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सिंधु के बाद गंगा
Posted on 25 Feb, 2011 04:55 PM फरवरी की 15 या 16 तारीख को ठेठ पश्चिम की ओर रोहरी-सक्कर के बीच सिंधु के विशाल पट पर जल-विहार करने के बाद और 28 फरवरी को कोटरी के समीप उसी सिंधु के अंतिम दर्शन करने के बाद, बारह-पंद्रह दिन के भीतर ही पूर्व की ओर पाटलिपुत्र के निकट गंगा का पावन प्रवाह देखने को मिला। यह कितने सौभाग्य की बात हैं!
नदी पर नहर
Posted on 25 Feb, 2011 04:53 PM श्रावण पूर्णिमा के मानी हैं जनेऊ का दिन; और यदि ब्राह्मण्य को भूल जायं तो राखी का दिन। उस दिन हम रूड़की पहुंचे। मजाकिये वेणीप्रसाद ने देखते-ही-देखते मुझसे दोस्ती कर ली और कहा, ‘अजी काका जी, आज तो आपके हाथ से ही जनेऊ लेंगे। यहां के ब्राह्मण वेदमंत्र बराबर बोलते ही नहीं। आप महाराष्ट्री हैं। आप ही हमें जनेऊ दीजियेगा।’ वेणीप्रसाद के मामा परम भक्त थे। उनसे जनेऊ के बारे में चर्चा चली। उत्तर भारत के ब्रा
मंचर की जीवन-विभूति
Posted on 25 Feb, 2011 03:03 PM जिसने पानी को जीवन कहा, वह कवि था या समाजशास्त्री?
लहरों का तांडवयोग
Posted on 25 Feb, 2011 03:00 PM (कराची के पास की आमारी से जरा दूर मनोरा नामक एक टापू है। वहां एक सुंदर मंदिर है। टापू पर अधिकतर पोर्टट्रस्ट के लोग और थोड़ी-सी फौज रहती है। मनोरा टापू कराची का गहना तथा समुद्र का खिलौना है। इसके दक्षिण के छोर पर एक बड़ी खोह है, जिस पर समुद्र की लहरें टकराती हैं। इससे आगे काफी दूर तक एक बड़ी दीवार खड़ी करके लहरों को रोका गया है। इससे वहां लहरों का अखंड सत्याग्रह देखने को मिलता है। यह दृश्य देखने के
बिहार की गंडकी
Posted on 25 Feb, 2011 12:05 PM छुटपन में मैंने इतना ही सुना था कि गंडकी नदी नेपाल से आती हैं और उसमें शालिग्राम मिलते हैं। शालिग्राम एक तरह के शंख जैसे प्राणी होते हैं; उन्हें तुलसी के पत्ते बहुत पसंद आते हैं; पानी में तुलसी के पत्ते डालने पर ये प्राणी धीरे-धीरे बाहर आते है और पत्ते खाने लगते हैं; उन्हें पकड़कर अंदर के जीवों को मार डालते हैं और काले पत्थर जैसे ये शंख साफ करके पूजा के लिए बेचे जाते हैं; लेकिन आज-कल के धूर्त लोग
गरजता हुआ शोणभद्र
Posted on 25 Feb, 2011 11:39 AM ‘अयं शोणः शुभ जलोSगाधः पुलिन-मण्डितः’।
‘कतरेण पथा ब्रह्मन् संतरिष्यामहे वयम्?’।।

एवम् उक्तस् तु रामेण विश्वामित्रोSब्रवीद् इदम्।
‘एष पन्था मयोद्दिष्टो येन यान्ति महर्षयः’।।

तेरदाल का मृगजल
Posted on 25 Feb, 2011 11:26 AM मेरे विवाह के बाद कुछ ही दिनों में हम शाहपुर से जमखंडी गये। पिताजी हम से पहले वहां पहुंच गये थे। रात को हम कुड़ची स्टेशन पर उतरे। वहां से रात को ही बैलगाड़ी से रवाना हुए। दोनों बैल सफेद और मजबूत थे। रंग, सींगों का आकार, मुखमुद्रा और चलने का ढंग सब बातें दोनों में समान थीं। हमारे यहां ऐसी जोड़ी को ‘खिल्लारी’ कहते हैं। इन बैलों ने हमें चौबीस घंटों में पैंतीस मील पहुंचा दिया।
शिवनाथ और ईब
Posted on 25 Feb, 2011 11:17 AM कलकत्ता आते और जाते समय अनेक नदियों से मुलाकात होती है। इस प्रदेश का इतिहास मुझे मालूम नहीं है, इसकी शर्म आती है। यहां के लोग कितने सरल और भले मालूम होते हैं! उन्होंने यदि मनुष्य-संहार की कला हस्तगत की होती, तो उनका नाम इतिहास में अमर हो जाता। कुछ लोग मरकर अमर होते हैं। कुछ लोग मारनेवालों के रूप में अमर होते हैं। मलिक काफुर, काला पहाड़ आदि दूसरी कोटि के लोग हैं।
चर्मण्वती चंबल
Posted on 25 Feb, 2011 10:28 AM जिनके पानी का स्नान-पान मैंने किया है, उन्हीं नदियों का यहां उपस्थान करने का मेरा संकल्प है। फिर भी इसमें एक अपवाद किए बिना रहा नहीं जाता। मध्य देश की चंबल नदी के दर्शन करने का मुझे स्मरण नहीं है। किन्तु पौराणिक काल के चर्मण्वती नाम के साथ यह नदी स्मरण में हमेशा के लिए अंकित हो चुकी है। नदियों के नाम उनके किनारे के पशु, पक्षी या वनस्पति पर से रखे गए हैं, इसकी मिसालें बहुत हैं। दृषद्वती, सारस्वती,
नदी का सरोवर
Posted on 25 Feb, 2011 10:21 AM हमारे देश में इतने सौंदर्य-स्थान बिखरे हुए हैं कि उनका कोई हिसाब ही नहीं रखता। मानों प्रकृति ने जो उड़ाऊपन दिखाया उसके लिए मनुष्य उसे सजा दे रहा है। आश्रम मे जिन्हें चौबीसों घंटे बापूजी के साथ रहने तथा बातें करने का मौका मिला है, वे जैसे बापू जी का महत्त्व नहीं समझते और बापू जी का भाव नहीं पूछते, वैसा ही हमारे देश में प्रकृति की भव्यता के बारे में हुआ है।
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