय जनमानस की स्वच्छता और निर्मलता का प्रतीक हैं। लेकिन आज ये प्रतीक मानवीय लोभ के कारण दूषित होते जा रहे हैं। अगर हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है तो गंगा सहित अपनी तमाम नदियों को बचाना होगा।
नदी तुम बहती जाओ
Posted on 18 May, 2015 11:47 AM

प्रकृति और नदियों के प्रति हम अपने कर्तव्यबोध से च्युत हुए हैं। संकट चौतरफा है। हमें विकास चाहि

वैदिक-पौराणिक चिन्तन का गंगा तत्त्व
Posted on 16 May, 2015 03:24 PM ‘वह ध्रुव-रूपी शैल शिखर से उतरती है। दुग्ध की तरह श्वेत धवल है। पूरी सृष्टि में वह व्याप्त है। उसका शब्द (अट्टहास) बहुत ही भयंकर है। वह अन्तरिक्ष में समुद्र की तरह विशाल झील का निर्माण करती है। उसे धारण करने में पर्वतगण समर्थ नहीं। महादेव ने उसे एक लाख वर्ष से धारण कर रखा है। वह पवित्रतम और पुण्यदायिनी है। उसके स्पर्श मात्र से सारे पापों से मुक्ति मिल जात
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