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राष्ट्रीय जल नीति मसौदा – 2012 : पानी से पैसा बनाने की कोशिश
Posted on 27 Jun, 2012 01:33 PM जल संसाधनों के संरक्षण के नाम पर समाज से मिलकियत छीन कर कंपनियों और बाजार को पानी की मिलकियत देने की तैयारी हो रही है। जल वितरण एवं रख-रखाव के नाम से ‘पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (PPP Model)’ के रूप में यह होगा। राष्ट्रीय जल नीति 2012 – मसौदा इस काम को कानूनी जामा पहनायेगा। लोकतंत्र में लोगों के हितों की अनदेखी और बाजारू ताकतों को बढ़ावा; नीति निर्माताओं द्वारा यह दोगलापन गंभीर चिंता पैदा करता ह
राष्ट्रीय जलनीति-2012 : जी का जंजाल
Posted on 27 Jun, 2012 12:57 PM भारत सरकार नई जल नीति ला रही है, पर इस बार की जल नीति जन अंकाक्षाओं के ठीक विपरीत है। जल अब एक आर्थिक वस्तु बन जायेगा इस जल नीति के आधार पर। नई जल नीति कहती है कि जल को आर्थिक वस्तु मानकर इसका मुल्य निर्धारण उससे अधिकतम लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर कर करना चाहिए। नई जल नीति कॉर्पोरेट हितों को पोषण करेगी बता रहे हैं भगवती प्रकाश।
सड़ता अन्न, भूखे जरूरतमंद
Posted on 27 Jun, 2012 11:51 AM सर्वोच्च न्यायालय की तीखी टिपण्णी के बावजूद भी हमारे कर्णधार अनाज को सड़ते देखकर चुप हैं। उनको 12 रुपये प्रति किलो के दर से खरीदा गया गेहूं सड़ाकर 6.20 रुपये किलो की दर से शराब कंपनियों को बेचना अच्छा लगता है। कहीं ऐसा तो नहीं समर्थन मूल्य और खाद्य सबसिडी का फायदा शराब माफियों को पहुंचाया जा रहा है। दुनिया में एक तरफ करोड़ों की संख्या में लोगों को अन्न नसीब नहीं है, तो वहीं अन्न सड़ा-गला देने ज
पानी पीजिए जरा संभल कर
Posted on 27 Jun, 2012 10:08 AM जल है तो कल है, जीवन का हर पल है- यह बात उतनी ही अगम्य और अचूक है जितनी कि ईश्वर के प्रति हमारी आस्था, धार्मिकता और अटल विश्वास। प्रकृति प्रदत्त वरदानों में हवा के बाद जल की महत्ता सिद्ध है। जल पर हम जन्म से लेकर मृत्यु तक आश्रित हैं। वैदिक सास्त्रों के अनुसार जल हमें मोक्ष भी प्रदान करता है। कवि रहीम के शब्दों में जल महत्ता इन पंक्तियों से स्पष्ट है -
परंपराओं में ही है जल संकट का समाधान
Posted on 26 Jun, 2012 01:52 PM

जलसंकट का बड़ा कारण केवल बढ़ती खपत या आबादी नहीं है, हमें नई विधियों को पुरानी परंपराओं के साथ समावेश करके ही जल व्यवस्था पर मंथन करना चाहिए, जिसका मुख्य आधार वर्षा जल ही है। जलसंकट की वजह यह तो नहीं मानी जा सकती कि हमारे पास पर्याप्त पानी नहीं है, क्योंकि हमारे यहां किसी भी तरह के पानी का स्रोत वर्षा ही है। और वर्षा प्रायः हर वर्ष बराबर मात्रा में होती है। फिर भी पानी का संकट है। सदियों से

water crisis
गंगा मुक्ति का यक्ष प्रश्न
Posted on 23 Jun, 2012 11:45 AM

प्राधिकरण के सामने गंगा संकट की समग्र स्थिति आई। गंगा मुक्ति आंदोलनों, उनसे जुड़े अलग-अलग सत्याग्रहों, अनशनों, य

सामाजिक न्याय और पर्यावरण का नाता
Posted on 22 Jun, 2012 01:27 PM

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने हाल ही में सामाजिक न्याय और पर्यावरण स्थायित्व पर एक सम्मेलन आयोजित किया। इसका उद्देश्य सन् 2000 में न्यूयॉर्क में तय किए गए 8 सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों में से एक की प्राप्ति के बारे में गहन चर्चा करना था। इन 8 लक्ष्यों में से 7वां लक्ष्य था पर्यावरण की दिशा में स्थायित्व हासिल करना और इस क्रम में विकास, गरीबी और स्थायी विकास की एक दूसरे पर निर्

save environment
और अब हरा पूंजीवाद
Posted on 22 Jun, 2012 01:14 PM

पानी नीला सोना है उसे बचाओ, पूरा पृथ्वी के पानी को अगर एक गैलन मान लिया जाए तो पीने योग्य पानी एक चम्मच भर बचा ह

आषाढ़ : प्रकृति खिलखिलाने के बजाय अब डराती है
Posted on 21 Jun, 2012 10:50 AM आषाढ़ का महीना आते ही प्रकृति खिलखिलाने लगती है रिमझिम वर्षा की बारीश की बुंदे धरती पर पड़ते ही मिट्टी के शौंधेपन की खुशबू और कोयल की कुकू-कुकू की आवाज के साथ आषाढ़ महीने की आगाज हो जाता है और लोगों के मन में एक उल्लास पैदा हो जाता था। आषाढ़ किसानों के लिए खुशखबरी होती थी लेकिन अब ऐसा ऐसा नहीं होता है क्योंकी आषाढ़ का महीना उल्लास लाने के बजाय डराती है।
गंगा मुक्ति के लिए लोक संग्राम
Posted on 21 Jun, 2012 10:02 AM

गंगा प्रेमियों की इच्छा और मांग है कि गंगा मूल धारा के चारों तरफ कोई उद्योग न लगे। पूरा बेसिन प्रदूषित उद्योगों

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