अहिर बरदिया ब्राह्मन हारी।
गई सावनी और असाढ़ी।।
शब्दार्थ- हारी- हलवाहा।
भावार्थ- यदि अहीर बैलों का व्यापारी और ब्राह्मण हलवाहा हो तो आषाढ़ और सावन के महीने यों ही बीत जाते हैं जिससे फसलें मारी जाती हैं।
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