आभासी जल (Virtual Water in Hindi)

आभासी जल
आभासी जल

हम आमतौर पर जल का उपयोग स्नान करने, पीने और सफाई के लिए करते है, जो हमें तरल रूप में साक्षात दिखाई देता है, वह वास्तविक जल कहलाता है। लेकिन जो जल हमें नहीं दिखाई नहीं देता है, वह आभासी जल (वर्चुअल वाटर) कहलाता है। आभासी जल हमारी दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली लगभग सभी वस्तुओं जैसे-अनाज, सब्जी, कागज, पेंसिल, कपड़े, मिठाई, मोबाइल, टीवी, फ्रिज इत्यादि में होता है।आभासी जल की अवधारणा सर्वप्रथम प्रोफेसर टोनी एलन, किंग कॉलेज, लंदन ने 4993 में दी थी। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि जल की कमी वाले देश खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं कर सकते है, इसलिए वे खाद्य पदार्थों को आयात करते है और अपने ही देश में उपलब्ध जल को बचाते हैं। यदि वे खाद्य पदार्थों का उत्पादन करते है तो उन्हें पीने के पानी की समस्या का सामना करना पड़ेगा। आभासी जल की मात्रा का अनुपात भौगोलिक स्थिति के अनुसार बदलता रहता है। इस शोध के लिए उनको 2002 में स्टाकहोम विश्व जल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

हमारे देश में एक मनुष्य लगभग एक सौ पैंतीस लीटर प्रतिदिन वास्तविक जल का उपयोग करता है, जबकि एक अनुमान के अनुसार यही मनुष्य लगभग तीन हजार लीटर प्रतिदिन आभासी जल का उपयोग करता है। वह दिन भर में अपने दैनिक उपयोग जैसे-खाना, कागज, कपड़ा आदि में करता है और उसे जानकारी ही नहीं होती है कि वह लगभग तीन हजार एक सौ पैंतीस लीटर प्रतिदिन जल का उपयोग कर चुका है। किसी समारोह में एक थाली में दो हजार लीटर आभासी जल होता है।

भारत बीते लगभग एक दशक से जलसंकट से जूझ रहा है। देश में करीब 60 करोड़ लोग पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। दूसरी ओर देश से सबसे ज्यादा पानी पड़ोसी देशों में निर्यात किया जा रहा है। साल 2020 में पड़ोसी देश भारत से मिनरल और नेचुरल वॉटर के सबसे बड़े खरीददार बनकर उभरे हैं। भारत अलग-अलग देशों को पानी निर्यात करता है, जिसमें सबसे ऊपर चीन और फिर मालदीव हैं। आभासी जल के निर्यात में भारत सबसे ऊपर है, ऐसी फसलें निर्यात होती है, जिनकी पैदावार में ज्यादा पानी लगता है।

ये पानी केवल मिनरल वॉटर ही नहीं, बल्कि इसमें वास्तविक जल भी शामिल है। इन पांच सालों में देश से लगभग 23,78,227 लीटर मिनरल वाटर और 8,69,815 लीटर वास्तविक जल का निर्यात हुआ। इसमें चीन सबसे बड़ा खरीददार रहा। इसे हमने कई किस्म के पानी का निर्यात किया, लेकिन केवल मिनरल वॉटर से हमें लगभग 31 लाख रुपए हासिल हुए | वहीं मालदीव, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में भी पानी की कई किसमें हमारे यहां से आयात की गई ।

भारत की पानी निर्यात इंडस्ट्री कितनी बड़ी है, इसका अनुमान इन आकड़ों से कर सकते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान जब ज्यादातर देशों में एक-दूसरे के लिए अपनी सीमाएं बंद कर रखी थीं, तब भी यानी केवल कुछ ही महीनों के भीतर देश ने अलग-अलग देशों को लगभग 455.86 लाख रुपए का पानी निर्यात किया ।ये तो हुआ सीधे पानी निर्यात का आंकड़ा । इसके अलावा भी एक पहलू है, जो ज्यादा चौंकाता है वो यह कि भारत आभासी जल के निर्यात में सबसे आगे खड़ा देश है।

ये आभासी निर्यात भला क्या है ?

आभासी निर्यात से हमारा तात्पर्य उन फसलों से है, जिनकी पैदावार ज्यादा पानी में होती है। ऐसी ज्यादा पानी लेकर उगी फसलों को भारत दूसरे देशों को निर्यात करता है तो ये भी एक किस्म से पानी का निर्यात ही है। तब खरीददार देश अपना पानी बचाकर कम पानी वाली फसलें उगाते हैं और भूमिगत पानी का सही इस्तेमाल करते हैं।

जैसे एक कप चावल बनाने के लिए आप कितना पानी लेते हैं? लगभग इतना ही या फिर और भी कम।लेकिन इसे उपजाने के लिए जो पानी लगता है, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। एक किलो चावल उपजाने में लगभग 2,173 लीटर पानी खर्च होता है। अब इसी धान को भारत दूसरे देशों को निर्यात करेगा तो ये पानी का आभासी निर्यात भी होगा | इससे केवल अन्न ही बाहर नहीं जा रहा, बल्कि पानी की भारी मात्रा भी जा रही है।

वर्ष 2014-15 में देश ने 37.2 लाख टन बासमती चावल दूसरे देशों को निर्यात किया था | इसमें लगभग 10 ट्रिलियन लीटर पानी खर्च हुआ था। यानी ये पानी भले ही दिखाई न दे रहा हो, लेकिन ये भी दूसरे देशों में बगैर कीमत ही निर्यात हो रहा है।

इस पर बातचीत इसलिए जरूरी है कि फिलहाल देश में पेयजल का भारी संकट है। नीति आयोग ने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक की रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल प्राण गंवा देते हैं। ये आंकड़े साल 2018 के जून में जारी हुए थे। अब स्पष्ट है कि कोरोना के दौरान हालात खास नहीं सुधरे हैं। लिहाजा इस आंकड़े में बढ़ोतरी ही हुई होगी । रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि साल 2030 तक हालात और बिगड़ सकते हैं, जिसका सीधा असर देश की सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी ) पर होगा।

देश की बड़ी आबादी के पास पीने के पानी की कमी होने के बाद भी भूमिगत जल दूसरे देशों को निर्यात किया जा रहा है, जिससे हालात और खराब हो रहे हैं। यही सब देखते हुए साल 2019 में सरकार ने जलजीवन मिशन शुरू किया।इसके तहत ग्रामीण इलाकों में साल 2024 तक साफ और भरपूर पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इस पर काम भी शुरू हो चुका है लेकिन फिलहाल इसके नतीजे सामने आना शेष हैं।

पानी का उपयोग रोजमर्रा की जरूरतों के अलावा अन्य कई कार्यो के लिए किया जाता है | इसमें रोजमर्रा के काम की तुलना में कई गुणा अधिक जल की खपत होती है| यदि ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले समय में इन्हीं कारणों से जल संकट का खतरा उत्पन्न हो जाएगा | बदलती जीवन शैली के कारण भी इसके लिए जल की खपत बहुत अधिक हो गई है। इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र शामिल हैं| जहां शहरी क्षेत्र में कार वाश, अपार्टमेंट में साफ-सफाई और उद्योग धंधों में आभासी जल की खपत होती है, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में फसलों के उत्पादन पर इसका बड़ी मात्रा में उपयोग होता है।
हाल ही में 'वॉटरऐड' नामक एक संस्था के सर्वेक्षण में पानी को लेकर एक सर्वेक्षण किया गया है। इस सर्वेक्षण में सबसे बड़ी बात यह सामने आई कि भले ही हम सीधे तौर पर बहुत कम पानी का इस्तेमाल करते हों लेकिन उसका कई गुना ज्यादा अधिक आभासी जल का उपयोग हो रहा है। जब तक इसके उपयोग को न्यूनतम स्तर पर नहीं लाया जाता है तब तक जल संरक्षण की बात को सफल नहीं बनाया जा सकता है। भारत में भी इस समस्या का हल ढूंढ़ना होगा।

भारत में एक व्यक्ति औसतन 3000 लीटर पानी का उपयोग करता है| इस 3,000 लीटर में आभासी जल की बड़ी मात्रा शामिल है। भारत में शहरों और गांवों में रहने वाले लोगों के लिए रोजाना इस्तेमाल होने वाले पानी की मात्रा निर्धारित की गई है। शहरों के लिए 150 लीटर और गांवों के लिए 55 लीटर रोजाना । इस तरह हम देखें तो भारत का हर व्यक्ति शहर के लिए निर्धारित प्रति व्यक्ति रोजाना जल इस्तेमाल के मुकाबले में 20 गुना ज्यादा और गांवों के लिए निर्धारित मात्रा के मुकाबले करीब 50 गुना ज्यादा पानी इस्तेमाल करता है। आभासी जल का इस्तेमाल किस पैमाने पर होता है, उसका अंदाजा इस उदाहरण से लगा सकते हैं अगर चार सदस्यों वाले एक परिवार में रोजाना 4 किलोग्राम चावल का इस्तेमाल होता है तो वहां करीब 84,600 लीटर पानी की खपत होती है।

दुनिया के भूमिगत जल का 24 फीसदी अकेले भारत इस्तेमाल करता है। यानी भारत दुनिया में भूमिगत जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। साल 2000 से 2010 के बीच भारत में भूमिगत जल के घटने की दर 23 फीसदी बढ़ गई है। वैसे तो कई विकसित देशों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति पानी का इस्तेमाल बहुत कम है लेकिन बड़ी आबादी वाले उन देशों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति रोजाना पानी का इस्तेमाल काफी है जहां बड़ी आबादी जल संकट का सामना करती है।

खाद्यान्न निर्यात में हमारा देश विश्व में तीसरे स्थान पर है। इस प्रकार से आभासी जल का निर्यात हो रहा है। वर्तमान में हम जल बचाने के लिए बहुत ही ईमानदारी से ध्यान दे रहे है कि जल की बचत, पुनः उपयोग, वर्षा जल संचयन इत्यादि लेकिन जानकारी के अभाव में आभासी जल की ओर कभी ध्यान ही नहीं गया । हमारे देश में जल की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ ही रही है। इसके लिए हमें आभासी जल की बचत करना होगी।सर्वप्रथण हम अन्न, फलों इत्यादि को आवश्यकता अनुसार उपयोग में लें | व्यर्थ में फेंकने से पहले सोचें कि उसे बनाने के लिए कितनी जल की मात्रा लगी है। हमारी सरकार को चाहिए कि हमारे सूखे खाद्य पदार्थों के भंडारण की उचित व्यवस्था हों, जिस प्रकार से वास्तविक जल बचाने का अभियान चला है, उसी प्रकार से आभासी जल बचाने के लिए जागरुकता अभियान चलाना चाहिए ।

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Post By: Shivendra
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