मै पहाड़ी नदी-पुत्र हूं, इसलिए और संस्कृति-उपासक होने के कारण भी सारस्वत् हूं। आज हिमालय-कन्या कोसी, तीस्ता और अन्य अनेक पर्वती नदियों का दर्शन कर उत्तेजित हुआ हूं। नदियां यहां के मनुष्यों को, पशु-पक्षियों को और मत्स्यों को जीवन देती हैं, यह तो है ही, परन्तु यहां के निवासियों का जीवन बनाने में भी इन नदियों का हिस्सा सबसे ज्यादा है। राजा और राज्य आते हैं और जाते हैं उनके सैन्य और कानून राज्य चलाते हैं, परन्तु लोकजीवन की स्वामिनिया तो ये पर्वती नदियां ही हैं। जिस दिन विज्ञान और यंत्रविद्या का विकास होगा, उस दिन नदी के प्रवाह में से बिजली पैदा की जायेगी। उस बिजली के बल पहाड़, अरण्य काबू में आयेंगे और यहां एक अनोखी संस्कृति का विकास होगा। अनाज की खेती की अपेक्षा फलों के बाग या उपवन अहिंसक संस्कृति के ज्यादा पोषक हैं, यह गांधी जी का विचार इस प्रदेश में सिद्ध होगा। विज्ञान के साथ जीवन की सादगी का विकास हम कर सकेंगे तो मानव-संस्कृति धन्य होगी। विज्ञान भी ईश्वर-दर्शन का साधन हो सकता है, यह सिखाने वाले अध्यात्म का अब हमें विकास करना होगा।
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