Posted on 22 Mar, 2010 02:59 PM जो जौ चहै तो उत्तर गहै। काँच पकै के जोतत रहै।।
भावार्थ- यदि किसान को जौ की अच्छी पैदावार चाहिए तो उत्तरा नक्षत्र में कच्चे खेतों को जोतकर उसे पकाकर फिर ढेलों की रोरी एवं उसके बारीक कण बनाकर उसमें जौ बोयें तो फसल अच्छी होगी।
Posted on 22 Mar, 2010 02:57 PM छोटी नसी धरती हँसी। हर लगा पताल, तो टूट गया काल।।
शब्दार्थ- नसी-हल का फाल (हल के नीचे लगा नुकीला लोहा)।
भावार्थ- हल के छोटे फाल को देखकर धरती हँसती है कि इसकी जुताई से कैसे पैदावार होगी? यदि हल के लम्बे फाल से गहरी जुताई होती है तो अकाल भी समाप्त हो जाता है अर्थात् अल्प वृष्टि की स्थिति में भी पैदावार हो जाती है।
Posted on 22 Mar, 2010 02:54 PM चिरैया में चीर फार। असरेखा में टार-टार।। मघा में काँदो सार।।
भावार्थ- पुष्य नक्षत्र में यदि खेत को थोड़ा भी गोड़कर धान लगा दे तो फसल अच्छी होती है। अश्लेषा में अच्छी जुताई के बाद धान लगाना चाहिए और यदि मघा नक्षत्र में धान लगाना है तो अच्छी जुताई के साथ खाद भी डालनी पड़ेगी तभी फसल अच्छी होगी।
Posted on 22 Mar, 2010 02:50 PM गेहूँ भवा काहें, आसाढ़ के दो बाहें। गेहूँ भवा काहें, सोलह बाहें – नौ गाहें।।
भावार्थ- कवि प्रश्नों के माध्यम से कहता है- गेहूँ अच्छा क्यों हुआ क्योंकि आषाढ़ में उस खेत की दो बार जुताई हुई थी। गेहूँ की अच्छी पैदावार का दूसरा कारण है उस खेत की सोलह बार जुताई और नौ बार हेंगाई जिससे मिट्टी के कण छोटे-छोटे हो गये।