Posted on 22 Mar, 2010 02:41 PM असाढ़ जोतै लड़के बारे। सावन भादौं में हरवाहे। कुआर जोतै घर का बेटा। तब ऊँचे हो होनहारे।।
भावार्थ- आषाढ़ मास में यदि लड़के से भी जुताई करा लें तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन सावन में बिना हलवाहे के जोते काम नहीं बनेगा और क्वार में यदि कृषक का बेटा भी खेत को जोते तो ठीक होगा अर्थात् ऐसा करने से किसान के खेत में पैदावार अच्छी होगी और उसका भाग्य अच्छा होगा।
Posted on 22 Mar, 2010 01:32 PM सावन सोये ससुर घर भादों खाये पूवा। खेत-खेत में पूछत डोलैं तोहरे केतिक हूवा।।
भावार्थ- आलसी और सुस्त किसान सावन मास में ससुराल में रहे, भादों में पूवा खाता रहे और फसल पकने पर दूसरों से पूछता फिरता रहे कि तुम्हारे खेत में कितनी पैदावार हुई? ऐसा किसान किसी लायक नहीं होता है और सदैव परेशान रहता है।
Posted on 22 Mar, 2010 01:24 PM नित्तै खेती दुसरे गाय। नाहीं देखै तेकर जाय।। घर बैठल जो बनवै बात। देह में बस्त्र न पेट में भात।।
भावार्थ- जो किसान रोज खेती का कार्य नहीं करता और हर दूसरे दिन गाय को नहीं देखता, उसकी दोनों चीजें बर्बाद हो जाती हैं। यदि घर में बैठे-बैठे सिर्फ बातें करता रहता है तो उसके देह पर न तो वस्त्र रहता है और न ही पेट में भात अर्थात् वह गरीब हो जाता है।