काका कालेलकर

काका कालेलकर
अध्यात्म की कर्मवीरता
Posted on 22 May, 2015 12:52 PM

यह दुर्भाग्य ही रहा कि सम्पूर्ण दुनिया मृत्यु से इतनी घबराई हुई है कि मृत्यु का परिचय पाने के ल

‘सप्त सरिता’ की भूमिका
Posted on 09 Mar, 2011 11:21 AM
नदी-भक्ति हम भारतीयों की असाधारण विशेषता है। नदियों को हम ‘माता’ कहते हैं। इन नदियों से ही हमारी संस्कृतियों का उद्गम और विकास हुआ है। नदी देखते ही उसमें स्नान करना, उसके जल का पान करना और हो सके तो उसके किनारे संस्कृति-संवर्धन के लिए दान देना, ये तीनों प्रवृत्तियां नदी-दर्शन के अंग हैं। स्नान, पान और दान के द्वारा ही नदी-पूजा होती है। कई नदी-भक्त पुरोहितों की मदद लेकर देवी की शास्त्रोक्त पूजा करत
उपस्थान
Posted on 09 Mar, 2011 11:19 AM
भिन्न-भिन्न अवसरों पर भारतवर्ष की जिन नदियों के दर्शन मैंने किये, उनमें-से कुछ नदियों का यहां स्मरण किया गया है। यहां मेरा उद्देश्य भूगोल में दी जाने वाली जानकारी का संग्रह करने का नहीं है, न नदियों का हमारे व्यापार-वाणिज्य पर होनेवाला असर बताने का यहां प्रयत्न है। यह तो केवल हमारे देश की लोक माताओं का भक्तिपूर्वक किया हुआ नए प्रकार का उपस्थान है।
नदी-मुखेनैव समुद्रम् आविशेत्
Posted on 09 Mar, 2011 11:16 AM
सुबह या शाम के समय नदी के किनारे जाकर आराम से बैठने पर मन में तरह-तरह के विचार आते हैं। बालू का शुभ्र विशाल पट हमेंशा वहीं का वहीं होता है, फिर भी वहां का हर एक कण पवन या पानी से स्थान भ्रष्ट होता है। इतनी सारी बालू कहां से आती है और कहां जाती है?
सरिता-संस्कृति
Posted on 09 Mar, 2011 10:24 AM
जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है और जहाँ वर्षा के आधार पर ही खेती हुआ करती है, उस भूमि को ‘देव मातृक’ कहते हैं। इसके विपरीत, जो भूमि इस प्रकार वर्षा पर आधार नहीं रखती, बल्कि नदी के पानी से सींची जाती है और निश्चित फ़सल देती है, उसे ‘नदी मातृक’ कहते हैं। भारतवर्ष में जिन लोगों ने भूमि के इस प्रकार दो हिस्से किए, उन्होंने नदी को कितना महत्व दिया था, यह हम आसानी से समझ सकते हैं। पंजाब क
जीवनलीला
Posted on 08 Mar, 2011 11:17 AM

1.

जोग के प्रपात का पुनर्दर्शन
Posted on 07 Mar, 2011 04:16 PM
हिमालय, नीलगिरी और सह्याद्रि जैसे उत्तुंग पर्वत, गंगा, सिंधु, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र जैसी सुदीर्घ नद-नदियां; और चिलका, वुलर तथा मंचर जैसे प्रसन्न सरोवर जिस देश में विराजते हों, उस देश में एकाध महान, भीषण और रोमांचकारी जलप्रपात न हो तो प्रकृति माता कृतार्थता का अनुभव भला किस प्रकार करे?
जोग का सूखा प्रपात
Posted on 07 Mar, 2011 04:13 PM
याद नही किस कवि ने यह विचार प्रकट किया है; मगर उसका वह विचार मैं अपनी भाषा में यहां रख देता हूं।
गुर्जर-माता साबरमती
Posted on 07 Mar, 2011 03:38 PM
अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग पुकार कर महात्मा जी स्वराज्य की तैयारी कर रहे हैं। अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना हुई है। स्वातंत्र्यवादी नौजवान महाविद्यालय में शरीक हुए हैं। वे अपनी आकांक्षाएं और कल्पना-विलास व्यक्त करने के लिए एक मासिक पत्रिका चाहते हैं। मेरे पास आकर वे पूछते हैं, “मासिक पत्रिका का नाम क्या रखेंगे?” वह जमाना ऐसा था जब चाचा (काका) को ही बुआ का काम करना पड़ता था।
उभयान्वयी नर्मदा
Posted on 07 Mar, 2011 02:58 PM
हमारा देश हिन्दुस्तान महादेव जी की मूर्ति है। हिन्दुस्तान के नक्शे को यदि उल्टा पकड़े, तो उसका आकार शिवलिंग के जैसा मालूम होगा। उत्तर का हिमालय उसकी बुनियाद है, और दक्षिण की ओर का कन्याकुमारी का हिस्सा उसका शिखर है।
×