भारत

Term Path Alias

/regions/india

धरती की सुध
Posted on 02 Feb, 2011 11:39 AM

जलवायु संकट से जमीनी संघर्ष


‘‘हमें अपने पैरों के नीचे जमीन के बारे में उतना नहीं पता है, जितना हम खगोलीय पिंडों की गति के बारेमें जानते हैं।’’
लियोनार्दो दा विंची

‘‘मिट्टी का ख्याल रखो, और बाकी चीजें अपना ख्याल खुद रख लेंगी।’’
-किसानों का एक मुहावरा
दिमाग साफ तो नदी भी साफ
Posted on 01 Feb, 2011 01:28 PM

मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए। हम लोग अपने स्कूलों में अक्सर किताबों में देशप्रेम, संविधान, भूगोल जैसे विषय पढ़ते हैं। कुछ समझते हैं और कुछ-कुछ रटते भी हैं, क्योंकि हमें परीक्षा में इन बातों के बारे में कुछ लिखना ही होता है।

लेकिन, मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए।

कन्याकुमारी से कश्मीर तक, भुज से लेकर त्रिपुरा तक

river
पानी का निजीकरण
Posted on 01 Feb, 2011 10:53 AM

एक अध्ययन रिपोर्ट



असीम मुनाफे के उपासक भारत में भी पानी के निजीकरण के लिए दिन रात जुटे हुए हैं और काफी तैयारी पहले ही कर ली गई है। विशेषज्ञों को समझा लिया गया है, नौकरशाही को अपने खेमे में मिला लिया गया है। हर कोई पूरी लागत वसूली के नए मंत्र का जाप करता दिखाई देता है। इस पवित्र जाप की लय हर दिशा में गूंजती सुनाई देने लगी है।
वर्षाजल का संचय
Posted on 01 Feb, 2011 10:31 AM

आज विश्व के हर भाग में मनुष्यों को पानी की कमी महसूस हो रही है। जरा इन तथ्यों पर गौर करें:-
• एशिया के तीन में से एक व्यक्ति को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है।
• शहरी गरीबों में से 40 प्रतिशत को और कई ग्रामीण बस्तियों को सुरक्षित पेयजल नहीं मिलता।

पानी के निजीकरण की दस्तक
Posted on 31 Jan, 2011 04:53 PM

निजीकरण का जिन्न एक बार फिर से सिर उठा रहा है। जी हां, खबर है कि दिल्ली में पेयजल आपूर्ति के निजीकरण के प्रयास चल रहे हैं। इस बात का प्रमाण यह है कि दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक निजी कंपनी को जल आपूर्ति एवं रख-रखाव का जिम्मा सौंपा जा रहा है। हालांकि यह पायलट प्रोजेक्ट है, लेकिन इसके दूरगामी निहितार्थ हैं।

दिल्ली सहित कई अन्य शहरों में जल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा वितरण एवं पारेषण क्षति के रुप में नष्ट हो जाता है। दूसरे अर्थो में कहा जाए तो पानी की चोरी, अवैध कनेक्शनों एवं पाइपों में लीकेज के माध्यम से पानी की क्षति हो जाती है। इसी बात को आधार बनाकर दिल्ली जल बोर्ड द्वारा एक पायलट परियोजना के तौर पर एक निजी कंपनी को यह जिम्मा सौंपा जा रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार वसंत कुज में 14,500 फ्लैटों को करीब 31 लाख गैलन पानी की आपूर्ति प्रतिदिन होती है। प्रस्तावित परियोजना 3 चरणों में 36 माह में पूरी की जाएगी। दिल्ली सरकार चाहती है कि निजी कंपनी प्रस्तावित क्षेत्र में जल आपूर्ति के दौरान होने वाले तमाम क्षति को समाप्त करे और राजस्व वसूली

विकास की भेंट चढ़ते मैंग्रोव वन
Posted on 30 Jan, 2011 09:21 AM

अपनी खास वनस्पतियों और जलीय विशेषताओं के कारण पहचाने जाने वाले मैंग्रोव वन कुछ ही दशकों में मिट सकते हैं। यह आकलन अमेरिकी शोधकर्ताओं के एक दल का है।शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के मैंग्रोव वनों का व्यापक अध्ययन कर पाया कि इस वनस्पति की कम से कम सत्तर प्रजातियों का वजूद खतरे में है और इनके संरक्षण-संवर्द्धन पर अगर तुरंत ध्यान न दिया गया तो दो दशक के भीतर ये लुप्त हो सकती हैं। इस तरह का आकलन केवल अमेरिकी दल का ही नहीं है। हाल में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन ने भी रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार ग्यारह मैंग्राव प्रजातियों का जीवन बिल्कुल ही खतरे में है और बाकी पचास से अधिक प्रजातियों की हालत दयनीय है।

दरअसल पूरी धरती से मैंग्रोव वनक्षेत्र

बादल, वर्षा एवं हिम
Posted on 29 Jan, 2011 04:32 PM यदि हम पृथ्वी की सतह से 35 किलोमीटर ऊपर की ओर जाएं तब हमें दिन में भी आकाश काला दिखाई देगा। इस ऊंचाई से हमें दिन में तारे भी नज़र आ जाएंगे। अंतरिक्षयात्रा के दौरान जब अंतरिक्षयात्री आकाश को देखते हैं तब अंतरिक्ष में वायुमंडल की अनुपस्थिति के कारण उन्हें आकाश नीला नहीं दिखाई देता है।
कुदरती तटरक्षक मैंग्रोव वन
Posted on 29 Jan, 2011 03:26 PM

26 जुलाई यानी विश्व मैंग्रोव एक्शन दिवस। इस दिन दुनिया भर में बहुमूल्य मैंग्रोव वनों की रक्षा करने के लिए और उनकी उपयोगिता के बारे में जागरूकता लाने के लिए प्रयास किए जाते हैं। आइए हम भी इन कुदरती तटरक्षकों के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करें।

क्षीण हो रही है ओजोन परत
Posted on 29 Jan, 2011 03:20 PM

ओजोन परत का उद्गम प्राचीन महासागरों से हुआ है और वह धीरे-धीरे दो अरब वर्षों में पूरा बनकर तैयार हुआ है। ओजोन परत में जो ओजोन है उसका मूल स्रोत महासागरों के पादपों द्वारा किए गए प्रकाश-संश्लेषण के दौरान पैदा हुई ऑक्सीजन है। महासागरों से निकली ऑक्सीजन के अणु ऊपर उठते-उठते वायुमंडल के समताप मंडल में पहुंच जाते हैं। वहां वे परमाणुओं में टूट जाते हैं। ये परमाणु दोबारा जुड़कर ओजोन का निर्माण करते हैं। आक्सीजन के अणुओं के बिखरने और आक्सीजन के परमाणुओं के जुड़कर ओजोन बनने के लिए आवश्यक ऊर्जा सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से प्राप्त होती है।ऊपर आसमान में कुछ विचित्र सा घट रहा है। मनुष्यों को हानिकारक पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा प्रदान करनेवाली ओजोन परत पतली होती जा रही है। पराबैंगनी किरणों के लगने के कारण चर्मकैंसर हो सकता है। सांघातिक प्रकार के चर्मकैंसरों में 30 प्रतिशत रोगी पांच साल के अंदर मर जाते हैं। पराबैंगनी किरणों के कारण मोतियाबिंद भी होता है। अधिक संगीन मामलों में लोग इसके कारण अंधे हो सकते हैं। ओजोन परत क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) नामक मानव-निर्मित रसायनों के कारण पतली हो रही है।

पहले हम यही समझते थे कि सीएफसी एक वरदान हैं और वे मनुष्य के जीवन को समृद्ध और आरामदायक बना सकते हैं। सीएफसी कृत्रिम यौगिक होते हैं, जो क्लोरीन, कार्बन और फ्लोरीन से बने होते हैं। उनका न कोई रंग होता है न गंध। हमने रोजमर्रा के कई कार्यों में सीएफसी

×