बिहार : सुझाव के विपरित विज्ञान

कोसी नदी को 1955 में अपहृत कर कम से कम 70 किलोमीटर दूर पश्चिम नेपाल से निकलने वाली तिलयुगा नदी को दो धाराओं में उत्तर से दक्षिण बहा दिया गया और सीधे कुर्सेला के निकट गंगा में गिरने का मार्ग हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। यहीं से कोसी नदी गंगा में विलीन होती थी और बंगाल की हुगली नामक गंगा के मुहाने से बंगाल की खाड़ी में गिरती थी।

कोसी के किनारे बसने वाले समुदाय ने सन् 1955 में आजाद भारत में पहली बार नदियों से छेड़-छाड़ के विरोध में आंदोलन किया था। 55 वर्ष पश्चात भी भारतीय तंत्र की आंख नहीं खुली है और विगत वर्ष कोसी में आई बाढ़ और उससे हुआ विनाश इसी अदूरदर्शिता का परिणाम है। गत वर्ष एक जनसमूह ने कोसी का पुन: अध्ययन किया। इसमें डॉ.आर.एन.झा और श्री सत्यनारायण विशेष रूप से शामिल थे।

नदी अंतत: क्या है ? नदी जल और जीवन रेखा है। नदी से पूरी सृष्टि निर्मित हुई है। समस्त पृथ्वी वर्षा के चक्र, मौसम के पीछे जल ही तो है। नदी जल को धारण करती है। नदी पृथ्वी के धरातल का निर्माण करती है और अपने साथ लाए हुए अवसाद और खनिज से भूमि के उर्वरा चक्र को जीवित रखती है। नदी जल के प्रवाह और बहने का रास्ता ड्रेनेज भी है। इसी कारण मूल प्रश्न जल/वर्षा के जल को नदी यानि रास्ता और ढाल देने का है। किसी भी हाइड्रो-संरचना को जल के बहाव/मार्ग को अवरूद्ध करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। हिमालय की घाटियां नदी-घाटी में रहने वाला समूह विज्ञान इसे हिमालय की घाटी या कोसी की घाटी से उजाड़ेगा तो इसका विरोध और संघर्ष तो होगा ही।

इस देश में बाढ़ पर सबसे अधिक हल्ला होता रहता है। जल विज्ञानी के लिए यह विपत्ति और आपदा है। बाढ़ के निदान के लिए उसके पास मिट्टी के तटबंध की खोखली संरचना तैयार रहती है। बाढ़ भी अंतत: अपवाह है अर्थात ड्रेनेज सिस्टम है और वर्षा जल का वह अतिरिक्त जल है जो नदियों के स्वयं द्वारा निर्मित प्राकृतिक तटबंधों को लांघकर बाहर चला आता है क्योंकि उसके जल को बड़ी नदी या समुद्र में गिरने का रास्ता नहीं मिलता है। दुनिया के अनेक देशों में प्राकृतिक तटबंधों को ऊंचा और मजबुत बनाकर बाढ़ का प्रबंधन किया गया है। दूसरी ओर भारत का जल विज्ञानी बाढ़ नियंत्रण का राग अलापता रहता है।

आज कोसी के संदर्भ में मूल स्वर यह होगा कि कोसी के डूब के क्षेत्र और जल जमाव के क्षेत्र के प्रबंधन और विकास का मॉडल क्या होगा ? क्या भारत सरकार देश के प्रसिद्ध जल वैज्ञानिकों और जल तकनीकी के विशेषज्ञों का एक आयोग गठित करेगा जो कोसी नदी में बनाये गये तटबंध और 55 वर्षों में उससे हुए विनाश और अन्याय तथा विज्ञान के दुर्विनियोग की जांच कर देश को वास्तविक स्थिति से अवगत कराएगी और निदान सुझाएगी ?

कोसी योजना के दुष्ट विज्ञान ने 55 वर्ष पूर्व कोसी की बालू और मिट्टी से ही दो तटबंधों की लकीर खींचने का पागलपन किया। पूर्णिमा और वीरपुर के नजदीक बहने वाली कम से कम सात धाराओं वाली कोसी नदी को 1955 में अपहृत कर कम से कम 70 किलोमीटर दूर पश्चिम नेपाल से निकलने वाली तिलयुगा नदी को दो धाराओं में उत्तर से दक्षिण बहा दिया गया और सीधे कुर्सेला के निकट गंगा में गिरने का मार्ग हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। यहीं से कोसी नदी गंगा में विलीन होती थी और बंगाल की हुगली नामक गंगा के मुहाने से बंगाल की खाड़ी में गिरती थी। 1955 से पूर्व कोसी नदी लगभग 50 किलोमीटर चौड़े पाट में बहती थी और अपने साथ लाई हुई बलुही गाद से धरती का निर्माण करती थी। उस नदी को उसके आधार से उखाड़कर तटबंधों के औसत 5 किलोमीटर की चौड़ाई वाले पाट में बहा (बांध) दिया गया। 50 किलोमीटर चौड़े पाट में बहने वाली नदी जब अपनी सारी धारायें खोकर 5 किलोमीटर के पाट में तिलयुगा नदी की दो संकीर्ण धाराओं में बहने लगी तो जल का स्तर 15 से 18 फीट ऊंचा होना ही था और उस समय 3 लाख और अब 10 लाख लोग डूब से पूरी तरह विनष्ट होने ही थे । नदी और मनुष्य को नष्ट करने का कोसी परियोजना नामक बाढ़ नियंत्रक का प्रयोग अपने परिणाम में सम्पूर्ण विध्वंस का दूसरा नाम है।

कोसी नदी से संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य भी हैं जैसे हिमालय पर्वत श्रृंखला का हो रहा सतत उत्थान और घाटी/मैदान का अनवरत निर्माण और उसका भू-संरचनात्मक पक्ष का अध्ययन, तिब्बत और हिमालय के हिमनद और कोसी नदी के पूरे क्षेत्र का वर्षाजल, गंगा नदी में कोसी के जल के समावेश के सभी रास्तों के बंद किए जाने का कृत्य, स्वयं गंगा में गाद भर जाने और हुगली-फरक्का बराज के निर्माण के परिणाम जैसे विषय। परंतु, यह सब करने के लिए अनेक अभिलेखों एवं आंकड़ों के अध्ययन की आवश्यकता है जो समय श्रम एवं व्ययसाध्य है। यों भी कोसी से संबंधित सभी अभिलेख आज भी या तो गुप्त हैं, लुप्त हैं या फिर अनुपलब्ध हैं।

पर मूलत: मैं स्वयं कोसी-कमला-बलान तटबंधों के संजाल के कारण 55 वर्षों से दरभंगा के अपने निवास और समाज से विस्थापित हूं और पूरी तरह जड़ों से उखाड़ कर फेंक दिया गया हूं। यह दंश मारक है। किन्तु कोसी परियोजना के दुष्प्रयोग ने व्यापक आक्रोश, प्रतिवाद, प्रतिरोध और आंदोलन/अभियान को 1955-56 में ही जन्म दिया जिसकी दृढ़ता के कारण पश्चिमी तटबंध के जमालपुर क्षेत्र और पूर्वी तटबंध के सुपौल एवं नौहट्टा क्षेत्र में व्यापक आंदोलन हुआ। इस आंदोलन ने दो कोसी तटबंधों के पूरे निर्माण को एक साल रोक दिया और योजना के विज्ञान, टेक्नॉलॉजी,डिजाइन, विस्थापन संबंधी और तत्कालीन सर्वे के अनुसार लगभग 3 लाख एकड़ जमीन, 300 गांव एवं कुछ लाख मनुष्य की स्थायी डूब में पड़ने के प्रश्न पर अनेक स्तर पर बहसें हुई।

बाढ़ नियंत्रण की बिल्कुल झूठी और हमला बोल सरकारी कोसी योजना के नाम पर प्रकृति, पर्यावरण और नदी और उसके प्राकृतिक बहाव के साथ हस्तक्षेप के विरूद्ध यह पहला भारतीय आंदोलन था। इससे पूर्व 1936 में रूस में एक नदी के साथ हस्तक्षेप के विरूद्ध आंदोलन हुआ था। अब कोसी तटबंधों के डूब में फंसे विस्थापितों की संख्या 3 लाख से बढ़कर 10 लाख हो गई है और कोसी में डूब में पड़े लोग हार गये हैं।

बहरहाल रेल-रोड महासेतु की भारत सरकार की इस नयी संरचना ने जो कहीं से भी 1955 की कोसी योजना का दूरस्थ अंग नहीं है, अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही पूरे वैज्ञानिक अहंकार के साथ कोसी नदी और दोनों तटबंधों के बीच बसे 48 गांवों की समस्त 50 हजार जनता को फिर एक बार पुन: सम्पूर्ण विनाश एवं विस्थापन के कगार पर पहुंचा दिया है।

ऐसा भी नहीं है कि कोसी नदी की पुरानी योजना अपने बेईमान और मानव विरोधी विज्ञान और टेक्नॉलॉजी के द्वारा इस नये विध्वंस के लिए जिम्मेदार न हो। महासेतु तथा रेल-रोड़ परियोजना के समानान्तर बिहार के सिंचाई विभाग ने पूर्वीक्लोजर बांध बनाने पर अंधा-धुंध खर्चीली इंजीनियरिंग की है और लगातार कोसी की पूर्वी धारा को उसके बहाव मार्ग से बाहर फेंका गया है।

यह आश्चर्यजनक है कि कोसी नदी को, सरकार को विज्ञान टेक्नॉलॉजी और इंजीनियर विभाग दूर से भी स्पर्श करते हैं तो कोसी नदी तटबंधों के भीतर के गांव और उसके मध्य स्थायी विस्थापन में जी रहे दस लाख वासियों के लिए विनाश का मंजर पैदा हो जाता है। आखिर ऐसा क्यों है कि सरकार का जल विज्ञान और हाइड्रो टेक्नॉलॉजी (जल तकनीक) विज्ञान के ही खिलाफ हो गए हैं।

देखते हैं थोड़े से भी सत्तासीन नीति निधारकों और तनखैया अर्द्ध वैज्ञानिकों की आंखों से पर्दा हटता है या नहीं ।
 

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