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सावन कृष्ण एकादसी
Posted on 20 Mar, 2010 03:27 PM
सावन कृष्ण एकादसी, गर्जि मेघ घहरात।
तुम जाओ प्रिय मालवै, हम जाबै गुजरात।।


भावार्थ- यदि सावन के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मेघ गरज कर घहरायें (गंभीर ध्वनि करें) तो निश्चय ही अकाल पड़ने वाला है। अतः हे प्रिय! तुम, मालवा जाओ और मैं गुजरात जाऊँगी।

सावन सुक्र न दीसै
Posted on 20 Mar, 2010 03:17 PM
सावन सुक्र न दीसै,
निहचै पड़ै अकाल।


भावार्थ- सावन के महीने में यदि शुक्र न दिखे अर्थात् अस्त हो तो निश्चित ही अकाल पड़ेगा।

सावन सुक्ला सत्तमी
Posted on 20 Mar, 2010 03:11 PM
सावन सुक्ला सत्तमी, गगन स्वच्छ जो होय।
कहै घाघ सुन भड्डरी, पुहुमी खेती खोय।।


भावार्थ- सावन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यदि आसमान साफ हो तो घाघ कहतें हैं कि हे भड्डरी! यह जान लो कि अकाल पड़ने वाला है और खेती नष्ट हो जायेगी।

सावन सूखा स्यारी
Posted on 20 Mar, 2010 03:09 PM
सावन सूखा स्यारी।
भादौं सूखा उन्हारी।


शब्दार्थ- स्यार-खरीफ। उन्हारी-रबी की फसल।

भावार्थ- यदि सावन मास में वर्षा न हुई तो खरीफ की फसल को अत्यधिक नुकसान होता है इसी प्रकार यदि भादों में वर्षा न हुई तो रबी की फसल नष्ट हो जाती है।

सावन सुक्ला सत्तमी
Posted on 20 Mar, 2010 03:06 PM
सावन सुक्ला सत्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसे तो सूखा पड़े, नाहीं समो सुकाल।।


भावार्थ- सावन शुक्ल सप्तमी को यदि आधी रात में बादल गरज कर बरसें तो सूखा पड़ेगा, नहीं तो समय अच्छा बीतेगा।

सावन मास बहै पुरवाई
Posted on 20 Mar, 2010 02:58 PM
सावन मास बहै पुरवाई।
बरधा बेंचि बेसाहो गाई।।


भावार्थ- जब श्रावण मास में पुरवाई चले तो कृषक को चाहिए कि वह अपने बैलों को बेचकर गाय खरीद ले क्योंकि सूखा पड़ने के आसार हैं जिसमें खेती नहीं हो सकेगी।

सुदि असाढ़ में बुध को
Posted on 20 Mar, 2010 02:56 PM
सुदि असाढ़ में बुध को, उदै भयो जो देख।
सुक्र अस्त सावन लखो, महाकाल अवरेख।।


भावार्थ- यदि आसाढ़ शुक्ल में बुध उदय हो और श्रावण मास में शुक्र अस्त हो तो निश्चय ही भीषण अकाल पड़ेगा।

सावन कृष्ण पक्ष में देखौ
Posted on 20 Mar, 2010 02:50 PM
सावन कृष्ण पक्ष में देखौ। तुल को मंगल होय बिसेखौ।।
कर्क रासि पर गुरु जो आवै। सिंह रासि में सुक्र सुहावै।।
ताल सो सोखै बरसै धूर। कहूँ न उपजै सातो तूर।।

सावन पहली पंचमी
Posted on 20 Mar, 2010 02:42 PM
सावन पहली पंचमी, जोर की चलै बयार।
तुम जाना प्रिय मालवा, हम जावैं पितुसार।।


भावार्थ- यदि श्रावण कृष्ण पंचमी को हवा तेज चले, तो हे प्रिय! तुम मालवा जाना और मैं अपने पिता के घर चली जाऊँगी क्योंकि अकाल पड़ना तय है।

सावन सुक्ला सत्तमी
Posted on 20 Mar, 2010 02:40 PM
सावन सुक्ला सत्तमी, जो गरजे अधिरात।
तू पिय जाओ मालवा, हम जायें गुजरात।।


भावार्थ- यदि श्रावण शुक्ल सप्तमी को अर्धरात्रि में बादल गरजें, तो हे प्रिय तुम मालवा चले जाना और मैं गुजरात चली जाऊँगी अर्थात् अकाल पड़ने वाला है।

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