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जेठ में जरै माघ में ठरै
Posted on 22 Mar, 2010 09:37 AM
जेठ में जरै माघ में ठरै।
तब जीभी पर रोड़ा परै।।


भावार्थ- जेठ की धूप में जलने से और माघ की सर्दी में ठिठुरने से ईख की खेती होती है और तब किसान की जीभ पर गुड़ का रोड़ा पड़ता है अर्थात् गुड़ खाने को मिलता है।

खेती करै ऊख कपास
Posted on 22 Mar, 2010 09:35 AM
खेती करै ऊख कपास।
घर करै व्यवहरिया पास।।


भावार्थ- ऊख और कपास की खेती करना साहूकार को अपने घर के पास बुलाना है अर्थात् कर्जदार बनना है।

खनि के काटै घन के मोराये
Posted on 22 Mar, 2010 09:29 AM
खनि के काटै घन के मोराये।
तब बरदा के दाम सुलाये।।


शब्दार्थ- मोराये-ईख का रस निकालना, सुलाये-सफल होना। वसूल होना।

भावार्थ- यदि किसान ईख को जड़ से खोद कर निकाले और खूब दबा-दबा कर कोल्हू में पेरे तो उसे अधिक फायदा होता है और बैलों का परिश्रम भी सफल होता है। उनका दाम वसूल हो जाता है।

खेती करै साँझ घर सोवै
Posted on 22 Mar, 2010 09:27 AM
खेती करै साँझ घर सोवै।
काटै चोर हाथ धरि रोवै।।


भावार्थ- जो किसान खेती करता है और सायंकाल ही घर में सो जाता है। तो उसकी फसल को रखवारी के अभाव में चोर काट ले जाते हैं, फिर उसे हाथ पर हाथ रख कर रोना ही पड़ता है।

खेत बेपानी बूढ़ा बैल
Posted on 22 Mar, 2010 09:25 AM
खेत बेपानी बूढ़ा बैल।
सो गृहस्थ साँझै गहे गैल।।


भावार्थ- जिस किसान का खेत बिना पानी का हो अर्थात् ऐसी जगह हो जहाँ पानी न पहुँचता हो और बैल बुड्ढा हो तो वह खेती न करे तो ही अच्छा रहेगा।

खेती करै अधिया
Posted on 22 Mar, 2010 08:57 AM
खेती करै अधिया।
न बैल न बधिया।।


भावार्थ- बटाई पर खेती करने में किसान को बैल-बधिया (हल) किसी की चिंता नहीं रहती है।

खेती। खसम सेती
Posted on 22 Mar, 2010 08:55 AM
खेती। खसम सेती।।
आधी केकी? जो देखै तेकी।।
बिगड़ै केकी? घर बैठे पूछे तेकी।।


भावार्थ- जिस प्रकार पत्नी पति की सेवा कर सुखी होती हैं उसी प्रकार लाभ प्राप्त करने के लिए खेती की सेवा करनी चाहिए। जो सिर्फ निगरानी करता है, उसे खेती से आधा लाभ मिलता है, लेकिन जो घर बैठे-बैठे पूछ लेता है कि खेती का क्या हाल है? उसकी खेती बिल्कुल बेकार होती है।
खेती तो थोड़ी करे
Posted on 22 Mar, 2010 08:52 AM
खेती तो थोड़ी करे, मिहनत करे सिवाय।
राम चहें वही मनुष को, टोटा-कभी न आय।


शब्दार्थ- टोटा-कमी।

भावार्थ- यदि खेती कम है और किसान मेहनत अधिक करे तो ईश्वर की कृपा से उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं आयेगी।

खेती करै बनिज को धावै
Posted on 22 Mar, 2010 08:50 AM
खेती करै बनिज को धावै।
ऐसा डूबै थाह न पावै।।


शब्दार्थ- बनिज- व्यापार।

भावार्थ- घाघ कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति खेती के साथ-साथ व्यापार भी करता है तो वह इस प्रकार डूबता है कि उसकी थाह भी नहीं मिलती अर्थात् दो कार्य एक साथ करने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं होता।

कर्म हीन नर खेती करै
Posted on 22 Mar, 2010 08:48 AM
कर्म हीन नर खेती करै।
बरधा मरै कि सूखा परै।।


भावार्थ- जिस किसान का भाग्य खराब होगा वह यदि खेती करेगा तो या तो उसका बैल मर जायेगा या सूखा पड़ जायेगा।

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