गया कि फल्गु

संस्कृत में फल्गु के दो अर्थ होते हैं। (1) फल्गु यानी निःसार, क्षुद्र, तुंच्छ; और (2) फल्गु यानी सुन्दर। गया के समीप की नदी का फल्गु नाम दोनों अर्थों में सार्थक है पुराण कहते हैं कि उसे सीता का शाप लगा है। सीता के शाप के बारे में जो होगा सो सही; किन्तु उसे सिकता का शाप लगा है यह तो हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। जहां भी देखें, बालू-ही-बालू दिखाई देती है। बेचारा क्षीण प्रवाह इसमें सिर ऊंचा करे तो भी कैसे? यात्री लोग जहां-तहां खोदकर गड्ढे तैयार करते है। लकड़ी के बड़े फावड़े को लम्बी डोरी बांधकर हल की तरह उसे इन गड्ढों में चलाते हैं, जिससे नीचे का कीचड़ निकलकर गड्ढा अधिक गहरा होता है और अधिक पानी देता है।

असंख्य श्रद्धावान यात्री फल्गु के पट में ‘स्नान’ करके पितरों के लिए चावल पकाते हैं और पिंड तैयार करते हैं। चावल, पानी, मटकी, गोबर आदि की मात्रा पंडों ने हमेशा के लिए तय कर रखी है। नियम के अनुसार पैसा दे दीजिए; पंडा सब सामग्री ले आता है। गोबर के उपले सुलगाकर उस पर चावल की मटकी रख दीजिये अमुक विधियों के पूरा होने तक चावल तैयार हो ही जाएगा।

फल्गु के किनारे मंदिर और धर्मशालाओं का सौन्दर्य बहुत है। इनमें भी श्री गदाधर जी के मंदिर का शिखर तो अनायास हमारा ध्यान खींचता है।

फल्गु की सच्ची शोभा देख लीजिये गया के बोधगया की ओर जाते समय। बालू का लंबा-चौड़ा पाट, आसपास ताड़ के ऊंचे-ऊंचे पेड़ और इनके बीच से टेढ़ा-मेढ़ा बहता हुआ फल्गु का क्षीण-प्रवाह मगर उसे क्षुद्र या निःसार कौन कहेगा? यहां रामचंद्र और सीता जी आयी थीं। भगवान बुद्ध यहां घूमे थे। और कई सत्पुरुष यहां श्राद्ध करने आये थे। इस महातीर्थ को निःसार तो कह ही नही सकते। आखिर फल्गु यानी सुन्दर-यही अर्थ सही है।

1926-27

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