Posted on 30 Aug, 2015 01:16 PMविष्णु पदी धवला विमला शिव शीश जटा बिच शोभित गंगा। पांव धरे जिस राह भगीरथ दौड़ पड़ी उस ओरही गंगा। पाप हरे सब जीवन के दुख दूर करे यह पावन गंगा। दूषित नित्य किया हमने यह सोचत ही नित रोवत गंगा।।
गोमुख से निकसी विकसी हिम शीतल निर्मल पावन गंगा। तोड़ शिला करती नित नर्तन पर्वत-पर्वत अल्हड़ गंगा। खेत धरा पर नेह बहा करती निधि वैभव पूरित गंगा।
वर्ष 2011 की जनगणना मुताबिक 74.04 प्रतिशत भारतीयों को अक्षरज्ञानी कहा जा सकता है। वर्गीकरण करें, तो 82.14 प्रतिशत पुरुष और 65.46 महिलाओं को आप इस श्रेणी में रख सकते हैं। आप कह सकते हैं कि आगे बढ़ने और जिन्दगी की रेस में टिकने के लिये अक्षर ज्ञान जरूरी है।