कैलाश वाजपेयी

कैलाश वाजपेयी
तरल पहेली
Posted on 01 Oct, 2013 04:12 PM
मेरे जन्म लेने के पहले से
जो बह रही है बिना रुके-
मेरे भीतर के भीतर और भीतर
वह नदी दुनिया में सबसे निराली है।
उसके बहाव को देखा नहीं मैंने एक बार भी
मेरे रुकने, सो जाने से
कोई वास्ता नहीं, उस बहने वाली का
है बंद भीतर मेरे ही
फिर भी नहीं जानती
किसका इलाका है नाम क्या?
चुपचाप बहने में लीन है,
बीसवीं सदी के विलयन के बावजूद।
पाप और परंपरा
Posted on 01 Oct, 2013 04:10 PM
ऐसा है एक नदी बह रही है
कोलतार की
चिता और गर्भ के बीच के धुँधलके में
और मेरे सर पर गट्ठर है कपास का।
‘बचाओ’ चिल्लाने से पहले
मैंने ऊँगलियाँ भर देखी थीं
डूबते पिता की
घाटी के पास उस चीख का
कोई लेखा नहीं!
ऐसा है जिस जगह मेरे पैर हैं
वहाँ दीमक घर हैं ताजे बने हुए
लगातार हवा घूँसे मार रही है
मेरी पीठ पर।
सँभलने के लिए जब मैं
यादों में बरसे बादल
Posted on 05 Jul, 2012 12:23 PM

जैसे ही पहली बौछार धरती पर पड़ती है मिट्टी की कोख से सोंधे एहसास की खुशबू उभरती है। बूंदों का लहरा हर उपादान पर

और अब हरा पूंजीवाद
Posted on 22 Jun, 2012 01:14 PM

पानी नीला सोना है उसे बचाओ, पूरा पृथ्वी के पानी को अगर एक गैलन मान लिया जाए तो पीने योग्य पानी एक चम्मच भर बचा ह

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