यश मालवीय
यश मालवीय
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत
Posted on 08 Sep, 2015 10:50 AMपानी दिखता ही नहीं, पाया कारावास,होठों पर जलने लगी, अंगारों सी प्यास।।
नदिया तस्कर ले गए, चल निकला व्यापार,
‘पौशाले’ की जीभ पर, छालों की भरमार।।
पीने की खातिर बचे, मिट्टी बालू रेत,
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत।।
सपनों की चिड़ियाँ कटी, जागा हाहाकार,
जल बिन टुल्लू हाँफता, हाँफ रही सरकार।।
तड़प रहा है रेत में, अपना जीवन राग,