भगवानदास जैन

भगवानदास जैन
उमड़-घुमड़ जल बह गया
Posted on 08 Sep, 2015 11:48 AM
चंद्र चले, सूरज चले, बहे नदी की धार।
करे सदा जो संसरण, बंधु वही संसार।।

मानव-मन में जब हुई, पैदा कोई खोट।
प्रकृति-कोप का तब हुआ, विध्वंसक विस्फोट।।

बिन सर-सरिता के सजन, ज्यों नीरव परिवेश।
बिना राष्ट्रभाषा विवश, त्यों गूँगा हर देश।।

दूर-दूर तक भी यहाँ, वृक्ष न कोई छाँव।
ढूँढ़ रहे हैं व्यर्थ सब, मरूथल में क्यों गाँव।।
×