भारत

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प्रथम समुद्र-दर्शन
Posted on 23 Feb, 2011 02:18 PM पिता जी का तबादला सातारा से कारवार हो गया और हम लोगों ने सातारा से हमेशा के लिए बिदा ली। घर पर नरशा नाम का एक बैल था। उसे हमने मामा के घर बेलगुंदी भेज दिया। महादूर को छुट्टी देनी ही पड़ी। बेचारे ने रो-रो कर आंखें सुर्ख कर लीं। नौकरानी मथुरा को छोड़ते समय मां ने अपनी एक पुरानी किन्तु अच्छी साड़ी दे दी और उसने हम सबको बहुत दुआयें दीं। घर के बहुत सारे सामान-असबाब को ठिकाने लगाकर हम पहले शाहपुर गये औ
छप्पन साल की भूख
Posted on 23 Feb, 2011 02:02 PM सन् 1893 के करीब मैं पहली बार-कारवार गया था। मार्मागोवा बंदरगाह पर से जब मैंने पहली बार चमकता समुद्र देखा, तब मैं अवाक् हो गया था। रात को नौ बजे हम स्टीमर में बैठे। स्टीमर ने किराना छोड़कर समुद्र में चलना शुरु किया और मेरा दिमाग भी अपना हमेशा का किनारा छोड़कर कल्पना पर तैरने लगा। सुबह हुई और हम कारवार पहुंचे। स्टीमर से नाव में उतरना आसान न था। प्रत्येक नाव के साथ उलांडियां (outriggers) बंधी हुई थी
मरुस्थल या सरोवर
Posted on 23 Feb, 2011 11:46 AM किसी घटना के नियमित हो जाने से क्या उसकी अद्भुतता मिट जाती है। छः घंटे पहले पानी कहीं भी नजर नहीं आता था। उत्तर से लेकर दक्षिण तक सीधा समुद्र तट फैला हुआ है। पश्चिम की ओर जहां आकाश नम्र होकर धरती को छूता है। वहां तक-क्षितिज तक-पानी का नामो-निशान नहीं है, एक भी लहर नहीं दिखती। यह स्थान पहली बार देखने वाले को लगेगा कि यह कोई मरुस्थल है। बारिश के कारण केवल भीग गया है। या यों लगेगा कि यह कोई दलदल है,
चांदीपुर
Posted on 23 Feb, 2011 11:40 AM मुझे डर था कि पिछली बार चांदीपुर में जो दृश्य मैनें देखा था वह अबकी बार देखने को नहीं मिलेगा। अतः मन को समझाकर कि विशेष आशा नहीं रखनी चाहिये, चांदीपुर के लिए हम चल पड़े। फिर भी चांदीपुर तो चांदीपुर ही है! उसकी सामान्य शोभा भी असामान्य मानी जायेगी।
सार्वभौम ज्वार-भाटा
Posted on 23 Feb, 2011 11:38 AM हरेक लहर किनारे तक आती है और वापस लौट जाती है। यह एक प्रकार का ज्वार-भाटा ही है। यह क्षणजीवी है। बड़ा ज्वार-भाटा बारह-बारह घंटों के अंतर से आता है। वह भी एक तरह की बड़ी लहर ही है। बारह घंटों का ज्वार भाटा जिसकी लहर है, वहा ज्वार-भाटा कौन सा है? अक्षय-तृतीया का ज्वार यदि वर्ष का सबसे बड़ा ज्वार हो, तो सबसे छोटा ज्वार कब आता है?
जल गुणवत्ता पर एक नजर
Posted on 22 Feb, 2011 04:09 PM बाबर ने अपने बाबरनामा में लिखा है कि हिंदुस्तान में चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है। यहां जितनी नदियां हैं, मैंने कहीं नहीं देखा है। यहां वर्षा इतनी जोरदार होती है कि कई-कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लेती। बाबर के इस लेख से ज्ञात होता है कि पानी के मामले में यह मुल्क कभी आत्मनिर्भर था, लेकिन अब तो वह बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश कम हो रही है और जलस्रोत सूख
महिलाएं और मनरेगा
Posted on 22 Feb, 2011 03:34 PM

जिन राज्यों में गरीबी अधिक है वहां उम्मीद की जा रही थी कि मनरेगा के अंतर्गत महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोत्तरी होगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि जिन राज्यों में अत्यधिक गरीबी है वहां पर महिलाएं मनरेगा में कम भागीदारी कर रही हैं। वहीं दूसरी ओर जिन राज्यों में वर्तमान में कुल श्रमशक्ति में महिलाओं की संख्या कम है वहां पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा है।

दक्षिण के छोर पर
Posted on 22 Feb, 2011 01:11 PM धनुष्कोटी में मैं पहले-पहल आया उसको अब करीब बीस साल हो चुके हैं। जहां तक मुझे स्मरण है, श्री राजा जी ने मेरे साथ श्री वरदाचारी जी को भेजा था। वरदाचारी ठहरे रामायण के भक्त। रास्ते भर रामायण की ही रसिक बाते चलीं। हम धनुष्कोटि पहुंचे और वरदाचारी जी की सनातनी आत्मा श्राद्ध करने के लिए तड़पने लगी। एक योग्य ब्राह्मण का पता लगाकर वे इस विधि में मशगूल हो गये और हम लोग आमने-सामने गरजने वाले रत्नाकर और महोद
अर्णव का आमंत्रण
Posted on 22 Feb, 2011 01:05 PM समुद्र या सागर जैसा परिचित शब्द छोड़कर मैंने अर्णव शब्द केवल आमंत्रण के साथ अनुप्रास के लोभ से ही नहीं पसन्द किया। अर्णव शब्द के पीछे ऊंची-ऊंची लहरों का अखंड तांडव सूचित है। तूफान, अस्वस्थता, अशांति, वेग, प्रवाह और हर तरह के बंधन के प्रति अमर्ष आदि सारे भाव अर्णव शब्दों में आ जाते हैं। अर्णव शब्द का धात्वर्थ और उसका उच्चारण, दोनों इन भावों में मदद करते हैं। इसीलिए वेदों में कई बार अर्णव शब्द का उप
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