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पृथ्वी को वसुंधरा बनाती वर्षा
Posted on 04 Jul, 2012 11:10 AM यह ज्येष्ठ मास है। ग्रीष्म अपने पूर्ण प्रताप में है। इस ताप में वर्षा की इच्छा बसी है। कहते हैं-
‘जब जेठ तपै निरंता, तब जानौ बरखा बलवंता।’
निराला ने इस स्थिति-द्वंद्व का चित्रण इन पंक्तियों में किया है-
‘जला है जीवन यह आतप में दीर्घ काल
सूखी भूमि सूखे तरु सूखे सिल आल बाल
बंद हुआ अलि गुंज धूलि धूसर हुए कुंज
किंतु देखो व्योम-उर पड़ी बंधु मेघ-माल।’


कहने की जरूरत नहीं कि कविता में चित्रित जलने वाला जीवन निराला का भी है और लोक और प्रकृति का भी। इस घोर ताप का ही फल है आकाश (और निराला के कंठ में भी) पड़ने वाली मेघ माला (निराला के पक्ष में यश की माला) इस द्वंद्व में जीवन-राग है। यह राग कभी-कभी विलाप भी बनकर रह जाता है किंतु यह सच है, प्रकृति का नियम है,ग्रीष्म और वर्षा का कारण-कार्य संबंध।
वर्षा होने से सबसे ज्यादा खुशी किसानों को होती है
पर्यावरण भी हमारे परिवार का ही हिस्सा है
Posted on 03 Jul, 2012 03:58 PM वर्षा हमारा जीवन रस है और पर्जन्य प्रसाद। पर्जन्य वर्षा कराने वाली प्रकृति की व्यवस्था है और ऐसी ही दिव्यशक्तियों को देवता कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान जिसे पर्यावरण चक्र या इकोसाइकिल कहता है ऋगवेद के ऋषि उसे पर्जन्य कहते हैं। हमारा पर्यावरण भी हमारे जीवन चक्र का एक अंग है समझा रहे हैं हृदय नारायण दीक्षित।
पर्यावरण के बिना जीवन असंभव
Posted on 02 Jul, 2012 04:43 PM वर्तमान युग औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण का युग है। जहाँ आज हर काम को सुगम और सरल बनाने के लिए मशीनों का उपयोग होने लगा हैं, वहीं पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। पर्यावरण, ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है, जो संपूर्ण मानव समाज का एकमात्र महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य भौतिक तत्वों- पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि से मिलकर पर्यावरण का निर्माण हुआ हैं। यदि म
नदियों को मारकर,गंदे नालों के साथ जीने की लत
Posted on 02 Jul, 2012 12:52 PM भारत नदियों का देश रहा है। इस देश में गंगा, यमुना, सरस्वती आदि प्रसिद्ध नदियां बहती हैं। इन नदियों को मां कहा जाता है। सुबह-शाम इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। नदियों के किनारे ही हमारे संस्कृति का विकास हुआ है। लेकिन अब नदियां कचरा ढोने वाली मालगाड़ी बन गई हैं। अब नदियों में साफ पानी से ज्यादा सीवेज का कचरा मिलेगा। क्योंकि हम नदियों से पानी लेते तो हैं लेकिन उसके बदले नदियों को अपने शहर की गंदगी
ग्राम, ग्रामीण और गर्व की अनुभूति
Posted on 30 Jun, 2012 10:05 AM

भारत कई कृषि जलवायु क्षेत्र में बटा है और हमारी पारम्परिक फसलों की विविधता भी उसी वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित थी, ल

तन-मन ठीक रखने के लिए हरियाली के पास रहें
Posted on 29 Jun, 2012 01:04 PM हमारे शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए प्रकृति ने हमें सदियों से काफी कुछ दिया और अब भी दे रहा है, देता रहेगा। दरअसल प्रकृति ने जो हमें हरियाली दिया है उससे अलग होकर हम रह ही नहीं सकते। हमें स्वस्थ्य रहने के लिए रहने के लिए स्वच्छ ऑक्सिजन की जरूरत होती है,जो हमें प्रकृति की इन हरियाली से मिलता है। क्योंकि ये ऑक्सिजन हरियाली के बीच टहलने पर रक्त में घुली ग्लूकोज की मात्रा मांसपेशियों को ऊर्जा देती ह
गंगा के साथ सरकार का अन्याय
Posted on 29 Jun, 2012 11:42 AM गंगा नदी भारतीयों के लिए एक नदी नहीं बल्कि मोक्षदायिनी मां है। जिस गंगाजल की दो बूंद मरते हुए आदमी के मुंह में डाली जाती है उसी गंगा को लोग कहीं बांध तो कहीं नाले का पानी डालकर मार रहे हैं। गोमुख से गंगा सागर तक गंगा हमारे देश की लगभग आधी आबादी को पालती है। विश्व की कोई भी नदी ऐसी नहीं, जो इतनी बड़ी जनसंख्या की पालनहार हो फिर भी केंद्र सरकार गंगा के अविरल निर्मल प्रवाह पर ध्यान नहीं दे रही है।
आस्था से खिलवाड़
Posted on 27 Jun, 2012 03:59 PM

आज सत्ता पक्ष में जो लोग हैं, वे एक प्रकार के ‘नव संभ्रांतवादी’ मानसिकता से प्रभावित हैं। इसलिए वे आस्था, श्रद्ध

पानी के अधिकार का आंदोलन
Posted on 27 Jun, 2012 03:51 PM पानी के अधिकार के लिए कैलाश गोदुका, गोपाल अग्रवाल ने ‘जल संगठन अभियान' की शुरुवात की। दिल्ली के एक संगठन ‘सेंटर फॉर सोशल जस्टिस एंड डेमोक्रेसी’ जलाधिकार अभियान का मूल संगठन है। जलाधिकार अभियान से पानी के क्षेत्र में काम कर रहे प्रख्यात लेखक श्री अनुपम मिश्र भी संरक्षक के नाते जुड़े हुए हैं। जलाधिकार अभियान के उद्देश्यों, मुद्दों और मांगो के बारे में बता रहे हैं मंगलेश कुमार।
सफाई के बहाने अरबों रुपए बहाए
Posted on 27 Jun, 2012 01:38 PM

सरकार ने गंगा नदी की सफाई के लिए जितना पैसा बहा चुकी है, उससे कहीं अधिक गंदगी गंगा के पानी में घुल गई है। गंगा स

sewer drowning in Ganga
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