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बहुत करे सो और को
Posted on 22 Mar, 2010 11:45 AM
बहुत करे सो और को ।
थोड़ी करे सो आप को ।।


भावार्थ- खेती ज्यादा करने से दूसरों को लाभ पहुँचता है और थोड़ी करने से अपना काम चलता है।

पाही जोतै तब घर जाय
Posted on 22 Mar, 2010 11:43 AM
पाही जोतै तब घर जाय।
तेहि गिरहस्त भवानी खायँ।।


शब्दार्थ- पाही-किसान का वह खेत जो निवास स्थान से कुछ अधिक दूर हो।

भावार्थ- जो किसान दूसरे गाँव में खेती करता है और उसे जोत-बोकर घर चला जाता है, उसे भवानी खा जाये तो अच्छा है अर्थात् पाही काश्तकार को पाही पर रहना आवश्यक होता है।

धान गिरै सुभागे का
Posted on 22 Mar, 2010 11:39 AM
धान गिरै सुभागे का ।
गेहूँ गिरै अभागे का।।


भावार्थ- जिस किसान का धान गिरता है वह भाग्यशाली होता है लेकिन यदि गेहूँ गिरता है तो वह अभागा होता है।

दुइ हर खेती यक हर बारी
Posted on 22 Mar, 2010 09:52 AM
दुइ हर खेती यक हर बारी।
एक बैल से भली कुदारी।।


शब्दार्थ- हर-हल।

भावार्थ- यदि किसान के पास दो हल हैं तो खेती और एक हल है तो साग तरकारी की बाड़ी अच्छी होती है और जिस किसान के पास एक ही बैल हो तो उससे अच्छा है वह कुदाल ही रखे।

तिल कोरें। उर्द बिलोरें
Posted on 22 Mar, 2010 09:47 AM
तिल कोरें। उर्द बिलोरें।।

भावार्थ- तिल कोरने (गोड़ने से और उर्द बिलोरने (इधर उधर करने) से पैदावार अच्छी होती है।

जौ तेरे कुनबा घना
Posted on 22 Mar, 2010 09:45 AM
जौ तेरे कुनबा घना।
तो क्यों न बोये चना।।


शब्दार्थ- कुनबा- संयुक्त परिवार।

भावार्थ- हे किसान! यदि तेरे परिवार में अधिक प्राणी हैं तो तुमने चना क्यों नहीं बोया?

जेठ में जरै माघ में ठरै
Posted on 22 Mar, 2010 09:37 AM
जेठ में जरै माघ में ठरै।
तब जीभी पर रोड़ा परै।।


भावार्थ- जेठ की धूप में जलने से और माघ की सर्दी में ठिठुरने से ईख की खेती होती है और तब किसान की जीभ पर गुड़ का रोड़ा पड़ता है अर्थात् गुड़ खाने को मिलता है।

खेती करै ऊख कपास
Posted on 22 Mar, 2010 09:35 AM
खेती करै ऊख कपास।
घर करै व्यवहरिया पास।।


भावार्थ- ऊख और कपास की खेती करना साहूकार को अपने घर के पास बुलाना है अर्थात् कर्जदार बनना है।

खनि के काटै घन के मोराये
Posted on 22 Mar, 2010 09:29 AM
खनि के काटै घन के मोराये।
तब बरदा के दाम सुलाये।।


शब्दार्थ- मोराये-ईख का रस निकालना, सुलाये-सफल होना। वसूल होना।

भावार्थ- यदि किसान ईख को जड़ से खोद कर निकाले और खूब दबा-दबा कर कोल्हू में पेरे तो उसे अधिक फायदा होता है और बैलों का परिश्रम भी सफल होता है। उनका दाम वसूल हो जाता है।

खेती करै साँझ घर सोवै
Posted on 22 Mar, 2010 09:27 AM
खेती करै साँझ घर सोवै।
काटै चोर हाथ धरि रोवै।।


भावार्थ- जो किसान खेती करता है और सायंकाल ही घर में सो जाता है। तो उसकी फसल को रखवारी के अभाव में चोर काट ले जाते हैं, फिर उसे हाथ पर हाथ रख कर रोना ही पड़ता है।

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