Posted on 08 May, 2015 09:22 AMहिमनद या ग्लेशियर स्वच्छ निर्मल जल के प्रमुख स्रोत हैं। सिंचाई, उद्योग, जल परियोजना और घरेलू आवश्यकता की पूर्ति हिमनदों के बर्फ पिघलने से ही होती है। दरअसल, पृथ्वी पर लवणहीन जल का अस्सी प्रतिशत भाग हिमनदों में सुरक्षित है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की महादेशीय हिमपट्टी के रूप में हिमनदों का 97 प्रतिशत मौजूद है। हिमालय के कुल क्षेत्र का लगभग दस प्रतिशत भाग हिम
Posted on 05 May, 2015 03:19 PMबेशक घोषणाएँ हो रही हैं। योजनाएँ भी बन रही हैं, लेकिन गंगा नदी की सफाई को लेकर अब तक कोई ठोस शुरूआत नहीं हुई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि गंगा सफाई अभियान मन्त्रालयों की खींच-तान में फँस गया है। एक रपट
Posted on 05 May, 2015 01:34 PMगंगा भारतवासियों की आस्था का प्रतीक है। देश का चौथाई क्षेत्र और 43 प्रतिशत से अधिक आबादी किसी न किसी रूप में इस नदी पर आश्रित हैं। लोक-परलोक दोनों के सुधार से यह सम्बद्ध है। लेकिन क्या इसकी शुचिता को बनाये रखने की चिन्ता सभी को है?
Posted on 05 May, 2015 11:54 AMडिजास्टर मैनेजमेंट यानी आपदा प्रबन्धन तेजी से विस्तृत होता क्षेत्र है। हाल ही में नेपाल में आए भूकम्प में हजारों लोगों ने अपनी जान गँवाई। हजारों की संख्या में लोग घायल हुए। बड़े पैमाने पर क्षति हुई। भारत सरकार ने राहत पहुँचाने के लिए हर जगह एनडीआरएफ की टीम भेजी। इसमें खासतौर पर पैरामिलिट्री के प्रशिक्षित लोग शामिल थे। इनमें से ज्यादातर ने डिजास्टर मैनेजमेंट से सम्बन्धित कोर्स किया हुआ है
Posted on 04 May, 2015 04:23 PMकेदारनाथ में बादल फटने से हुई तबाही और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ से हुए भारी आर्थिक नुकसान को हम अभी भूल भी नहीं पाए थे कि नेपाल और भारत के कई हिस्सों में आए जबरदस्त भूकम्प ने हमें हिलाकर रख दिया। प्राकृतिक आपदाएं कभी बताकर नहीं आतीं। भूकम्प, सुनामी, तूफान और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं अचानक आती हैं और चंद मिनटों में सब कुछ तबाह करके चली जाती हैं। इन आपदाओं में भारी जान और माल का नुकसान होता है।
Posted on 04 May, 2015 03:30 PMभूकम्प कभी किसी को नहीं मारता, फिर भी हम डरते हैं उससे। इंसान मरता है उस मकान से, जिसे वह अपने आश्रय के लिए बनाता है। अगर हम प्रकृति के साथ जीना सीखें तो क्या भूकम्प या क्या बाढ़? हमें कोई भी आपदा कैसे मार सकती है?
Posted on 04 May, 2015 01:14 PMनेपाल में आए विनाशकारी भूकम्प ने एक बार फिर वैज्ञानिक जगत के सामने कड़ी मुश्किल पेश कर दी है। साथ ही, राष्ट्रों के आपदा प्रबन्धन, भवन नीति और कुदरत के साथ छेड़-छाड़ के बारे में दोबारा सोचने की जरूरत जताई जा रही है। भूकम्प की भविष्यवाणी की सम्भावना को लेकर भी चर्चाएँ तेज हुई हैं। भूकम्प के बारे में जायजा ले रहे हैं यादवेंद्र।