भारत

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पहाड़ों का पितामह अरावली
Posted on 18 Feb, 2011 04:55 PM हमारे देश में बड़े-बड़े मकानों के और शहरों के भग्नावशेष अनेक जगह पाये जाते हैं। अच्छे और नये मकानों की अपेक्षा इन अवशेषों का काव्य कुछ अधिक होता है। कर्ण के जैसा कोई दानी पुरुष जब दारिद्रय से क्षीण होता है, कोई बड़ा पहलवान या योद्धा जब जराजरजरित होकर लकड़ी के सहारे चलता दीख पड़ता है तब उसके प्रति हमारा आदर करुणा के साथ मिश्रित होकर भक्तिभाव पैदा करता है। इसी तरह प्राचीन किले के या नगर के अवशेष हमा
भारत के प्रधान सरोवर
Posted on 18 Feb, 2011 04:51 PM जिस तरह भारत में असंख्य नदियां हैं और उन्हें हमारे पुरखों ने लोकमाता कहा, उसी तरह भारत में छोटे-बड़े सरोवर भी असंख्य हैं। सर, सरोवर, सरसी, तालाब, ताल, तलैया, झील, पुष्कर पुष्करिणी, ह्रद, कासार, खात, तडाग ऐसे तरह-तरह के कई नाम हमारे लोगों ने जलाशयों को दिये हैं। जिसके प्रति हमारी अधिक-से-अधिक भक्ति है ऐसा सरोवर तो हिमालय के उस पार कैलाश के रास्ते है। उसे मानस-सरोवर कहते हैं। उसी के पड़ोस में उतना ह
भारतीय भक्ति-मानस का सनातन केंद्र मानस-सरोवर
Posted on 18 Feb, 2011 04:47 PM हिमालय के उस पार त्रिविष्टप, यानी तिब्बत में हमारी देवभूमि है। वहां दुनिया के सबसे ऊंचे, सबसे सुन्दर और सबसे प्रभावी तीन सरोवर हैं। एक है पैंसठ मील के घेरेवाला मान-सरोवर। उससे कुछ छोटा उसी के पड़ोस में है रावण हृद या राकसताल। और उनके उत्तर-पूर्व में कैलास के नजदीक है, इन दोनों से छोटा, लेकिन इन दोनों से भी ऊंचा गौरीकुंड। इनके आसपास; हर दिशा में पहाड़ ही पहाड़ फैले हुए हैं जो चिर-हिम के श्वेत मुकुट
कन्याकुमारी की भव्यता
Posted on 18 Feb, 2011 04:43 PM 1970 के साल के अंतिम दिन थे सुबह तड़के उठकर, नहा-धोकर, प्रार्थना करके मदुराई से हम चल पड़े। विरुध नगर के पास साढ़े छः बजे सूर्योदय-पूर्व की शोभा देखी और साढ़े दस बजे हम कन्याकुमारी पहुंचे।
सूर्य-दर्शन
Posted on 18 Feb, 2011 04:39 PM हमारे असंख्य पूर्वजों ने भारत भक्ति के लिए खास स्थान पसंद किये हैं और भारत दर्शन क्रम भी बांध दिया है। ‘चार धाम की यात्रा’ इस व्यवस्था का एक सर्वमान्य नमूना है। पश्चिम में द्वारका, उत्तर में बदरीनारायण अथवा अमरनाथ, पूर्व में जगन्नाथपुरी और दक्षिण में (शंकर आचार्य के भक्त कहेंगे श्रृंगेरी मेरे जैसा देवीभक्त कहेगा) कन्या कुमारी। इन चार धामों की यात्रा अगर की तो भारत के सारे प्रेक्षणीय पवित्र धाम उसक
पहाड़ी नदियों का सांस्कृतिक संदेश
Posted on 18 Feb, 2011 04:36 PM मै पहाड़ी नदी-पुत्र हूं, इसलिए और संस्कृति-उपासक होने के कारण भी सारस्वत् हूं। आज हिमालय-कन्या कोसी, तीस्ता और अन्य अनेक पर्वती नदियों का दर्शन कर उत्तेजित हुआ हूं। नदियां यहां के मनुष्यों को, पशु-पक्षियों को और मत्स्यों को जीवन देती हैं, यह तो है ही, परन्तु यहां के निवासियों का जीवन बनाने में भी इन नदियों का हिस्सा सबसे ज्यादा है। राजा और राज्य आते हैं और जाते हैं उनके सैन्य और कानून राज्य चलाते
हिमालय की पार्वती नदियां
Posted on 18 Feb, 2011 01:56 PM चन्द नदियां पहाड़ों से निलकती हैं और चन्द नदियां सरोवरों से बहने लगती हैं जो सरोवरों से जन्म लेती है, वे हैं सरोजा। हिमालसय के उस पार दो बहुत बड़े और अत्यन्त पवित्र सरोवर है। एक का नाम है मानस-सरोवर, दूसरे का राकसताल या रावण-ह्रद। इन सरोवरों से निकलने वाली नदियों को सरोजा ही कहना पड़ेगा। यों देखा जाय, तो हिमालय की सभी नदियों को पार्वती नाम दिया जा सकता है। नदियां यानी अप्सरा। पहाड़ों से अप् यानी ज
पर्वत और उनकी नदियां
Posted on 18 Feb, 2011 01:51 PM (1) हिमालय पर्वत में से उद्गम पाने वाली नदियां- गंगा, सरस्वती, चंद्रभागा, (चिनाब), यमुना, शुतुद्री (सतलुज), वितस्ता (झेलम), इरावती (रावी), कुहू (काबूल), गोमती, धूतपापा (शारदा), बाहुदा (राप्ती), दृषद्वती (चितंग), विपाशा (बियास), देविका (दीग), सरयू (घाघरा), रंक्षू (रामगंगा), गंडकी (गंडक), कौशिकी (कोसी), त्रित्या और लोहित्या (ब्रह्मपुत्र)।
जल की स्वास्थ्य में भूमिका
Posted on 16 Feb, 2011 10:11 AM

जल की स्वास्थ्य में भूमिका जल ही जीवन है, ऐसा बहुधा कहा-सुना जाता है, क्योंकि बिना भोजन के हम कई दिन तक स्वस्थ्य बने रह सकते हैं किन्तु बिना जल एक दिन भी नहीं व्यतीत किया जा सकता और इसके बिना तीन दिन रहना प्राण-घातक हो सकता है। जल के अभाव में रक्त गाढ़ा होने लगता है जिससे शरीर की पोषण क्रियाएँ ठप पड़ने लगती हैं। वैसे भी जीवन की प्रथम उत्पत्ति जल में ही हुई, और हमारे शरीर के प्रत्येक अंग में जल

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