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आर्थिक विकास में ऊर्जा की भूमिका
Posted on 08 Sep, 2015 04:34 PM

आज विश्व के सामने यह समस्या है कि इस विकास को सतत एवं दीर्घगामी रूप कैसे दिया जाए। यह कहना अवां

हिमालय पर मँडराता भूकम्प का खतरा
Posted on 08 Sep, 2015 03:53 PM

हिमालय दिवस 9 सितम्बर 2015 पर विशेष


इसी साल अप्रैल माह में नेपाल में आये विनाशकारी भूकम्प ने साबित कर दिया है कि इस भूभाग में भूकम्प का सबसे ज्यादा खतरा देश के हिमालय और उसके आस-पास के क्षेत्र पर मँडरा रहा है। यह सब हिमालय की अनदेखी का परिणाम है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह भूकम्प हिरोशिमा पर बरसाये परमाणु बम से 504.4 गुना ताकतवर था।
earthquake
जंगलों की आग से बचाव
Posted on 08 Sep, 2015 01:38 PM

जंगलों में हर साल लगने वाली आग से बड़े क्षेत्र की जैव विविधता और उत्पादकता का ह्रास होता है। ले

हिमालय पर वैज्ञानिक निगरानी की दरकार
Posted on 08 Sep, 2015 01:34 PM

हिमालय दिवस 9 सितम्बर 2015 पर विशेष


भूगर्भीय कालचक्र में हिमालय प्रकृति की एक नवीनतम कृति है। विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय अपनी रचना पक्रिया में है इसीलिये अस्थिर है और इसकी सारी हलचल अपने स्थिर होने की कोशिश के कारण है। ये तथ्य भूगर्भशास्त्रियों में कुतूहल तो पैदा करते ही हैं लेकिन उससे भी बड़ी बात यह कि भारत की जलवायु और मौसम को निर्धारित करने में हिमालय की बड़ी भूमिका है।
Himalaya
राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला -2015 का आयोजन
Posted on 08 Sep, 2015 12:06 PM

तीन वर्षों से स्पंदन संस्था द्वारा मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से मीडिया चौपाल का आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष यह आयोजन ‘जीवाजी विश्वविद्यालय’, ग्वालियर में होना है।

राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, भारत सरकार के सहयोग से 'राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला -2015' का आयोजन 10-11 अक्टूबर, 2015 को हो रहा है।

वर्ष 2013 में मीडिया चौपाल का मुख्य-विषय 'जन-जन के लिए मीडिया' तथा वर्ष 2014 का मुख्य विषय ‘नदी संरक्षण’ था। इस राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला का केन्द्रीय विषय 'नदी संरक्षण एवं पुनर्जीवन' है।

उमड़-घुमड़ जल बह गया
Posted on 08 Sep, 2015 11:48 AM चंद्र चले, सूरज चले, बहे नदी की धार।
करे सदा जो संसरण, बंधु वही संसार।।

मानव-मन में जब हुई, पैदा कोई खोट।
प्रकृति-कोप का तब हुआ, विध्वंसक विस्फोट।।

बिन सर-सरिता के सजन, ज्यों नीरव परिवेश।
बिना राष्ट्रभाषा विवश, त्यों गूँगा हर देश।।

दूर-दूर तक भी यहाँ, वृक्ष न कोई छाँव।
ढूँढ़ रहे हैं व्यर्थ सब, मरूथल में क्यों गाँव।।
जल बचाएँ, कल बचाएँ
Posted on 08 Sep, 2015 11:41 AM 1.
सिंध तट वासियों से, हिन्द के निवासियों से,
कवि का निवेदन है, पानी को बचाइये।
पास के कुँओं से, बावड़ियों से निकाल नीर,
पानी पियो, पर व्यर्थ पानी ना बहाइये।।
बादलों की आरती उतारिये लगा के पेड़,
धरती माता को हरी चूनरी उढ़ाईये।
नदी में न गन्दगी बहाइये, ओ मेरे भाई,
‘अनुरागी’ बन मान नदी का बढ़ाईये।।

2.
मुक्त व्यापार शुरू करने का लक्ष्य
Posted on 08 Sep, 2015 11:03 AM

दक्षेस (सार्क) शिखर सम्मेलन

 

SAARC
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत
Posted on 08 Sep, 2015 10:50 AM पानी दिखता ही नहीं, पाया कारावास,
होठों पर जलने लगी, अंगारों सी प्यास।।

नदिया तस्कर ले गए, चल निकला व्यापार,
‘पौशाले’ की जीभ पर, छालों की भरमार।।

पीने की खातिर बचे, मिट्टी बालू रेत,
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत।।

सपनों की चिड़ियाँ कटी, जागा हाहाकार,
जल बिन टुल्लू हाँफता, हाँफ रही सरकार।।

तड़प रहा है रेत में, अपना जीवन राग,
बादल
Posted on 08 Sep, 2015 10:24 AM बहुरूपिये बादल को भी, हमने स्वांग रचाते देखा।
आसमान से उतर उतर कर, पार समंदर जाते देखा।

कभी -कभी पर्वत बन जाता, जाकर कभी कहीं छिप जाता
पवन दूत के आगे -आगे, इसको दौड़ लगाते देखा।
बहुरूपिये बादल को भी, हमने स्वांग रचाते देखा।

ये बादल है बड़ा सयाना, इसको हमने अब पहचाना।
इस बादल को भरी दुपहरी, हमने रंग जमाते देखा।
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