हिन्दी इंडिया वाटर पोर्टल
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राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला -2015 का आयोजन
Posted on 08 Sep, 2015 12:06 PMतीन वर्षों से स्पंदन संस्था द्वारा मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से मीडिया चौपाल का आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष यह आयोजन ‘जीवाजी विश्वविद्यालय’, ग्वालियर में होना है।
राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, भारत सरकार के सहयोग से 'राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला -2015' का आयोजन 10-11 अक्टूबर, 2015 को हो रहा है।
वर्ष 2013 में मीडिया चौपाल का मुख्य-विषय 'जन-जन के लिए मीडिया' तथा वर्ष 2014 का मुख्य विषय ‘नदी संरक्षण’ था। इस राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला का केन्द्रीय विषय 'नदी संरक्षण एवं पुनर्जीवन' है।
अल्पकालिक रिसर्च ग्रांट के लिये आवेदन आमंत्रित : अर्घ्यम
Posted on 16 Aug, 2015 12:28 PMअर्घ्यम संस्था; ग्राउंड वाटर और सेनिटेशन के क्षेत्र में अल्पकालिक (6-12 माह) शोध अध्ययन के लिये कंसेप्ट पेपर आमंत्रित कर रही है।ग्राउंड वाटर- सेनिटेशन के अन्तर्सम्बन्ध पर शोध कार्यक्रम
यह शोध कार्यक्रम भारत में भूजल और सेनिटेशन के अन्तर्सम्बन्ध पर समझ बेहतर बनाने के लिये बनाया गया है ताकि इस क्षेत्र में समेकित दृष्टिकोण के साथ हल ढ़ूँढ़ने के लिये आगे बढ़ा जा सके। फिलहाल भूजल और सेनिटेशन के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में जानकारी या सबूत बहुत सीमित हैं। यह शोध कार्यक्रम इसी ज्ञान के अधूरेपन को पूरा करने की एक कोशिश है जोकि शोध के प्रयोगात्मक पहलू और इस सम्बन्ध में उपलब्ध ज्ञान तथा अनुभवों को एकत्रित करके किया जाएगा।
राजेन्द्र सिंह को स्टॉकहोम वाटर-प्राइज
Posted on 21 Mar, 2015 11:49 AMभारत में जल-पुरूष के नाम से विख्यात राजेन्द्र सिंह को आज दुनिया का पानी के लिए सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार स्टॉकहोम वाटर-प्राइज देने की घोषणा की गई। पुरस्कार की घोषणा होते ही पूरे भारत के जलकर्मियों में विशेष उत्साह है। पुरस्कार की घोषणा के बाद राजेन्द्र सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि वाष्पीकरण रोक कर धरती का पेट भरने से नदी पुनर्जीवित करने वाले भारतीय ज्ञान को स्टाॅकहोम 2015 का जल पुरस्कार मिला है। यह जल का नोबेल प्राइज हमारी जल उपयोग दक्षता की सफलता है। 07 नदियों के पुनर्जीवन वाले 30 वर्षों के प्रयोग की विजय हुई है। यह मेरे जीवन का अब तक का सबसे बड़ा आनन्द और गौरव है।चुनौतियाँ स्वीकार करना मेरा स्वभाव है। भू-जल हमारे क्षेत्र में खत्म हो गया था। उसे भरना कठिन रास्ता था। वर्तमान शिक्षा तो केवल भू-जल शोषण की तकनीक और इन्जीनियरिंग सिखा रही है।