सूक्ष्मजीव प्राकृतिक या कृत्रिम दोनों सतहों से जुड़कर और पॉलीसेकेराइड, प्रोटीन व वाह्य डीएनए से मिलकर एक जटिल मैट्रिक्स बनाते हैं। वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों की सहायता से सतहों पर इन माइक्रोबियल संयोजनों को बायोफिल्म के रूप में जाना जाता है। ये वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थ बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया को कई तरह पर्यावरणीय खतरों से बचाता है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया प्रदूषण के अच्छे संकेतक माने जाते हैं और जल निकायों में प्रदूषण उपचार के लिए सबसे अच्छे उम्मीदवार भी हैं। बायोफिल्म से विभिन्न बैक्टीरिया की पहचान की गयी है जिनका उपयोग जलीय पर्यावरण से प्रदूषकों को हटाने के लिए जैविक उपचार की प्रक्रिया में सफलतापूर्वक किया गया है।
सूक्ष्मजीव प्राकृतिक या कृत्रिम दोनों सतहों से जुड़कर और पॉलीसेकेराइड, प्रोटीन व वाह्य डीएनए से मिलकर एक जटिल मैट्रिक्स बनाते हैं। वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों की सहायता से सतहों पर इन माइक्रोबियल संयोजनों को बायोफिल्म के रूप में जाना जाता है। ये वाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थ बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया को कई तरह पर्यावरणीय खतरों से बचाता है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया प्रदूषण के अच्छे संकेतक माने जाते हैं और जल निकायों में प्रदूषण उपचार के लिए सबसे अच्छे उम्मीदवार भी हैं। बायोफिल्म से विभिन्न बैक्टीरिया की पहचान की गयी है जिनका उपयोग जलीय पर्यावरण से प्रदूषकों को हटाने के लिए जैविक उपचार की प्रक्रिया में सफलतापूर्वक किया गया है। बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया पर आधारित बायोरिएक्टर इन दिनों पारंपरिक तरीकों की तुलना में प्रदूषित पानी की सफाई के लिए अधिक कुशल तरीके से उपयोग में लिये गये हैं। यह समीक्षा जलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्रदूषक के उपचार में बायोफिल्म बनाने वाले बैक्टीरिया की क्षमता और उपयोग का वर्णन करती है।
भारत की पानी निर्यात इंडस्ट्री कितनी बड़ी है, इसका अनुमान इन आकड़ों से कर सकते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान जब ज्यादातर देशों में एक-दूसरे के लिए अपनी सीमाएं बंद कर रखी थीं, तब भी यानी केवल कुछ ही महीनों के भीतर देश ने अलग-अलग देशों को लगभग 455.86 लाख रुपए का पानी निर्यात किया ।
Forests greatly help in maintaining the water balance of nature by storing water during monsoons and making this water available during dry seasons. India urgently needs to save its forests to prevent droughts and the adverse effects of climate induced global warming.
छावनी क्षेत्र चकराता से 12 किमी दूरी पर स्थित रामताल गार्डन (पौराणिक नाम-चौलीयात) में बना तालाब पूरी तरह सूख चुका है। कभी यह तालाब सैलानियों की पसंदीदा जगह हुआ करता था। लेकिन दो साल पूर्व यह तालाब पूरी तरह से सूख गया
‘पर्वतीय विकास की सही दिशा’ के मुद्दे पर आयोजन समिति द्वारा अनासक्ति आश्रम कौसानी में 5-7 अप्रैल 2023, पर्वतीय विकास की सही दिशा विषय पर तीन दिवसीय संवाद गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। आप अवगत ही हैं कि 5 अप्रैल सरला बहिन की जन्म तिथि है।
झांसी के पर्यावरण कार्यकर्ता नरेन्द्र कुशवाहा स्वच्छ हवा, पानी के स्रोत नदी, तालाब और पार्क आदि की भूमियों को अतिक्रमण से बचाने और उन्हे मूल स्वरूप में वापस लाने हेतु प्रयासरत कार्य कर रहे है। झांसी में स्थित तालाब और पार्क आदि
This study finds that rainfall over the west coast of India is becoming more convective and creating sharp and intense rain spells over a short period of time.
देश के कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं जहां शत प्रतिशत घरों में पीने के साफ़ पानी का नल पहुंच चुका है. इसके अलावा जल संरक्षण की दिशा में भी तेज़ी से काम हो रहा है.
वर्तमान में चलो गांव की ओर अभियान चलाकर ब्लॉक के दर्जनों गावों में जल स्रोत और रिस्कन नदी को बचाने के लिए काम कर रहे हैं। इस मुहिम में वह अब तक छोटे-बड़े हजारों चाल खाल रिस्कन नदी की पहाड़ियों के आसपास और गावों में बना चुके हैं
एक व्यक्ति को प्रतिदिन औसतन 30 से 50 लीटर स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है लेकिन हमारे देश में करीब 88 करोड़ लोगों को जरूरत का 10 प्रतिशत हिस्सा भी नहीं मिल पाता।
1980 से 2020 तक 1163 विकास परियोजनाओं के लिए 2,84, 131 हेक्टेयर वनभूमि को गैर वनीकरण कार्य के लिए परिवर्तित किया गया है। इसमें से 279 सिंचाई परियोजनाओं के लिए 83,842 हेक्टेयर वन भूमि का इस्तेमाल हुआ है।
जल संरक्षण के लिए तमाम सरकारी फरमान जारी होते हैं, कई अभियान भी चलाए जाते हैं। इन कोशिशों के बीच कुछ लोग ऐसे हैं जो संगठन के रूप में जल संरक्षण के भगीरथ प्रयास में जुटे हुए हैं। कुछ एकला चलो की तर्ज पर अकेले ही प्रयास कर रहे हैं।
प्राकृतिक जलस्रोत लगातार सूखते जा रहे हैं। हालात यह हैं कि एशिया के वाटर हाउस वाले हिस्से में भी यानी हिमालय में जल संकट की समस्या पैदा हो चुकी है। हिमालयी राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट जैसे राज्यों में जल के लिए करीब 60% आबादी झारनों और प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर है। इन सभी प्रदेशों में उत्तराखंड की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।
Dr Sunderrajan Krishnan, Executive Director of INREM Foundation shares his perspectives on making water quality knowledge accessible to people on the ground.