असाढ़ मास जो गँवही कीन।
ताकी खेती होवै हीन।।
शब्दार्थ- गँवही-गमन, मेहमानी।
भावार्थ- यदि किसान आषाढ़ मास में मेहमानी करता फिरता है तो उसकी खेती कमजोर या नष्ट हो जाती है क्योंकि यह समय खेती के काम के लिए उपयुक्त होता है।
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