अहालिव की खेती गुजरात एवं राजस्थान में होती है। इसका बाजार मूल्य 20 से 25 रुपये किलोग्राम है। अहालिव का महत्व इसमें प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले लौह-लवण एवं कैल्शियम के कारण है।
प्राचीन काल से ही हमारे देश के ऋषि-मुनियों एवं बुजुर्गों को जड़ी-बूटियों एवं पारम्परिक खाद्य पदार्थों का समृद्ध ज्ञान रहा है। हमारे देश में प्राचीन समय से ही नवप्रसूता को विशेष प्रकार की जड़ी-बूटियाँ एवं पारम्परिक खाद्य जैसे गोंद, मेथी, सोंठ, हरीरा आदि दिए जाते रहे है।
इन्हीं की श्रेणी में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है ‘अहालिव’ अथवा गार्डन क्रेस सीड्स तथा इसका वनस्पति शास्त्रीय नाम है: ‘लेपिडियम स्टाइवम’।
इसके बीज तिल्ली के बीजों के आकार के, कठोर एवं पकी हुई ईंट के रंग के होते हैं। इसके बीजों के अलावा इसकी पत्तियों को भी सब्जी के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। दोनों के पोषण मूल्य को संलग्न तालिका में दर्शाया गया है।
अहालिव की खेती गुजरात एवं राजस्थान में होती है। इसका बाजार मूल्य 20 से 25 रुपये किलोग्राम है। अहालिव का महत्व इसमें प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले लौह-लवण एवं कैल्शियम के कारण है।
आमतौर पर एलोपैथी की चिकित्सा पद्धति द्वारा लौह-लवण की गोलियाँ अथवा सिरप लेने पर बदहजमी, पेट फूलना, काले रंग के दस्त, पेचिश एवं जी मिचलाना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं एवं कई बार लाभ होने के स्थान पर हानि ही होती है लेकिन अहालिव में उपस्थित लौह-लवण का आसानी से पाचन होकर अभिशोषण हो जाता है।
सामान्यतः अनाजों एवं हरी तरकारियों में फायटिक एसिड और ऑक्जलिक एसिड होते हैं जो लौह-लवण एवं कैल्शियम के साथ क्रमशः आयरन फायटेट एवं कैल्शियम आक्जलेट जैसे अघुलनशील लवण बना लेते हैं और इन खनिजों की शरीर में उपलब्धता कम हो जाती है लेकिन अहालिव में आक्जलिक एसिड एवं फायटिक एसिड बहुत कम होने के कारण ये शरीर में पर्याप्त मात्रा में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
100 ग्राम भार | आद्रता (ग्राम) | प्रोटीन (ग्राम) | वसा (ग्राम) | खनिज (ग्राम) | रेशे (ग्राम) | कार्बोज (ग्राम) | ऊर्जा (कैलोरी) |
अहालिव बीज | 3.2 | 25.3 | 24.5 | 6.4 | 7.6 | 33 | 454 |
अहालिव साग | 82.3 | 5.8 | 01 | 2.2 | - | 8.7 | 67 |
100 ग्राम भार | कैल्शियम | फास्फोरस (मि.ग्रा.) | लौह लवण | कैरोटीन (माइक्रो ग्रा.) | थायमिन | राइबो | नायसिन फ्लेविन | मैंगनीज (मि.ग्रा.) | आक्जलिक एसिड | फायटिक एसिड |
अहालिव बीज | 337 | 723 | 100 | 27 | 0.59 | 0.61 | 14.3 | 430 | 149 | 442 |
अहालिव साग | 360 | 110 | 28.6 | - | 0.15 | - | - | - | - | - |
पारम्परिक विधि में अहालिव को दूध एवं शक्कर के साथ उबालकर खीर बनाकर वह नवप्रसूता को दी जाती है जिससे प्रसव के दौरान हुई रक्ताल्पता तथा कमर एवं पेट दर्द में आराम मिलता है। यह नवप्रसूता में दुग्धस्राव बढ़ाती है एवं स्त्री रोगों में लाभप्रद है किन्तु यह खीर बहुत चिपचिपी एवं अरुचिकर होती है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की एक पोषण विशेषज्ञा ने अहालिव, बाजरा, खसखस एवं मेवों से बना एक पोषाहार विकसित किया है जो बेहद स्वादिष्ट एवं पौष्टिक तत्वों से भरपूर है। इसे एक कप दूध में चीनी एवं एक चम्मच पोषाहार (आई.पी.फुड) डालकर बनाया जाता है। इसे बच्चों और सभी उम्र की महिलाओं तथा पुरुषों को दिया जा सकता है।
बाजार में उपलब्ध इंस्टेंट फूड ड्रिंग की तुलना में आई.पी. फूड पूर्णतः प्राकृतिक, अधिक पोषणयुक्त एवं सस्ता है। एनीमिया के रोगियों को प्रतिदिन देने पर उनके हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार होता है।
मध्य प्रदेश शासन के खाद्य तथा औषधि विभाग द्वारा आई.पी. फूड के उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी किया गया है। इसे पेटेंट करवाने तथा आई.एस.आई. अथवा एगमार्क प्रमाणपत्र प्राप्त करने के प्रयास जारी हैं।
आई.पी. फूड की गुणवत्ता एवं टिकाऊपन को परिष्कृत करने के लिए इसे केन्द्रीय खाद्य एवं प्रौद्योगिकी संस्थान मैसूर भेजा गया है।
आजकल बाजार में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा निर्मित महँगे पोषक पेय पदार्थों के बढ़ते चलन को देखते हुए इसके स्थान पर पारम्परिक पदार्थों का प्रचलन प्रोत्साहित कर विदेशी मुद्रा बचाई जानी चाहिए।
(लेखिका भोपाल (मध्य प्रदेश) के शासकीय गीतांजलि कन्या महाविद्यालय के गृहविज्ञान एवं समन्वयक क्लीनिकल न्युट्रीशन एवं डायटेटिक्स विभाग में विभागाध्यक्ष हैं।)
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