पानी दिखता ही नहीं, पाया कारावास,
होठों पर जलने लगी, अंगारों सी प्यास।।
नदिया तस्कर ले गए, चल निकला व्यापार,
‘पौशाले’ की जीभ पर, छालों की भरमार।।
पीने की खातिर बचे, मिट्टी बालू रेत,
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत।।
सपनों की चिड़ियाँ कटी, जागा हाहाकार,
जल बिन टुल्लू हाँफता, हाँफ रही सरकार।।
तड़प रहा है रेत में, अपना जीवन राग,
पानी-पानी में लगी, जैसे कोई आग।।
गर्म टीन सा तप रहा, हर कोमल एहसास,
नल के सूखे होंठ हैं, पनघट दिखे उदास।।
सूरज चला शिकार पर, लेकर तीर कमान,
पानी बिन गहरा लगे, दुपहर का सुनसान।।
प्यासी है सारी प्रजा, प्यासा है सम्राट,
हवनकुण्ड से हो गए, पानी वाले घाट।।
गर्म धूल आँखों भरी, भरा न कोई घाव
पानी को है सोचती, औंधी लेटी नाव।।
पानी क्या दे जि़ंदगी, खुद गफलत में जान,
जूझ रहा है गुलमुहर, जूझ रहा इन्सान।।
कठिन लकीरों से भरा, उसका सरल स्वभाव,
पत्थर जैसा हो गया, पानी का बर्ताव।।
होठों पर जलने लगी, अंगारों सी प्यास।।
नदिया तस्कर ले गए, चल निकला व्यापार,
‘पौशाले’ की जीभ पर, छालों की भरमार।।
पीने की खातिर बचे, मिट्टी बालू रेत,
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत।।
सपनों की चिड़ियाँ कटी, जागा हाहाकार,
जल बिन टुल्लू हाँफता, हाँफ रही सरकार।।
तड़प रहा है रेत में, अपना जीवन राग,
पानी-पानी में लगी, जैसे कोई आग।।
गर्म टीन सा तप रहा, हर कोमल एहसास,
नल के सूखे होंठ हैं, पनघट दिखे उदास।।
सूरज चला शिकार पर, लेकर तीर कमान,
पानी बिन गहरा लगे, दुपहर का सुनसान।।
प्यासी है सारी प्रजा, प्यासा है सम्राट,
हवनकुण्ड से हो गए, पानी वाले घाट।।
गर्म धूल आँखों भरी, भरा न कोई घाव
पानी को है सोचती, औंधी लेटी नाव।।
पानी क्या दे जि़ंदगी, खुद गफलत में जान,
जूझ रहा है गुलमुहर, जूझ रहा इन्सान।।
कठिन लकीरों से भरा, उसका सरल स्वभाव,
पत्थर जैसा हो गया, पानी का बर्ताव।।
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Post By: RuralWater